बूंदो ने धरती को चिठिया बाची बादल की |
छत पे छन छन रात भर बाजी बूंदो की पायल सी |
देखो फूल-फूल, पात-पात के मुख धो डाले बूंदो ने |
आंगन ओसारे सब भिगो डाले बूंदो ने |
अम्बर छूने को झूलो ने पेंग बढ़ाए |
ढीढ निर्मोही बदरा देखो घिरघिर आये |
दिन में हो गई रात ज्यों डिबरी फैली काजल की |
गोरी को नइहर भाय नहीं सेजपड़ी है सूनी |
बिन साजन के मन में जल रही धूनी |
हरे कांच की चूड़ी खन-खन खनके रातो में |
मोर, पपीहा, चातक, शोर करे बरसातों में |
उगे इंद्रधनुष अम्बर में शोभा बड़े धरती के आँचल की |
ताल तलैया कूप नदी सब बूंदो ने भर डाले |
जड़ जंगम निर्जीव सजीव सब शीतल कर डाले |
उठ रही माटी से मीठी-मीठी सौंधी सुगंध |
रति रुपी रूप देख प्रकृति का मन करे लिखू छंद |
कजरारी रातो में पीहू-पीहू टेर करे कोई पीर न जाने प्रेम प्यासे चातकघायल की...!!!