ओह माँ मुझको इस धरती पे आने तो दे ज़रा, रूप रंग मेरा अस्तित्व में छाने तो दे ज़रा |
मै तुमको विश्वास दिलाती हु आँचल खुशियों से भर दूंगी बाबा का मस्तक गर्व से ऊंचा कर दूंगी |
मै महक हु संदल और चन्दन की, मै तेरे आँगन में कंचन बन बरसूँगी |
मुझमे नूपुर पायल कोयल के स्वर है, फिर भी न जाने क्यो मुझको अपनों से ही डर है |
मेरे भी सपनो को सच हो जाने तो दे ज़रा |
ओह माँ मुझको इस धरती पे आने तो दे ज़रा, रूप रंग मेरा अस्तित्व में आने तो दे ज़रा |
मै तेरे आँगन की पावन तुलसी हूँ मै हूँ चारो धाम मथुरा काशी हूँ |
हो रहा समाज में चारो ओर मेरा दमन, बैठे है ध्रतराष्ट्र मौन हो रहा चीर हरन |
खौफ नाक इरादों वाले घूम रहे है रावण, चिंगारी हूँ मै एक दिन ज्वाला बन करुँगी दहन |
मेरे भी पंखो में जान आने तो दे ज़रा |
ओह माँ मुझको इस धरती पे आने तो दे ज़रा, रूप रंग मेरा अस्तित्व में आने तो दे ज़रा |
दिन रात डरा करती है मेरी नन्ही नन्ही साँसे न जाने किस दिन काट दी जाएंगी मेरी शाखे |
वह कोख के सौदागर मुझे मौन सी नींद सुलाएँगे |
कतरा - कतरा , तिनका - तिनका मुझको काट गिराएंगे |
मै रोउंगी चीखूंगी पर तुझे नज़र न आउंगी, इस दुनिया में आने से पहले मै मुरझा जाउंगी |
भाई को बहन बेटे को बहूँ कहा से तुम लाओगे ऐसे ही यदि तुम अपने अंश से मुझे ठुकराओगी |
ओह मेरी प्यारी माँ ऐसी निरापराध हत्या का आरोप न अपने सिर लेना तुम ज़रा...!!!