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मुहब्बत की तबीयत में

11 जून 2015

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मुहब्बत की तबीयत में ये कैसा बचपना क़ुदरत ने रखा है Amjad Islam Amjad कि ये जितनी पुरानी जितनी भी मज़बूत हो जाये उसे ताईद-ए-ताज़ा की ज़रूरत फिर भी रहती है यकीं की आख़िरी हद तक दिलों में लहलहाती हो हज़ारों तरह के दिलकश हसीं हाले बनाती हो उसे इज़हार के लफ़्ज़ों की हाजत फिर भी रहती है मुहब्बत मांगती है यूँ गवाही अपने होने की कि जैसे तिफ़ल-ए-सादा शाम को एक बीज बूए और शब में उठे ज़मीं को खोद कर देखे कि पौदा अब कहाँ तक है??? मुहब्बत की तबीयत में अजब तकरार की खू है कि ये इक़रार के लफ़्ज़ों को सुनने से नहीं थकती बिछड़ने की घड़ी हो या कोई मिलने की साअत हो उसे बस एक ही धुन है कहो मुझ से मुहब्बत है कहो मुझ से मुहब्बत है तुम्हें मुझ से मुहब्बत है समुंद्र से कहीं गहिरी सितारों से सिवा रोशन हवाओं की तरह दाइम पहाड़ों की तरह क़ायम कुछ ऐसी बे सकोनी है वफ़ा की सरज़मीनों में कि जो अहल-ए-मुहब्बत को सदा बेचैन रखती है कि जैसे फूल में ख़ुशबू कि जैसे हाथ में तारा कि जैसे शाम का तारा मुहब्बत करने वालों की सहर रातों में रहती है गुमनाम के शाख़ों में आशयाना बनाती है उलफ़त का ये ऐन विसाल में भी हिजर के खदशों में रहती है मुहब्बत के मुसाफ़िर ज़िंदगी जब काट चुकते हैं थकन की किर्चियां चुनते वफ़ा की अजरकीं पहने समय की राहगुज़र की आख़िरी सरहद पे रुकते हैं तो कोई डूबती सांसों की डोरी थाम कर धीरे से कहता है कि ये सच्च है ना हमारी ज़िंदगी इक दूसरे के नाम लिखी थी धुनदलका सा जो आँखों के क़रीब-ओ-दूर फैला है उसी का नाम चाहत है तुम्हें मुझ से मुहब्बत है तुम्हें मुझ से मुहब्बत है शायर अमजद इस्लाम अमजद क्रेडिट्स www.nuqoosh.in
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शहज़ादा -उर्दू अफ़साना – कृष्ण चन्द्र

10 जून 2015
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शहज़ादा कृष्ण चन्द्र सुधा ख़ूबसूरत थी ना बदसूरत, बस मामूली सी लड़की थी। सांवली रंगत, साफ़ सुथरे हाथ पांव, मिज़ाज की ठंडी मगर घरेलू, खाने पकाने में होशयार, सीने पिरोने में ताक़, पढ़ने लिखने की शौक़ीन, मगर ना ख़ूबसूरत थी ना अमीर, ना चंचल, दिल को लुभाने वाली कोई बात उस में ना थी। बस वो तो एक बेहद शर्मीली

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मोहसिन नकवी का एक शेर

11 जून 2015
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ए दोस्त! झूट आम था दुनिया में इस क़दर तू ने भी सच्च कहा तो फ़साना लगा मुझे

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मुहब्बत की तबीयत में

11 जून 2015
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मुहब्बत की तबीयत में ये कैसा बचपना क़ुदरत ने रखा है Amjad Islam Amjad कि ये जितनी पुरानी जितनी भी मज़बूत हो जाये उसे ताईद-ए-ताज़ा की ज़रूरत फिर भी रहती है यकीं की आख़िरी हद तक दिलों में लहलहाती हो हज़ारों तरह के दिलकश हसीं हाले बनाती हो उसे इज़हार के लफ़्ज़ों की हाजत फिर भी रहती है मुहब्बत मां

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