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नेताजी सुभाषचंद्र बोस जयंती

23 जनवरी 2022

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उड़ीसा की राजधानी और महानदी के तट पर बसे कटक नगर में रायबहादुर जानकीनाथ बोस के यहाँ 23 जनवरी, 1897 को सुभाष बाबू का जन्म उस समय हुआ जब देश पराधीनता की बेडि़यों में जकड़ा हुआ था। भारतीय राष्ट्रीय कांगे्रेस की स्थापना हो चुकी थी। देश में राजनैतिक चेतना आ रही थी। उनकी माता प्रभावती बोस पुराने कट्टर धार्मिक विचारों में विश्वास रखनी वाली महिला होने के बावजूद भी सरल हृदय, अच्छे स्वभाव वाली सीधी-साधी महिला थी। नेताजी सुभाषचंद्र बोस की पांच बहनें और छः भाई थे। संपन्न परिवार के होने के बावजूद नेताजी स्वार्थ और लालच जैसी बुराई से कोसों दूर थे। 
नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने जाति-पांति के भेदभाव को कभी भी महत्व नहीं दिया। वे हिन्दू-मुसलमानों में भेद नहीं रखते थे। दोनों को भाई मानते थे। इसका एक उदाहरण है- एक दिन उनकेे मोहल्ले में छोटी जाति के एक व्यक्ति ने  उनके घर वालों को खाने पर बुलाया। सबने न जाने का निश्चय किया, लेकिन सुभाष बाबू ने अपने माता-पिता की आज्ञा का उल्लंघन कर उनके यहां जाकर खाना खाया। एक अन्य प्रसंग पर कटक में हैजे के दौरान उन्होंने रोगियों की घर-घर जाकर सेवा की। इस रोग से पीडि़त एक गुण्डे हैदर के घर जब कोई डाॅक्टर, वैद्य उनके बुलावे पर नहीं आये तो उन्होंने स्वयं उसके घर जाकर अपने साथियों के साथ मिलकर उसके घर की साफ सफाई की, जिसे देखकर वह कठोर हृदय वाला गुण्डा द्रवित होकर एक कोने में जाकर रोने लगा। उसे बड़ी आत्मग्लानि हुई। तब नेता सुभाषचंद जी ने उसे सिर पर हाथ फेरते कहा-“ भाई तुम्हारा घर गंदा था, इसलिए इस रोग ने तुम्हें घेर लिया। अब हम उसकी सफाई कर रहे हैं। दूसरों के सुख-दुःख में जाना तो मनुष्य का कर्तव्य है।“ यह सुनकर हैदर से उनके पांव पकड़ कर बोला-“ नहीं, नहीं मेरा घर तो गंदा था ही, मेरा मन उससे भी ज्यादा गंदा था। आपकी सेवा ने मेरी गंदगी को निकाल दिया। मैं किस मुंह से आपको धन्यवाद दूं। परमात्मा करें आपकी कीर्ति संसार के कोने-कोने में फैले।“   

          नेताजी के भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु अमूल्य योगदान के लिए हम सभी सदैव ऋणी रहेंगे। उनके जैसे ओजस्वी वाणी, दृढ़ता, स्पष्टवादिता और चमत्कारी व्यक्तित्व वाले लोकप्रिय नेता की आज सर्वथा कमी महसूस होती है। स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु उनका भारतवासियों का उद्बोधन भला कौन भुला सकता है-“ अब आपका जीवन और आपकी सम्पत्ति आपकी नहीं है, वह भारत की है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि यदि आप इस सरल सत्य को समझते हैं कि हमें किसी भी उपाय से स्वतंत्रता प्राप्त करनी है और अब हम एक ऐसे स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में हैं जो युद्ध की स्थिति में है तब आप सहज ही समझ जायेंगे कि कुछ भी आपका नहीं है। और आपका जीवन, धन, सम्पत्ति कोई भी चीज आपकी नहीं है। आपके लिए स्पष्टतः दूसरा रास्ता खुला हुआ है। वही रास्ता जो अंग्रेजों द्वारा अपनाया गया था। स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए कोई मध्य स्थिति नहीं हो सकती। तुम सभी को स्वतंत्रता के लिए पागल बनना होगा। तुम में से किसी को भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़े जाने वाले इस युद्ध में केवल अपनी सम्पत्ति का पांच प्रतिशत और दस प्रतिशत देने के अर्थों में सोचने का अधिकार नहीं है। हजारों संख्या मंे जो वीर सैनिक भारत को स्वतंत्र करने के लिए सेना में भर्ती हुए हैं, वे इस बात का भाव-ताव नहीं करते कि हम रणभूमि में केवत पांच प्रतिशत ही अपना खून बहायेंगे। सच्चे देशभक्त सैनिक का अमूल्य जीवन एक करोड़ रुपये से भी अधिक कीमती है। तब आप लोग जो धनवान हैं, उन्हें क्या अधिकार है कि वे मोल-भाव करें और कहंे कि हम अपनी सम्पत्ति का केवल अमुक प्रतिशत ही देंगे। ’करो सब निछार-बनो सब फकीर।’ मैं आप सभी लोगों से यही चाहता हूं। भारत की स्वतंत्रता के लिए सर्वस्व दे डालो और फकीर बन जाओ। वह बहुत त्याग नहीं है। मुझे अपना खून दो और मैं तुम्हें स्वतंत्रता देने का वचन देता हूँ।“

 सुभाषचन्द्र जयंती पर सादर श्रद्धा सुमन अर्पण सहित.. 

Dinesh Dubey

Dinesh Dubey

बहुत बढ़िया लिखा है आपने

3 फरवरी 2022

महावीर जोशी लेखाकार पुलासर

महावीर जोशी लेखाकार पुलासर

बहुत ही शानदार प्रस्तुति इस देव पुरुष महामानव की शौर्य गाथा जितनी लिखी जाय उतनी ही कम है आदरणीय

2 फरवरी 2022

Pragya pandey

Pragya pandey

🙏🙏🙏

30 जनवरी 2022

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सन्त-महापुरुषों की जयन्ती और पुण्यतिथि
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हमारे भारत वर्ष में समय-समय पर अनेक संत-महापुरुषों का अवतरण हुआ है, जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन लोक हित और जन कल्याण के लिए न्यौछावर कर दिया। ऐसे संत-महात्मा निश्चित ही हमारे लिए प्रेरणा स्रोत रहे हैं, लेकिन जिस तरह से आज लोक कल्याणार्थ उनके बताये मार्ग और आदर्शों को अनदेखा किया जा रहा है, निश्चित ही वह हमारी समृद्ध सांस्कृतिक परम्परा पर बट्टा लगाने वाली बात है। मैंने अनुभव किया है कि विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालयीन स्तर पर हमारे कुछ ही संत-महापुरुषों की जयन्ती और पुण्यतिथि के विषय में पढ़ाया जाता है, जिस कारण वे अन्य बहुत से संत-महात्माओं के बारे में सदैव अनविज्ञ रहते हैं। हमारे संत-महापुरुषों के बारे में एकजाई जानकारी सभी को प्राप्त हो सकें, ऐसा इस पुस्तक के माध्यम से मेरा प्रयास है।
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