छुट्टी का दिन होने से परिसर में सन्नाटा सा था। कहीं- कहीं चलते कूलरों की आवाज़ से ही पता चलता था कि कार्यालय में कुछ लोग मौजूद हैं।
वो तो होते ही। छुट्टी के दिन इतनी ज़रूरी मीटिंग हो तो सहायक कर्मचारियों को तो आना ही पड़ता।
आज छुट्टी के दिन मीटिंग रखने का एक खास मकसद था। प्रशासन नहीं चाहता था कि जिस समय चर्चा का ये अंतिम दौर हो या फैसला आए उस समय यहां के छात्र विश्वविद्यालय परिसर में मौजूद हों। यहां तक कि छात्रसंघ के पदाधिकारी छात्रों को भी नहीं बुलाया गया था।
यह विश्वविद्यालय के इतिहास में संभवतः पहला मौका था जब रैगिंग विरोधी गतिविधियों की नियामक इस समिति में राजधानी के पुलिस व प्रशासन विभाग की ओर से भी उच्चस्तरीय प्रतिनिधि उपस्थित थे। वाइस चांसलर भी इसी तथ्य को देखते हुए इन बैठकों में लगातार स्वयं उपस्थित हुए थे।
इस सारी सतर्कता का कारण ये था कि पिछले दिनों यहां के एक उन्नीस वर्षीय लड़के ने छात्रावास में फंदा लगाकर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली थी। भारी बवंडर मचा था। विद्यार्थी कई दिन तक आंदोलनरत रहे थे और बाद में मामले की उच्चस्तरीय जांच का आश्वासन मिलने के बाद भी बड़ी मुश्किल से मामला रफा- दफा हो सका था। छात्र के घरवालों ने प्रशासन पर आरोप लगाया था कि छात्र केवल रैगिंग का शिकार हुआ है और यहां लंबी- चौड़ी एंटी रैगिंग कमेटी होते हुए भी न पहले कोई सावधानी बरती गई और न बाद में ही इस हृदय- विदारक घटना का कारण जानने की कोई कोशिश की गई। अलबत्ता इस कमेटी की सालों से कोई बैठक ही नहीं हुई जबकि परिसर का अराजक माहौल शहर भर में कुख्यात रहा है।
इतना ही नहीं, मीडिया का स्वर ये भी कहता था कि इस मामले में अनावश्यक दखल देकर इसे राजनीति की ज्वाला में झौंक देने में भी कोई कोर - कसर नहीं छोड़ी गई, वादों और विमर्शों के नाम पर अराजकता का नंगा नाच भी यहां सरेआम होता रहा और एक निर्दोष बच्चे ने जान दे दी।
इन संगीन आरोपों का ही ये नतीजा था कि एक उच्च स्तरीय जांच समिति बना दी गई और लगातार उसकी बैठकों व विभिन्न इतर तरीकों से जांच के बाद आज उसी की ऐसी बैठक थी जिसमें तमाम निष्कर्षों पर प्रशासन की मोहर लगनी थी। इन्हीं के आधार पर दिवंगत छात्र के परिवार को मिलने वाला मुआवजा भी तय किया जाना था। उस समय घटना के तुरंत बाद उन्हें केवल एडहॉक आर्थिक सहायता ही दी गई थी।
प्रशासन का कहना था कि छात्र पूर्वाग्रही होकर जांच को निष्पक्षता से पूरा नहीं होने देंगे इसीलिए इसे छात्रों की उपस्थिति से बचाकर अंजाम दिया जा रहा था।
विभिन्न छात्रों, कर्मचारियों, परिजनों से मिली जानकारी और प्रेस में छपी खबरों के आधार पर तमाम घटना की कहानी कुछ इस तरह बनी थी जिसे यूनिवर्सिटी की एक महिला प्रोफ़ेसर और एक सेवानिवृत न्यायाधीश ने इस तरह तैयार किया था-
प्रायः अधिकांश लोगों ने स्वीकार किया कि परिसर में रैगिंग तो लगातार होती है, उसे रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाए जाते। न ही रैगिंग लेने वाले छात्रों पर कोई एक्शन लिया जाता है।
दिवंगत छात्र वर्तमान सक्सेना एक मेधावी और शालीन छात्र था। वह अपने मित्र आर्यन भटनागर के साथ हॉस्टल नंबर तीन के बारह नंबर कमरे में रहता था। प्रथम वर्ष के ये दोनों छात्र एक ही स्कूल से आए थे और संपन्न घरों से ताल्लुक रखते थे। दोनों के बीच अच्छे संबंध थे और वो एक दूसरे से हर बात शेयर करते थे। कुछ मीडिया रिपोर्टों में यह भी कहा गया कि प्रायः इस तरह की घटनाओं में किसी असफल प्रेम प्रसंग की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता। किंतु जांच के दौरान ये संभावना बिल्कुल निर्मूल सिद्ध हुई। वर्तमान और आर्यन जैसे छात्र जिन्होंने अभी ठीक से अपनी किशोरावस्था भी पार नहीं की थी इस परिसर में खुद अपनी पैठ और सुरक्षा के लिए ही चिंतित रहते थे और ऐसे तनाव भरे वातावरण में यह सोचा भी नहीं जा सकता कि कॉलेज में कदम रखते ही उन्होंने किसी लड़की से प्रेम - वेम का कोई चक्कर चलाया होगा।
फोर्थ ईयर का तरुण राय और थर्ड ईयर का भावन सिंह वर्तमान को एक - दो बार अपने कमरे में रैगिंग के लिए बुला चुके थे जिसकी पुष्टि कुछ छात्रों और कैंटीन कर्मचारी ने भी की थी।
इन दोनों सीनियर छात्रों के साथ एक शोधार्थी कबीर भी अवैध रूप से रहता था जिसने कमरे में एक अतिरिक्त बिस्तर लगा रखा था। इसकी जानकारी वार्डन समेत कुछ अन्य लोगों को भी थी। इस कमरे में अतिरिक्त छात्रों तथा अन्य अवांछित तत्वों के वहां बैठ कर कई बार शराब पीने की पुष्टि भी हुई।
कैंटीन स्टाफ ने पुष्टि की थी कि इन वरिष्ठ छात्रों में से एक युवक वर्तमान से रैगिंग लेने के बाद भी नियमित संबंध रखना चाहता था। वह हमेशा उसके बारे में पूछता रहता था कि वह नाश्ता करने कब आता है, उसके साथ कौन था, वह कब फ़्री रहता है, आदि आदि।
दशहरे की छुट्टियों में अधिकांश छात्रों के घर चले जाने के बाद वर्तमान हॉस्टल में इसीलिए रुका हुआ था क्योंकि उसे शहर के एक अन्य कॉलेज में आयोजित होने वाले डिबेट कंपीटिशन में भाग लेना था। वर्तमान का दोस्त और रूम पार्टनर आर्यन भी अपने घर चला गया था तथा वर्तमान अपने कमरे में इन दिनों अकेला ही रहता था।
भावन सिंह भी छुट्टियों में घर न जाकर हॉस्टल में ही था। उसके पास कुछ स्थानीय लोग अक्सर आते रहते थे जिन्हें वह कभी - कभी गेस्ट के रूप में कैंटीन या मैस में भी साथ में लाता था।
एक बार रैगिंग के बाद भावन सिंह का रवैया वर्तमान के प्रति बदल गया था और अब वह वर्तमान से मित्रवत व्यवहार करने लगा था। किंतु वर्तमान भावन सिंह को अधिक पसंद नहीं करता था और उससे केवल औपचारिक संबंध रखते हुए उससे बचने की ही कोशिश करता था।
इस जांच प्रतिवेदन में वर्तमान के निधन से पहले के कुछ दिनों की उसकी दिनचर्या पर मिनट टू मिनट, अर्थात पल- पल का विवरण था। वह किससे मिला, कहां गया, उसके साथ कौन था, इन सब बातों पर काफ़ी मेहनत से प्रामाणिक जानकारी जुटाई गई थी।
इस विवरण का लब्बोलुआब ये था कि पहली नज़र में यह एकतरफा समलिंगी आकर्षण का मामला था।
रैगिंग के दौरान वर्तमान के निकट आने पर भावन सिंह वर्तमान के लिए आकर्षण महसूस करने लगा।
बात काफ़ी आगे तक इसलिए बढ़ सकी क्योंकि भावन सिंह वर्तमान का सीनियर छात्र था और वर्तमान उसे अकारण नाराज़ करने या उससे संबंधों का बिगाड़ करने का जोखिम नहीं लेना चाहता था।
अपराध के तंतु तलाशने के लिए समिति के सदस्य पूर्व न्यायाधीश महोदय के सी जैन ने कई बारीक बिंदु खोज निकाले।
उन्हें विभिन्न स्तरों पर कुछ संस्थागत प्रश्नों का निवारण भी तलाशना पड़ा।
- क्या इस तथ्य की अनदेखी की जा रही है कि वर्तमान हॉस्टल में प्रवेश मिलने से पहले कुछ दिन अपने ही शहर की एक लड़की सारंगी के साथ एक गेस्टहाउस में रहा था? वर्तमान के मित्र आर्यन का कहना था कि ये प्रवास "लिव इन" की तरह न माना जाए क्योंकि ये केवल अतिथिगृह में तत्काल अतिरिक्त कमरा उपलब्ध न होने का मामला था। आर्यन को कभी इस बात की भनक अथवा इस पर शंका कर पाने का कोई कारण नहीं मिला जबकि वर्तमान और उसका साथ काफी अंतरंगता से रहा था। महिला प्रोफ़ेसर दीना थॉमस ने भी कई बार इस बात पर आपत्ति जताई कि "लड़की" के जीवन के संयोगों को भी उसके शारीरिक विदोहन से ही क्यों जोड़ दिया जाता है? एक मनुष्य के रूप में उसके अधिकार कहां हैं? उनकी कौन हिफाज़त करेगा? उनका कहना ये था कि इस बात को वर्तमान को संदेह लाभ देने की नीयत से नहीं उठाया जा रहा।
एक अन्य सदस्य प्रो.सुल्तानिया की स्पष्ट राय थी कि एक उन्नीस वर्षीय लड़के को किसी लड़की के साथ कई पूरी रातें सोने का तात्कालिक अवसर संयोग से मिल जाए और वह बाद में अपने किसी सहपाठी अथवा घनिष्ट मित्र से इसका जिक्र तक न करे, ऐसा हो ही नहीं सकता। इस बात की मनोवैज्ञानिकता को भी रिकॉर्ड पर लिया गया और माना गया।
पुलिस अधिकारी दिव्यात्मा शबनम को कुछ देर के लिए इस प्रकरण में जातिगत उत्पीड़न का एंगल भी दिखाई दिया जिसे तत्काल दरकिनार कर दिया गया। उनका कहना था कि कई साल से रह रहा कबीर छात्रावास से निष्कासन को एक बार कानून की चौखट तक भी ले जा चुका है संभवतः उसकी जड़ें उखाड़ने की मंशा भी इस वारदात से जोड़ी जा रही हो।
नहीं नहीं... शैक्षणिक संस्थानों को भरोसे से बिलकुल ही महरूम मत कीजिए, आपकी चाय ठंडी हो रही है.. कह कर कुलपति महाशय ने मामले को परिहास की छतरी देकर अनावृष्टि से बचाया।
हम में से किसी की लिपस्टिक सच कहने से नहीं बिगड़ेगी! कहते हुए एडीएम सिटी,भूरेश्वर मीणा ने पहले ही समिति की एकमात्र महिला सदस्य दीना जी से क्षमायाचना कर डाली।
इस बात के पूरे प्रमाण हैं कि इस मामले में जबरदस्त यौन हिंसा की भूमिका है। इतना ही नहीं, उस रात के खुले तांडव के तार ब्लैकमेलिंग और जान की धमकी से भी जुड़े हैं।
- इसे तांडव मत कहिए। जाइए पहले पुस्तकालय में कुछ समय बिताकर ये जानने की चेष्टा कीजिए कि तांडव क्या है, ये क्यों, कहां और किसने किया था? प्रोफ़ेसर जनार्दन भारद्वाज कुपित हो गए।
- पुस्तकालय में क्यों?
- क्योंकि अपने अध्ययन काल में तो कभी गए नहीं होंगे न!
- हां, मैं कहीं नहीं गया, कचरे के गड्ढे से सीधा मीनार के गुंबद पर ही प्राणप्रतिष्ठा हुई है मेरी। पर पुस्तकालय में क्यों?
सब हतप्रभ रह गए। इस गरमा- गर्मी की वजह किसी को समझ में नहीं आई।
... पुस्तकालय में तो वह जाए जिसके पीछे- पीछे अकूत ज्ञान का ओवरलोडेड ट्रक न चल रहा हो! हमारे साथ तो आप हैं न!
अब कुछ दबी - ढकी हंसी सुनाई दी, पर उसकी तुर्श आवाज़ कुर्सियां घसीटे जाने की खरहरी ध्वनि में दब कर रह गई क्योंकि माननीय सदस्यगण उच्च चाय के लिए लॉबी में जाने हेतु उठने लगे थे।
विवाद ज्यादा नहीं बढ़ सका क्योंकि सेनापतियों के रास्ते अलग - अलग हो गए थे। जनार्दन जी को "सुविधाओं" अर्थात वाशरूम की दिशा में जाना था और भूरेश्वर जी को चाय की तलब लग आई थी।
चंद दिनों के बाद परिसर की चहल - पहल वापस लौट आई। छात्रों का एक समूह इस वर्ष के "धुस- कुटुस समारोह" में मंचित किए जाने वाले नाटक "ये रात फिर भी आयेगी" के रिहर्सल में जुटा हुआ था। कैंपस की सत्य घटना पर आधारित इस नाटक की स्क्रिप्ट लिखी जा चुकी थी और वर्तमान की भूमिका के लिए उसी के पार्टनर और मित्र आर्यन को मना लिया गया था।
नाट्य- निर्देशक कबीर की नींद इन दिनों आशंका और संभावना ने मिल कर हराम कर रखी थी। उसे आशंका थी कि सामूहिक स्खलन अर्थात ग्रुप सेक्स को सार्वजनिक रूप से मंच पर दिखाने की अनुमति मिलेगी या नहीं...पर साथ में ये संभावना भी बलवती थी कि ये इस मंच पर अपने किस्म का पहला ड्रामा होगा जो शायद अपने दिवंगत साथी वर्तमान को सच्ची श्रद्धांजलि देने का अद्भुत दुर्लभ संयोग भी हो!
अंग्रेज़ी विभाग का "हॉबगोब्लिन ड्रामा क्लब "इस सत्य घटना पर आधारित नाटक का अनुवाद भी तैयार करवा रहा था जिसका नाम तय कर लिया गया था - "ऑड मैन आउट"!
- प्रबोध कुमार गोविल