shabd-logo

5. सब गलत तो नहीं

4 अगस्त 2022

21 बार देखा गया 21
मैंने नाश्ता करने के बाद निमंत्रण- पत्र एक बार फ़िर देखा। कार्यक्रम ग्यारह बजे से था। ग्यारह बजे स्वागत, ग्यारह दस पर सरस्वती वंदना,ग्यारह पंद्रह से अतिथि परिचय, ... आदि -आदि।
- चाय और लोगे? पत्नी की आवाज़ आई।- अरे नहीं, अभी- अभी तो नाश्ते के साथ ली है।इस बेरुखे से इंकार ने मानो पत्नी का अंतर खरोंच दिया। कुछ तेज़ आवाज़ में बोली- हां - हां वो तो मुझे भी पता है कि अभी पी है। मैं तो अपने लिए बना रही थी इसलिए पूछ लिया। अभी वहां प्रोग्राम में जाओगे तो झट से दोबारा पी लोगे। बस मेरा पूछना ही गुनाह हो गया।- अरे बाबा, जब तुम्हें मालूम ही है कि वहां दोबारा पीनी पड़ेगी तो फ़िर ये तीसरा अटेम्प्ट करने की ज़रूरत ही क्या है?- हां मैं ही सिरफिरी हूं जो तुम्हें चाय के लिए बार - बार पूछ कर खंजर भौंक रही हूं। वहां तो सब तुम्हारे चहेते पलक - पांवड़े बिछाए बैठे हैं तुम्हें चाय पिलाने को... तो पियोगे ही!- अच्छा बाबा माफ़ कर दो, बना लो आधा कप और। लो मैं तो जा ही रहा हूं अब तुम्हारी सब उलझन दूर हुई। बुला लूं टैक्सी?- ग्यारह बजे से प्रोग्राम है, अभी सवा दस भी नहीं बजे, क्यों उतावले हो रहे हो? ये क्यों नहीं कहते कि घर काट रहा है। पत्नी की आवाज़ आई।सच में ये उम्र भी बड़ी अजीब होती है, चप्पल पहनकर जाने पर नई पीढ़ी ये समझती है कि आप उनके प्रोग्राम की गरिमा नहीं समझ रहे, जूते पहनने से पैर की नसों में चींटियां सी चलने लगती हैं, जैसे खून रुकने लगा हो धमनियों का। नई कमीज़ पहनी तो कफ के बटन मुश्किल से बंद होंगे। पत्नी से मदद मांगो तो फ़िर भगवान ही मालिक है। कहेगी- कहां बारात के लिए जाना है सज- धज के? ऐसे तो तब भी तैयार नहीं हुए थे जब मेरे घर की देहरी पर आए थे तोरण मारने!- अरे बाबा, तू रहने दे, मैं अपने आप लगा लूंगा बटन।
बीस मिनट का रास्ता भी है। वहां पहुंच कर भी कौन से कैब से जंप मार कर मंच पर पहुंच जाना है। दो- चार मिनट तो लगेंगे ही उतर कर भीतर समारोह स्थल पर जाने में। बाहर निकलते- निकलते भी पीछे से पत्नी द्वारा हड़काया जाता है - ये रुमाल यहीं पड़ा छोड़ जाने के लिए निकलवाया था क्या, इसे लेकर तो जाओ। हां- हां, अब इसकी ज़रूरत क्यों पड़ेगी, ये तो मेरे ही सामने पसीना पौंछने में काम आता है न? कार आगे बढ़ी तो झिकझिक पीछे छूटी। अजीब बात है, डॉक्टर को कभी समझ में नहीं आया कि मेरा ब्लडप्रेशर क्यों बढ़ जाता है, वह कम करने की दवा ज़रूर दे देता था।पर मुझे पता चल जाता था कि ये क्यों बढ़ गया होगा। क्योंकि शहर से बाहर जाने पर मैं पत्नी से कहता कि स्टेशन चलें, सात बज गए।पत्नी तमक कर कहती- गाड़ी साढ़े नौ बजे की है, अभी से वहां जाकर क्या प्राणायाम करोगे स्टेशन पर?मैं समझाता- भागवान, पौन घंटे का तो रास्ता ही है, प्लेटफॉर्म पर पहुंचने में भी समय लगेगा। भागते- भागते गाड़ी में चढ़ोगे। फ़िर सामान की ठेला -ठाली करोगे, यात्रियों से उलझते फिरोगे। कभी रिक्शा वाले का छुट्टा नहीं है तो कभी कुली नहीं है। समय से जाकर चैन से बैठ लो।  बेचारे खून को भी लड़ना पड़ता इन समय की पाबंदी के दुश्मनों से!
ये सब सोचने में प्रोग्राम की जगह आ भी गई। पता ही नहीं चला। चलो, अभी तो ग्यारह बजने में डेढ़ मिनट बाक़ी है। एक बार टॉयलेट और होकर आया जा सकता है। अच्छा है, बीच में उठना नहीं पड़ेगा। मैं वाशरूम से निकल कर रुमाल से हाथ पौंछता हुआ हॉल में दाख़िल हुआ।चेहरे पर एक मृदु मुस्कान है जो कार्यक्रम के माहौल को ख़ुशगवार बना रही है।ये युवक कौन है?शायद बिजली की फिटिंग वाला। माइक सेट कर रहा है। दो बच्चियां एक कौने में पड़ी मेज़ पर गुलदस्ते सजा रही हैं।एक ने नमस्ते की तो उसी से पूछ लिया- बशेशर जी नहीं आए?- जी, वो... वो क्या, उधर। लड़की बोली।- अच्छा- अच्छा, मेरा ध्यान नहीं गया। वो साइड में बैनर ठीक कर रहे हैं! मैंने एक मुस्कान उधर भी उछाली।बदले में उनकी अंगुली ने मुझे ख़ाली पड़े हॉल की उस कुर्सी पर बैठने का इशारा किया जिस पर "रिज़र्व" की तख्ती लगी है।ग्यारह बीस हो गए हैं...कोई नहीं आया? इक्का- दुक्का करके लोगों के आने की आहटें सुनाई देने लगी हैं।रात को अपने कमरे में बैठे हुए सुबह के कार्यक्रम का निमंत्रण फिर मेरे हाथ में है। इसका रंग बहुत प्यारा है, डिजाइन भी सुन्दर है, पेपर क्वालिटी भी बढ़िया, ए वन। केवल इस पर छपे शब्दों में दम नहीं है, समय पर कोई ध्यान नहीं देता।लेकिन अगर छपे शब्द में ही दम नहीं तो फ़िर फ़ायदा ही क्या? क्या किया हमने ज़िन्दगी भर? छपे शब्द ही तो रचे? हम लिखते कुछ रहे, और करते कुछ और रहे?लिखा कि सच बोलो, बोला झूठ?लिखते रहे कि नशा बुरा है, पिएं खूब?लिखा कि रिश्वत बुरी है, लेते रहे घूस? तो फ़ायदा ही क्या,ऐसी बातें पढ़- लिख कर आंखें ख़राब करने से? क्यों न हम भी मैदानों में जाकर खेलें, बागों में घूमें, शादियों में दहेज लूटें? दो और दो पांच हमारा भी मंत्र हो!
मैंने निमंत्रण पत्र को बिखरा दिया टुकड़े- टुकड़े करके।सुबह मेरी पत्नी ने घूर कर देखा कि मैं कमरे में झाड़ू लगा रहा हूं तो वो दौड़ कर वाशरूम में गई और अपनी आंखों पर पानी के छींटे मारने लगी।
- प्रबोध कुमार गोविल

21
रचनाएँ
धुस - कुटुस
0.0
इस किताब में प्रबोध कुमार गोविल की चुनिंदा इक्कीस कहानियां संकलित हैं जो हिंदी की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित होकर पर्याप्त चर्चित हैं। उल्लेखनीय है कि सभी में मुख्य सरोकार के रूप में आधुनिक मानवीय मूल्यों का ही समावेश है।
1

1.ऑड मैन आउट

4 अगस्त 2022
0
0
0

छुट्टी का दिन होने से परिसर में सन्नाटा सा था। कहीं- कहीं चलते कूलरों की आवाज़ से ही पता चलता था कि कार्यालय में कुछ लोग मौजूद हैं। वो तो होते ही। छुट्टी के दिन इतनी ज़रूरी मीटिंग हो तो सहायक कर्मचारि

2

2. हज़बां

4 अगस्त 2022
0
0
0

तेज़ धूप थी। हेलमेट सुहा रहा था। क्या करें, कोई सरकारी नौकरी होती तो अभी आराम से सरकारी बिल पर चलते एसी में उनींदे से बैठे होते। या फ़िर घर का कोई व्यापार ही होता तो तेज़ धूप का बहाना करके फ़ोन से कर्

3

3. गुलाब का ख़ून

4 अगस्त 2022
0
0
0

ज़्यादा हरियाली तो अब नहीं बची थी पर जो कुछ भी था, उसे तो बचाना ही था। इसीलिए वो पानी का पाइप हाथ में लेकर लॉन के कौने वाले उस पौधे पर धार छोड़ने में लगे थे जिसमें बगीचे का एकमात्र गुलाब मुश्किल से आज

4

4. चपरकनाती

4 अगस्त 2022
0
0
0

दूरबीन से इधर- उधर देखता हुआ वो सैलानी अपनी छोटी सी मोटरबोट को किनारे ले आया। उसे कुछ मछुआरे दिखे थे। उन्हीं से बात होने लगी। टोकरी से कुछ छोटी मछलियों को चुनकर अलग करते हुए लड़के से उसने पूछा- इन्हें

5

5. सब गलत तो नहीं

4 अगस्त 2022
0
0
0

मैंने नाश्ता करने के बाद निमंत्रण- पत्र एक बार फ़िर देखा। कार्यक्रम ग्यारह बजे से था। ग्यारह बजे स्वागत, ग्यारह दस पर सरस्वती वंदना,ग्यारह पंद्रह से अतिथि परिचय, ... आदि -आदि।- चाय और लोगे? पत्नी की आ

6

6. दुनिया पूरी

4 अगस्त 2022
0
0
0

मेरी पत्नी का देहांत हुए पांच वर्ष बीत गए थे। ऐसे दुःख कम तो कभी नहीं होते, पर मन पर विवशता व उदासीनता की एक परत सी जम गई थी। इससे दुःख हल्का लगने लगा था।जीवन और परिवार की लगभग सभी जिम्मेदारियां पूरी

7

7. विजेता

4 अगस्त 2022
0
0
0

मेरे पास पूरा एक घंटा था।स्पोर्ट्स क्लब में टेनिस की कोचिंग के लिए अपने पोते को छोड़ने के लिए मैं रोज़ छह बजे यहां आता था।फ़िर एक घंटे तक जब तक उसकी कोचिंग चलती, मैं भी इसी कैंपस में ही अपना शाम का टह

8

8. धनिए की चटनी

4 अगस्त 2022
0
0
0

आंसू रुक नहीं रहे थे।कभी कॉलेज के दिनों में पढ़ा था कि पुरुष रोते नहीं हैं। बस, इसी बात का आसरा था कि ये रोना भी कोई रोना है।जब प्याज़ अच्छी तरह पिस गई, तो मैंने सिल पर कतरे हुए अदरक के टुकड़े डाले और

9

9. इतिहास भक्षी

4 अगस्त 2022
0
0
0

नब्बे साल की बूढ़ी आँखों में चमक आ गई। लाठी थामे चल रहे हाथों का कंपकपाना कुछ कम हो गया। … वो उधर , वो वो भी, वो वाला भी... और वो पूरी की पूरी कतार … कह कर जब बूढ़ा खिसियानी सी

10

10. प्रकृति मैम

4 अगस्त 2022
0
0
0

अरे सर, रुटना रुटना (रुकना रुकना)...अविनाश दौड़ता-चिल्लाता आया। -क्या हुआ? मैं पीछे देख कर चौंका। -सर, टन्सेसन मिलेडा। -अरे कन्सेशन ऐसे नहीं मिलता। मैंने लापरवाही से कहा। -तो टेसे मिलटा है

11

11. आर्यन

4 अगस्त 2022
0
0
0

और दिनों के विपरीत आर्यन छुट्टी होते ही बैग लेकर स्कूल बस की ओर नहीं दौड़ा बल्कि धीरे-धीरे चलता हुआ, क्लास रूम के सामने वाले पोर्च में रुक गया। इतना ही नहीं, उसने दिव्यांश को भी कलाई से पकड़ कर रोक लिया

12

12. अखिलेश्वर बाबू

4 अगस्त 2022
0
0
0

वह सुनसान और उजड़ा हुआ सा इलाका था। करीब से करीब का गांव भी वहां से तीन चार किलोमीटर दूर था। रास्ता,सड़क कहीं कुछ नहीं, झाड़ झंकाड़, धूल धक्कड़, तीखी और तल्ख़ धूप, सीधे सूरज की। छांव के लिए कुछ नहीं।

13

13. एटिकेट्स

4 अगस्त 2022
0
0
0

किसी की समझ में नहीं आया कि आख़िर हुआ क्या? आवाज़ें सुन कर झांकने सब चले आए। करण गुस्से से तमतमाया हुआ खड़ा था। उसने आंगन में खड़ी सायकिल को पहले ज़ोर से लात मारी फ़िर उसे हैंडल से पकड़ कर गिरा

14

14. शराफ़त

4 अगस्त 2022
0
0
0

मेरी और शराफ़त की पहली मुलाकात बेहद नाटकीय तरीक़े से हुई थी। भोपाल तक सोलह घंटे का सफ़र था, बस का। सारी रात बस में निकाल लेने के बावजूद अभी कुल नौ घंटे हुए थे और कम से कम सात घंटे का सफर अभी बाक़ी था।

15

15. खिलते पत्थर

4 अगस्त 2022
0
0
0

उन्हें इस अपार्टमेंट में आए ज़्यादा समय नहीं हुआ था। ज़्यादा समय कहां से होता। ये तो कॉलोनी ही नई थी। फ़िर ये इमारत तो और भी नई।शहर से कुछ दूर भी थी ये बस्ती।सब कुछ नया - नया, धीरे- धीरे बसता हुआ सा।व

16

16. विषैला वायरस

4 अगस्त 2022
0
0
0

वो रो रहे थे। शायद इसीलिए दरवाज़ा खोलने में देर लगी। घंटी भी मुझे दो- तीन बार बजानी पड़ी। एकबार तो मुझे भी लगने लगा था कि बार - बार घंटी बजाने से कहीं पास -पड़ोस वाले न इकट्ठे हो जाएं। मैं रुक गया। पर

17

17. सांझा

4 अगस्त 2022
0
0
0

- सेव क्या भाव हैं? मैंने एक सेव हाथ में उठाकर उसे मसलते हुए लड़के की ओर देखते हुए पूछा। - साठ रुपए किलो! कह कर उसने आंखें झुका लीं। मैं चौंक गया, क्योंकि अभी थोड़ी देर पहले मैंने टीवी पर सुना था कि क

18

18. इंद्रधनुष

4 अगस्त 2022
0
0
0

आज वो कुछ अलग सा दिख रहा था। वो लंबा है, ये तो दिखता ही है, मगर उसके बाजू मछलियों से चिकने और गदराए हुए होंगे ये कभी ध्यान ही नहीं गया। जाता भी कैसे, रोज़ तो वो फॉर्मल शर्ट पहने हुए होता है। डार्क कलर

19

19. थोड़ी देर और ठहर

4 अगस्त 2022
0
0
0

-नहीं-नहीं, जेब में चूहा मुझसे नहीं रखा जायेगा. मर गया तो? बदन में सुरसुरी सी होती रहेगी. काट लेगा, इतनी देर चुपचाप थोड़े ही रहेगा? सारे में बदबू फैलेगी. कहीं निकल भागा तो?-कुछ नहीं होगा,

20

20. हड़बड़ी में उगा सूरज

4 अगस्त 2022
0
0
0

क्रिस्टीना से मेरी पहचान कब से है ? यह एक ऐसा प्रश्न है जिसके बहुत सारे उत्तर हो जाएंगे, और ताज़्जुब मुझे बहुत सारे उत्तर हो जाने का नहीं होगा,बल्कि इस बात का होगा कि उन सारे उत्तरों में से कोई भी ग़ल

21

21. धुस - कुटुस

4 अगस्त 2022
0
0
0

पचास साल के इतिहास में ये पहला मौका था कि अंतरराष्ट्रीय ख्याति के इस इंस्टीट्यूट में उसी के एक पुराने छात्र को डायरेक्टर बनाया गया था। लीली पुटियन जी का बायोडेटा देखते ही बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट ने एकमत से

---

किताब पढ़िए