shabd-logo

7. विजेता

4 अगस्त 2022

14 बार देखा गया 14

मेरे पास पूरा एक घंटा था।स्पोर्ट्स क्लब में टेनिस की कोचिंग के लिए अपने पोते को छोड़ने के लिए मैं रोज़ छह बजे यहां आता था।फ़िर एक घंटे तक जब तक उसकी कोचिंग चलती, मैं भी इसी कैंपस में ही अपना शाम का टहलना पूरा कर लेता था। भीतर के लॉन और सड़कों पर किनारे - किनारे घूमता हुआ मैं इस समय बिल्कुल फ़्री महसूस करता हुआ अपनी दिन भर की थकान को भूल जाता था।एक घंटे बाद जब वह अपना रैकेट उठाए बाहर निकलता तो हम बातें करते हुए घर चले आते।वो मुझे बताता कि आज उसने किसे हराया, और किससे हारा, कौन - कौन सा यादगार शॉट लगाया, किस बात पर कोच सर ने उसे टोका, और किस बात पर उसकी तारीफ़ की।मैं ज़्यादा समय तो उसकी बात सुनने में लगाता, पर जब वह बोलता - बोलता थक जाता और ज़रा सांस लेने के लिए ठहरता, तब बातचीत का सिरा टूटने न देने की गरज से मैं उसे बताने लगता कि मुझे टहलने के दौरान उसके कौन- कौन से टीचर्स मिले, और कौन से दोस्त!मैं स्पोर्ट्स क्लब के मेन गेट से निकल कर जब बाहर आया तो वहां की साइड सड़क क्रॉस करते समय धीरे से वहां खड़े वॉचमैन ने मुझसे कहा - प्लीज़ सर, एक मिनट रुक जाइए !- क्यों? मैंने प्रश्न करने की निगाह से उसे देखते हुए अपनी चाल ज़रा धीमी की ही थी कि सामने सड़क से एक वैन ने गेट के भीतर प्रवेश किया।मैं रुक गया।उस वैन के पीछे- पीछे एक कार और आई। मेरा बढ़ा हुआ कदम रुक गया क्योंकि उस कार के पीछे एक साथ चार- पांच कारें उसी तरह धीमी गति से चलती हुई और आईं।कारों के पीछे फ़िर दो जीपें और थीं, तथा उनके बाद एक मेटाडोर में कुछ पुलिस कर्मी थे।मेटाडोर के बाद दो कारें और गुज़र गईं, उसके बाद पर्दे लगी हुई एक लम्बी काली कार मंथर गति से बल खाती निकलने लगी। कार की सभी खिड़कियों पर सुनहरे पर्दे टंगे थे।उसके बाद एक जीप और फ़िर एक वैन गुजरी जिसकी खिड़कियों से कुछ रायफलें या बंदूकें झांक रही थीं। इसके बाद एक एम्बुलेंस थी फिर एक रेड क्रॉस लगी कार के साथ एक ट्रॉलीनुमा गाड़ी भी सरसरा कर गुज़र गई। मुझे कुल मिला कर ऐसा लगा, जैसे कोई धड़धड़ाती हुई मालगाड़ी जीीी जीीी सामने से गुुजरी हो।वॉचमैन अब कुछ संतरियों की ओर देख कर मुस्करा दिया जो वहां इधर- उधर पोजीशन लेकर खड़े थे।उन्होंने हाथ में पकड़े यंत्र अब नीचे झुका लिए थे। एक दो पुलिस अधिकारियों की वो आवाज़ भी अब मंद पड़ गई थी जो वो वायरलैस संदेश में दे रहे थे।वॉचमैन ने मेरी ओर अदब से देखते हुए कुछ विनम्रता से कहा- अब आप जा सकते हैं सर!मैं सड़क के किनारे आगे बढ़ने लगा।गाड़ियों का काफ़िला घूम कर वहां से कुछ दूरी पर बने एक भव्य आलीशान बंगले की इमारत के इर्द- गिर्द खड़ा हो गया।मैं एक चक्कर लगा कर वापस वहीं आकर स्पोर्ट्स क्लब के सामने रुका ही था कि कुछ लोगों का एक छोटा सा समूह आपस में बातें करते हुए सामने से गुज़रा।लोग कम थे पर उनकी आवाज़ की खनक से ऐसा लग रहा था कि वो किसी गंभीर और सामयिक मुद्दे पर बात कर रहे हैं। उनकी चर्चा में पर्याप्त उत्तेजना भी थी।मुझे यकायक याद आया कि सुबह अख़बार भी तो इसी तरह की खबरों से भरा हुआ दिखाई दे रहा था जिस तरह की बातें ये लोग कर रहे थे।मैं मन ही मन ये विचार बना बैठा कि बच्चा खेल कर अा जाए तो मैं फ़ौरन उसे लेकर घर पहुंच जाऊंगा और टी वी पर विस्तार से देख कर ये जानने की कोशिश करूंगा कि आख़िर माजरा क्या है!मुझे सामने से गुजरते हुए लोगों की बातचीत से कुछ ऐसा आभास हुआ मानो कोई बड़ी घटना घटी है। कुछ लोग कह रहे थे कि हो न हो, आज ही रात से पूरे शहर में कर्फ्यू लग जाएगा।मेरे दिमाग़ में तुरंत ये बात कौंध गई कि शायद ये सब चर्चा और गतिविधियां उसी महामारी को लेकर हैं जिसके दुनिया भर में फ़ैल जाने की ख़बरों से आज का अख़बार रंगा हुआ था।अख़बार में लिखा था कि कुछ देशों में अचानक एक ऐसी भयानक बीमारी फ़ैल गई है जिसका अभी तक दुनिया में कोई इलाज नहीं है। मुझे याद आया कि कई देशों में इस बीमारी से संक्रमित लोगों को अलग थलग किया जा रहा था क्योंकि अब तक इसका यही एकमात्र इलाज था। अर्थात बचाव! ये खतरनाक बीमारी भी एक आदमी से दूसरे आदमी के शरीर में वैसे ही पहुंच रही थी जैसे कुछ वर्ष पहले एड्स या एचआईवी के बारे में कहा जा रहा था। उसका भी दुनिया में कोई इलाज नहीं था, और लोगों को बार- बार इस बात के लिए सचेत किया जा रहा था कि वे अनजान व्यक्ति के साथ शरीर संबंध न बनाएं। न जाने दुनिया के कौन से देश से जन्म लेकर अब ये नई बीमारी सारी दुनिया के उन्मुक्त सफ़र पर निकल पड़ी थी और एक से दूसरे व्यक्ति को ठीक उसी तरह संक्रमित कर रही थी।मुझे अपनी उम्र के चंद ऐसे पड़ाव याद आने लगे जब किसी न किसी महामारी ने अनियंत्रित होकर दुनिया में हड़कंप सा मचा दिया था। प्लेग, हैजा, चेचक आदि भी इसी तरह तो मानव जीवन को ललकारती हुई अाई थीं।शाम तक मीडिया में ये खबर फ़ैल गई कि पूरे देश में ही हर व्यक्ति को अपने घर में ही रहने की सलाह दी जा रही है। कहा जा रहा था कि कोई किसी को न छुए, न किसी से हाथ मिलाए। मैंने अभी- अभी नज़रों के सामने से जो काफ़िला गुजरता हुआ देखा था, वो मेरी आंखों में कौंध गया। मुझे लगा कि कोई भी रोग चाहे कितना ही भयंकर हो, वो इंसान को छू नहीं सकता। आख़िर में रोग को इंसान के हाथों पराजय स्वीकार करनी ही पड़ती है। मैंने देखा था कि वो इंसान जिन गाड़ियों में थे वो बुलेट प्रूफ थीं, उनके शीशे काले रंग से इस तरह ढके हुए थे कि उनमें किसी मच्छर का घुसना भी दुश्वार था। उनमें बंदूखें भी थीं, दवाएं भी, डॉक्टर भी, भोजन पानी भी। रोग कभी इतना ताकतवर नहीं हो सकता कि इंंसान को हरा दे। 
इंसान विजेता है। 
- प्रबोध कुमार गोविल


21
रचनाएँ
धुस - कुटुस
0.0
इस किताब में प्रबोध कुमार गोविल की चुनिंदा इक्कीस कहानियां संकलित हैं जो हिंदी की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित होकर पर्याप्त चर्चित हैं। उल्लेखनीय है कि सभी में मुख्य सरोकार के रूप में आधुनिक मानवीय मूल्यों का ही समावेश है।
1

1.ऑड मैन आउट

4 अगस्त 2022
0
0
0

छुट्टी का दिन होने से परिसर में सन्नाटा सा था। कहीं- कहीं चलते कूलरों की आवाज़ से ही पता चलता था कि कार्यालय में कुछ लोग मौजूद हैं। वो तो होते ही। छुट्टी के दिन इतनी ज़रूरी मीटिंग हो तो सहायक कर्मचारि

2

2. हज़बां

4 अगस्त 2022
0
0
0

तेज़ धूप थी। हेलमेट सुहा रहा था। क्या करें, कोई सरकारी नौकरी होती तो अभी आराम से सरकारी बिल पर चलते एसी में उनींदे से बैठे होते। या फ़िर घर का कोई व्यापार ही होता तो तेज़ धूप का बहाना करके फ़ोन से कर्

3

3. गुलाब का ख़ून

4 अगस्त 2022
0
0
0

ज़्यादा हरियाली तो अब नहीं बची थी पर जो कुछ भी था, उसे तो बचाना ही था। इसीलिए वो पानी का पाइप हाथ में लेकर लॉन के कौने वाले उस पौधे पर धार छोड़ने में लगे थे जिसमें बगीचे का एकमात्र गुलाब मुश्किल से आज

4

4. चपरकनाती

4 अगस्त 2022
0
0
0

दूरबीन से इधर- उधर देखता हुआ वो सैलानी अपनी छोटी सी मोटरबोट को किनारे ले आया। उसे कुछ मछुआरे दिखे थे। उन्हीं से बात होने लगी। टोकरी से कुछ छोटी मछलियों को चुनकर अलग करते हुए लड़के से उसने पूछा- इन्हें

5

5. सब गलत तो नहीं

4 अगस्त 2022
0
0
0

मैंने नाश्ता करने के बाद निमंत्रण- पत्र एक बार फ़िर देखा। कार्यक्रम ग्यारह बजे से था। ग्यारह बजे स्वागत, ग्यारह दस पर सरस्वती वंदना,ग्यारह पंद्रह से अतिथि परिचय, ... आदि -आदि।- चाय और लोगे? पत्नी की आ

6

6. दुनिया पूरी

4 अगस्त 2022
0
0
0

मेरी पत्नी का देहांत हुए पांच वर्ष बीत गए थे। ऐसे दुःख कम तो कभी नहीं होते, पर मन पर विवशता व उदासीनता की एक परत सी जम गई थी। इससे दुःख हल्का लगने लगा था।जीवन और परिवार की लगभग सभी जिम्मेदारियां पूरी

7

7. विजेता

4 अगस्त 2022
0
0
0

मेरे पास पूरा एक घंटा था।स्पोर्ट्स क्लब में टेनिस की कोचिंग के लिए अपने पोते को छोड़ने के लिए मैं रोज़ छह बजे यहां आता था।फ़िर एक घंटे तक जब तक उसकी कोचिंग चलती, मैं भी इसी कैंपस में ही अपना शाम का टह

8

8. धनिए की चटनी

4 अगस्त 2022
0
0
0

आंसू रुक नहीं रहे थे।कभी कॉलेज के दिनों में पढ़ा था कि पुरुष रोते नहीं हैं। बस, इसी बात का आसरा था कि ये रोना भी कोई रोना है।जब प्याज़ अच्छी तरह पिस गई, तो मैंने सिल पर कतरे हुए अदरक के टुकड़े डाले और

9

9. इतिहास भक्षी

4 अगस्त 2022
0
0
0

नब्बे साल की बूढ़ी आँखों में चमक आ गई। लाठी थामे चल रहे हाथों का कंपकपाना कुछ कम हो गया। … वो उधर , वो वो भी, वो वाला भी... और वो पूरी की पूरी कतार … कह कर जब बूढ़ा खिसियानी सी

10

10. प्रकृति मैम

4 अगस्त 2022
0
0
0

अरे सर, रुटना रुटना (रुकना रुकना)...अविनाश दौड़ता-चिल्लाता आया। -क्या हुआ? मैं पीछे देख कर चौंका। -सर, टन्सेसन मिलेडा। -अरे कन्सेशन ऐसे नहीं मिलता। मैंने लापरवाही से कहा। -तो टेसे मिलटा है

11

11. आर्यन

4 अगस्त 2022
0
0
0

और दिनों के विपरीत आर्यन छुट्टी होते ही बैग लेकर स्कूल बस की ओर नहीं दौड़ा बल्कि धीरे-धीरे चलता हुआ, क्लास रूम के सामने वाले पोर्च में रुक गया। इतना ही नहीं, उसने दिव्यांश को भी कलाई से पकड़ कर रोक लिया

12

12. अखिलेश्वर बाबू

4 अगस्त 2022
0
0
0

वह सुनसान और उजड़ा हुआ सा इलाका था। करीब से करीब का गांव भी वहां से तीन चार किलोमीटर दूर था। रास्ता,सड़क कहीं कुछ नहीं, झाड़ झंकाड़, धूल धक्कड़, तीखी और तल्ख़ धूप, सीधे सूरज की। छांव के लिए कुछ नहीं।

13

13. एटिकेट्स

4 अगस्त 2022
0
0
0

किसी की समझ में नहीं आया कि आख़िर हुआ क्या? आवाज़ें सुन कर झांकने सब चले आए। करण गुस्से से तमतमाया हुआ खड़ा था। उसने आंगन में खड़ी सायकिल को पहले ज़ोर से लात मारी फ़िर उसे हैंडल से पकड़ कर गिरा

14

14. शराफ़त

4 अगस्त 2022
0
0
0

मेरी और शराफ़त की पहली मुलाकात बेहद नाटकीय तरीक़े से हुई थी। भोपाल तक सोलह घंटे का सफ़र था, बस का। सारी रात बस में निकाल लेने के बावजूद अभी कुल नौ घंटे हुए थे और कम से कम सात घंटे का सफर अभी बाक़ी था।

15

15. खिलते पत्थर

4 अगस्त 2022
0
0
0

उन्हें इस अपार्टमेंट में आए ज़्यादा समय नहीं हुआ था। ज़्यादा समय कहां से होता। ये तो कॉलोनी ही नई थी। फ़िर ये इमारत तो और भी नई।शहर से कुछ दूर भी थी ये बस्ती।सब कुछ नया - नया, धीरे- धीरे बसता हुआ सा।व

16

16. विषैला वायरस

4 अगस्त 2022
0
0
0

वो रो रहे थे। शायद इसीलिए दरवाज़ा खोलने में देर लगी। घंटी भी मुझे दो- तीन बार बजानी पड़ी। एकबार तो मुझे भी लगने लगा था कि बार - बार घंटी बजाने से कहीं पास -पड़ोस वाले न इकट्ठे हो जाएं। मैं रुक गया। पर

17

17. सांझा

4 अगस्त 2022
0
0
0

- सेव क्या भाव हैं? मैंने एक सेव हाथ में उठाकर उसे मसलते हुए लड़के की ओर देखते हुए पूछा। - साठ रुपए किलो! कह कर उसने आंखें झुका लीं। मैं चौंक गया, क्योंकि अभी थोड़ी देर पहले मैंने टीवी पर सुना था कि क

18

18. इंद्रधनुष

4 अगस्त 2022
0
0
0

आज वो कुछ अलग सा दिख रहा था। वो लंबा है, ये तो दिखता ही है, मगर उसके बाजू मछलियों से चिकने और गदराए हुए होंगे ये कभी ध्यान ही नहीं गया। जाता भी कैसे, रोज़ तो वो फॉर्मल शर्ट पहने हुए होता है। डार्क कलर

19

19. थोड़ी देर और ठहर

4 अगस्त 2022
0
0
0

-नहीं-नहीं, जेब में चूहा मुझसे नहीं रखा जायेगा. मर गया तो? बदन में सुरसुरी सी होती रहेगी. काट लेगा, इतनी देर चुपचाप थोड़े ही रहेगा? सारे में बदबू फैलेगी. कहीं निकल भागा तो?-कुछ नहीं होगा,

20

20. हड़बड़ी में उगा सूरज

4 अगस्त 2022
0
0
0

क्रिस्टीना से मेरी पहचान कब से है ? यह एक ऐसा प्रश्न है जिसके बहुत सारे उत्तर हो जाएंगे, और ताज़्जुब मुझे बहुत सारे उत्तर हो जाने का नहीं होगा,बल्कि इस बात का होगा कि उन सारे उत्तरों में से कोई भी ग़ल

21

21. धुस - कुटुस

4 अगस्त 2022
0
0
0

पचास साल के इतिहास में ये पहला मौका था कि अंतरराष्ट्रीय ख्याति के इस इंस्टीट्यूट में उसी के एक पुराने छात्र को डायरेक्टर बनाया गया था। लीली पुटियन जी का बायोडेटा देखते ही बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट ने एकमत से

---

किताब पढ़िए