🌸ओंकार🌸🕉🌸
कठोपनिषद का घोष हैं, कि चारो वेद जिसका वर्णन करते हैं, जिसको पाने के लिए सभी प्रकार के तप किए जाते हैं,
और जिसे पाने के लिए ब्रह्मचारी गुरुकुल में २ह कर कठोर ब्रह्मचार्य का पालन करते हैं, वह पद ॥ ऊँ ॥ हैं।
जो निरन्तर ऊँ का जाप कर २हे होते हैं, उन्हे भी ऊँ का सही मूल्य नहीं पता होता, तो आईए आपको बताती हूँ
कथा ऊँ के अर्थ की :-
पार्वती नन्दन कार्तिके एक बार ब्रह्मा के पास जाते हैं, और कहते हैं, कि " सभी कहते हैं आप के पास समस्त प्रश्नों के उत्तर हैं ? क्या आप के पास हैं ? "
ब्रह्मा : " तुम्हारा प्रश्न क्या हैं ? "
कार्तिके : " ऊँ का अर्थ क्या हैं ? "
ब्रह्मा के उत्तर न देने पर कार्तिके उन्हे बंदी बना लेते हैं।
ब्रह्मा के बंदी बनते ही, सृष्टि का सृजन रुक जाता हैं, फूल खिलना बन्द हो जाते हैं, पेड़ फल देना बन्द कर देते हैं, इससे परेशान देव मिलकर महादेव से गुहार लगाते हैं
देवतओं की बात सुनकर महादेव ने कार्तिके से पूछा
क्या तुमने सृष्टि के रचनाकार को बंदी बनाया हैं ?
कार्तिके ने उत्तर में कहा , मैंने नही उन्होने स्वयं को बंधक बनाया हैं, जिसे ऊँ का अर्थ नही पता क्या वह अज्ञान के अंधकार का स्वयं ही बंदी नहीं ?
महादेव ने मुस्करा कर पूछा , "तो तुम्हे पता हैं ? मैं तुमसे जानना चाहता हूँ ॐ का अर्थ ।"
और फिर कार्तिके ने कहा ठीक हैं, प२ आपको अर्थ जानने के लिए मेरा शिष्य बनना होगा ,और मुझे गुरु मानना होगा ।
कहते हैं, पुत्र कार्तिके ने पिता आशुतोष के गोद में बैठ उन्हे ऊँ का अर्थ बताया ।
कार्तिके ने जो महादेव को बताया वह आपसे बताती हूँ :-
ऊँ अक्षर हैं, ध्वनी हैं, यह नाद भी हैं। ॐ में तीन ध्वनियाँं हैं वे हैं अ उ और म । जब अ और उ मिलते हैं तो ओ बन जाता हैं, और जब इससे म जुड़ जाता हैं तो ओम बनता हैं। कोई भी व्यक्ति चाहे उसकी मात्र भाषा कोई भी हो, जब बोलने के लिए मुख खोलता हैं, तो अ कार की ध्वनी निकलती हैं और जब मुख बन्द करता हैं तो म कार की ध्वनी निकलती हैं। और जब होठों को पास लाकर मुख आधा खुला और आधा बन्द रखता हैं तो ऊ कार की नैसर्गिक ध्वनि निकलती है। यानि मुख खोलते समय अ, बन्द करते समय म और बीच में जोभी हैं वह उ . .
इसलिए सारी भाषाओ की सारी ध्वनियाँ स्वर हो या व्यंजन ऊँ के अंतर्गत ही आती हैं।
अतः ऊँ वैश्विक ध्वनि हैं।
मांडूक्य उपनिषद के अनुसार जागृत अवस्था का समस्त जागृत प्रपंच ऊँ की पहली मात्रा "अ" से अभिव्यक्त होता हैं, समस्त स्वपनावस्था का प्रपंच उ से और सुसुप्ति अवस्था का प्रपंच म से आभिव्यक्त होता हैं।
समस्त प्रपंच ही ईश्वर हैं, तीनों अवस्था ही समस्त प्रपंच हैं और इनका प्रतीक अ उ और म हैं, अतः ऊँ ही ईश्वर का अति अद्भुत प्रतीक हैं।
ऊँ इश्वर के निगुर्ण स्वरुप का भी प्रतीक हैं, जैसे तीनों अवस्थाएँ ब्रह्म से पैदा होती हैं और उसी में विलीन हो जाती हैं, वैसे ही, तीन शब्दो से बना ऊँ भी शान्ति से उत्पन्न हो उसी में विलीन हो जाता हैं, इसालिए दो ओंकार के उच्चारण के बीच की शान्ति निगुर्ण ब्रह्म का ही प्रतीक हैं। ऊँ के उच्चारण के समय अ, उ में, उ, म में और म शान्ति या निशब्दता में विलीन हो जाता हैं, इसी प्रकार उपासना के समय इसी ऊँ को आधार ले साधक स्थूल प्रपंच को सूक्ष्म में और सू्क्ष्म को कारण में विलीन करता हैं। आगे उसी का अतिक्रमण कर शान्त निगुर्ण, अद्वैतम् आत्मा में स्थिर हो जाता हैं, यहि ओकार उपासना की चरम सीमा हैं।
यानि ऊँ वह सब अभिव्यक्त करता है जो अस्तित्व में है और जो समूचे अस्तित्व का मूल हैं, और जो अस्तित्व से परे हैं वह भी।
ऊँ को प्रणव भी कहते है, अर्थात् वह जिससे ईश्वर की स्तुति की जाती है।
इस तरह ऊँ सब कुछ अभिव्यक्त क२ता हैं जिवन का लक्ष्य और उस लक्ष्य तक पहूँचने का साधन, जगत और उसका अधीष्ठान रुप सत्य।
ऊँ धनुष हैं, जीवात्मा बाण और अक्षर ब्राह्म उसका लक्ष्य हैं। बड़ी सावधानी से उसका भेद करना चाहिए और बाण की तरह लक्ष्य के साथ एक हो जाना चाहिए
( धन्यवाद )