बिन पानी क्या खेत-खलिहान
बिन पानी नहीं गुल्म में जान
बिन पानी क्या कश्ती का मान
बिन पानी सब वृथा समान।
बिन पानी क्या पोखर-ताल
बिन पानी क्या नदियों का हाल
बिन पानी संकट विकराल
बिन पानी जीवन बेहाल।
बिन पानी सब संसार है सूना
बिन पानी मुश्किल है जीना
बिन पानी नहीं सत्व है अपना
बिन पानी यह जीवन सपना।
जल बिन जलधि की नहीं अल्पना
जल बिन जग की नहीं कल्पना
जल बिन मीन के तड़पे प्रान
जल बिन ये दुनिया बेजान।
ऐ पानी! तेरा क्या है मोल
पानी की हर बूंद अनमोल
बिल्कुल भी न व्यर्थ हो जल
ऐ नर! तू अपनी आंखें खोल।
© डॉ प्रदीप त्रिपाठी "दीप"
ग्वालियर,मध्यप्रदेश,🇮🇳