कहाँ खो गईं वो चिठ्ठियां
जिसमें जज़्बात लिखे जाते थे
प्रेम भरी नाराज़गी के
अल्फ़ाज़ लिखे जाते थे।
न मोबाइल थे
और न फोन थे
नीले अंतर्देशीय पत्र
और पीले पोस्टकार्ड होते थे।
ढेर सारे प्यार के पैग़ाम
फूल की पंखुड़ी रखकर लिखे जाते थे
और न जाने कितने दिल के जज़्बात
इस नीले कागज़ में समा जाते थे।
एक प्रेमिका खत को विरह में
दिल पर रख कर सिसकती थी
और एक माँ इस नीले कागज़ के
इंतज़ार में तड़पती थी।
दोनों की भावनाएं गहरी
मगर जज़्बात अलग अलग होते थे
एक प्रेमी के इंतज़ार में
और एक बेटे के इंतज़ार में रात भर न सोते थे।
क्या जाने आज की मोबाइल के साथ जीने
और लैपटॉप पर कट पेस्ट करने वाली पीढ़ी
कि किस तरह खत में आह और ग़म छुपाए जाते थे
पत्र पढ़ने के बाद कैसे जज़्बात के आंसू बहाए जाते थे।
एक पत्र प्रेमी के आने का संदेश
और बेटे की नौकरी लग जाने की ख़बर लाता था
उत्साह हो जाता था दुगना
और मन ख़ुशी के हिचकोले खाता था।
खत ग़म आंसू प्यार उत्साह
उमंग और खुशियों से भरे होते थे
भावनाओं से भीगे हुए शब्द
अपनी खुशबू बिखेर रहे होते थे।
©प्रदीप त्रिपाठी "दीप"
ग्वालियर, मध्य प्रदेश 🇮🇳