रोज दो चार अंडे देने तक
खिलाया जाता है दाना
और पिलाया जाता है पानी
उसके बाद उदर में समा जाती हैं मुर्गियां।
देती हैं दूध जब तक
मिलता है हरा चारा
और रोज की जाती है सानी
फिर सड़क पर भटकने छोड़ दी जाती हैं गइयां।
बकरी के छोटे बच्चे करते हैं उछल कूद
रात में ऊपर ढक दी जाती हैं झबइयां
बड़े होने पर चंद पैसों की खातिर
बाजार में कुर्बान हो जाती हैं बकरियां।
वह बहुत मेहनत करती हैं
और एकत्रित करती हैं मधु
परंतु शहद के लालच में
उड़ा दी जाती हैं मधुमक्खियां।
मन को करते हैं आकर्षित
ऊपर उड़ती है तितलियां
परंतु फूल चुनने के बाद
उजाड़ दी जाती है क्यारियां।
रात के घुप्प अंधेरे में
जिनसे रोशन होता है मकान
तो सुबह पौ फटते ही
बंद कर दी जाती हैं वही बत्तियां।
इस मतलबी दुनिया में तब तक पूछे जाते हैं इंसान
जब तक आते हैं वो काम
नहीं तो चिरागों के रोशन होते ही
बुझा दी जाती हैं माचिस की तीलियां।
©डॉ प्रदीप त्रिपाठी "दीप"
ग्वालियर,मध्य प्रदेश 🇮🇳