"पाप" हमारी सोच से होता हैं,शरीर से नही,और "तीर्थों" का जल,
हमारे शरीर को साफ करता हैं, हमारी सोच को नही,??
हर बात को भुल जाना पडेगा, चित्त को खाली करना पडेगा, स्वयं को भरो मत,? जो पाया है उससे सिर्फ खेलना है, फिर यही रखकर छोड जाना है, "जीवन" उसी का मस्त है, जो स्वयं के कार्यों में व्यस्त है, परेशान वही है,? जो दूसरों की खुशियों से त्रस्त है, "जीवन" मे कितने क्षण जिये ये नही, किंतु एक क्षण मे कितना जीवन बिताया है,? यही बताना है, क्युं की देनेवाला परमात्मा देख भी तो रहा है, इसलिये "परमात्मा" को सबसे करीबी दोस्त बनाएँ, क्योंकि परमात्मा ही एक ऐसे है, जो तब साथ देते हैं जब सारी दुनिया हमारा साथ छोड़ देती है..!तमीज़दार होने का नुकसान ये भी है, कि,? हज़ारों बातें दिल के अन्दर ही रह जाती है...!
खुश रहना हो, ? तो, ? अपनी फितरत में, एक बात शुमार कर लो...!!
ना मिले कोई अपने जैसा तो,? खुद से प्यार करना सिख लो...!!
भगवान पर विश्वास बिलकुल उस बच्चे की तरह ही करें, जिसको आप हवा में उछालो, तो वो हंसता है डरता नहीं, क्योंकि उसे पता है कि,? आप उसे गिरने नहीं दोगे..!! भक्त कभी गिर नहीं सकता..!!