महात्मा गाँधी के अनुसार,"जहाँ धर्म नहीं, वहां विद्या, लक्ष्मी, स्वास्थ्य आदि का भी अभाव होता है। धर्मरहित स्थिति में बिलकुल शुष्कता होती है, शून्यता होती है।"
धर्म के द्वारा मनुष्य अपने जीवन को सही ढंग से व्यतीत कर सकता है। हर व्यक्ति के समक्ष दो रास्ते होते है, धर्म या अधर्म; ये उस पर निर्भर करता है कि वह कौन सा रास्ता चुन कर ज़िन्दगी में आगे बढ़ता है। धर्म का रास्ता चुनने पर, वो कर्तव्य के मार्ग पर अडिग होकर सफलता के पथ पर अग्रसर होता है। वही अधर्म का रास्ता चुनने पर, व्यक्ति कर्तव्य से विमुख होकर पशुत्व की ओर बढ़ता चला जाता है और अपने मार्ग से पूरी तरह से भटक जाता है। अतः हर मनुष्य को पुरुषार्थ के पथ पर अग्रसर होकर धर्मवत् जीवन व्यतीत करना चाहिए।