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असीमित शक्ति का भंडार है: मन

4 नवम्बर 2015

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हमारा मन असीमित शक्ति का भंडार है| जिसमें अनेक विचार प्रतिदिन कौंधते रहते हैं| हमारा मन एक उपजाऊ खेत है, जिसमें आप जैसे चाहे वैसे विचारों की खेती कर सकते है| मन को एकाग्रिचित कर उचित उपयोग करने पर आप अपने मन मुताबिक सफलता प्राप्त कर सकते है| परन्तु, ऐसा करने के लिए मन को एकाग्रचित करना पड़ता है| किसी भी कार्य को करने के लिए आपको मनोभूमि तैयार कर एकाग्रता के साथ उसमें जुटना पड़ता है, तभी उसका मनोवांछित फल प्राप्त होता है|


केवल मन ही किसी का मित्र और शत्रु होता है- श्रीमद भगवत गीता


मन को एकाग्र किये बिना उसकी शक्तियों का लाभ नहीं उठाया जा सकता| जीवन के किसी भी क्षेत्र में, आगे बढ़ने के लिए मानसिक शक्तियों को केन्द्रित करने का अपना अलग महत्व है| उपलब्धियों और सफलता के सोपानों को हासिल करने के लिए आवश्यक है, सक्रियता| मन ही मनुष्य की सक्रियता को संचालित करता है| मानसिक शक्तियों का साथ मिलने पर सक्रियता कई गुना आगे बढ़ जाती है| जो मनुष्य अपने मन को एकाग्र कर लेता है और किसी भी कार्य में पूरी लगन से जुट जाता है उसे सफल होने से कोई नहीं रोक सकता|


स्वामी विवेकानंद ने भी इसी सम्बन्ध में कहा हैं, एक विचार  लो, उस  विचार  को  अपना जीवन  बना  लोउसके  बारे  में  सोचो  उसके  सपने  देखो, उस  विचार  को  जियो| अपने  मस्तिष्क, मांसपेशियों, नसों, शरीर  के  हर  हिस्से  को  उस विचार में डूब  जाने  दो  और  बाकी  सभी विचार  को  किनारे  रख  दो| यही सफल होने का तरीका  है|”


अंत में, आज तक जितने भी लोग उन्नति के शिखर तक पहुंचे है वो अचानक ही नहीं पहुंचे| उन्नति कोई आकस्मिक घटना नहीं है, जो व्यक्ति एकाग्रचित कर परिश्रम के साथ आगे बढ़ता वो ज़िन्दगी में पीछे मुड़कर कभी नहीं देखते|

 
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रचनाएँ
AMRIT
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