करवाचौथ पर सुहागिन महिलाओं को रहता हैं, चाँद का इंतज़ार! इस दिन सुहाग के सभी प्रतीकों से सुसज्जित होकर, महिलाएं चाँद का घण्टों इंतज़ार करती हैं। चाँद के दीदार के बाद ही पूजन विधि संपन्न कर महिलाएं अपना व्रत खोलती है। सुहागनों के लिए ये पर्व अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, इस दिन ये अपनी पति की लम्बी आयु के लिए व्रत रखती हैं। वास्तव में, करवाचौथ निर्विवादित रूप से पूरें भारत वर्ष में नहीं अपितु विदेशों में प्रवास कर रहे अप्रवासी भारतीयों में भी उतना ही लोकप्रिय हैं। बहुत से विचारक, करवाचौथ की वैज्ञानिकता पर सवाल उठाते रहे हैं परन्तु आस्था, परम्परा और रीति-रिवाज़ों के बीच वैज्ञानिकता कहीं पीछे छूट जाती है।
"करवा चौथ" की लोकप्रियता का अंदाजा, आप इस बात से लगा सकते हैं कि भारतीय ही नहीं वरन विदेशों में रह रही भारतीय महिलाएं भी इसे पूरे रीति-रिवाज़ों के साथ मानती है। करवाचौथ का त्योहार है एक दूसरे के प्रति समर्पण, निष्ठा और प्रेम का, आज की युवा पीढ़ी भलें ही कितनी भी व्यस्त क्यों न हो परन्तु करवाचौथ त्योहार के लिए समय निकाल ही लेती हैं। महिलाएं इस दिन पारम्परिक खाना बनाती हैं तथा ससुराल पक्ष से आई हुई सरगी खाकर, इस व्रत का शुभारम्भ करती है।
त्योहारों में प्राकृतिक प्रतीकों का अलग ही महत्व है। करवाचौथ के दिन, चाँद का अलग ही रुतबा होता है और उसके महत्व को कम नहीं किया जा सकता। हिन्दू हो चाहे मुस्लिम, चाँद न जाने भेद करना, करवाचौथ का व्रत हो या फिर बात हो रोजे तोड़ने की, चाँद के दीदार की लोगों को उतने ही बेसब्री रहती है। ये दर्शाता है, प्रकृति कोई भेद-भाव नहीं करती, ये भेद-भाव करना इंसान की फितरत हैं। अंत में, करवाचौथ की हार्दिक बधाई!