आज के समय में, थोड़े
बड़े होते ही बच्चे स्कूल जाने लगते हैं| उनकें साथ जाता है उनका स्कूल बैग, कापी-किताबें,
खाने का टिफ़िन जिससे छोटे से बच्चे बोझ तलें दब जातें हैं| उच्च स्तर के
स्कूलों में समय-समय पर विभिन्नं एक्टिविटी करवाई जाती है| माता-पिता भी चाहते है कि उनकी संतान हर क्षेत्र
में आगे हो| इसी कारण, एक्टिविटी का सारा सामान, बच्चों को स्कूल बैग
में लाद कर ले जाना पड़ता है| लगातार, इस भारी बोझ का वहन करते-करते बचपन से ही बच्चें छोटी
सी उम्र में कमर दर्द और कन्धों के दर्द से पीड़ित हो जाते है|
स्कूली प्रशासन भी इस ओर ध्यान नहीं देता की विद्यार्थियों का स्कूल बैग दिनोंदिन कितना बढ़ता जा रहा है, उन्हें तो बस अपने स्कूल के नाम की चिंता होती है| वे किसी भी तरह बच्चों को अकेले नहीं छोड़ना चाहते है| उन्हें लगातार अधिक और अधिक व्यस्त रखना चाहते हैं| इसी कारण बच्चों में, पढाई के प्रति वितृष्णा उत्पन्न हो जाती है| वे पढाई के नाम से दूर भागने लगते है, ताकि उन्हें पढाई न करनी पड़ें|
स्कूल बैग के बढ़ने
के साथ-साथ बच्चों पर पढाई का दबाव भी पड़ रहा है| ये दोनों समस्याएं बच्चों के
शारीरिक एवं मानसिक विकास में समस्याएं पैदा कर रही है| भारी बैग उठाने से बच्चों
की रीड की हड्डी पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है| विशेषज्ञों के अनुसार, बच्चे एक
कंधे पर बैग टांग लेते है जिससे उनका बौडी पोस्चर भी
प्रभावित हो रहा है|
कन्धों एवं कमर दर्द की समस्या आधुनिक जीवन शैली की देन हैं| आज के समय में न तो भोजन इतना पौष्टिक है न ही जल और न ही वातावरण| जिसकी वजह से, शारीरिक और मानसिक समस्याएं बचपन व युवा वर्ग में देखने को मिल रही है| यदि हम अपने खान-पान और जीवन शैली में सकरात्मक परिवर्तन कर लें तो इन समस्यायों से निजात पा सकते हैं|