सूचना क्रांति के क्षेत्र में इंटरनेट ने अहम भूमिका निभायी है। एक ओर तो इंटरनेट ने स्काइप और व्हाट्स एप के माध्यम से लोगों के बीच की दूरियां ख़त्म की है वही दूसरी ओर इंटरनेट ने रिश्तों में कही न कही दूरियां बढ़ा दी हैं । लोगों के बीच बढ़ती हुई संवादहीनता एवं मानसिक बीमारियां इसी का परिणाम है। बचपन भी इंटरनेट के दुष्परिणामों से अछूता नहीं हैं। अत्यंत चिंता का विषय हैं की लोग इस मायाजाल की बढ़ती हुई तीर्वता को नजरंदाज कर रहे हैं।
आज बड़ी संख्या में लोग इंटरनेट के मायाजाल में फंसते हुए दिखाई दे रहे हैं। शोधकार्यों की मानी जाएँ तो, विश्व के करीब १८.२ करोड़ जन संख्या को इस लत ने अपने शिकंजे में ले लिया है। ऐसे लोगों में, कई तरह की मानसिक बिमारियों के लक्षण दिखाई दे रहे हैं। इंटरनेट की लत से पीड़ित लोग, अपने काम के अलावा अपना ज्यादा समय सोशल मीडिया एवं ऑनलाइन गेम्स पर व्यतीत कर रहे है। जिसके कारण, लोगों में इंटरनेट के दुष्प्रभाव साफ़ तौर पे नज़र आ रहे हैं। ऐसे लोग छोटी से बातों में अपना आपा खो देने एवं मानसिक रूप से विचलित होने जैसे समस्याओं से ग्रसित है।
बच्चे भी इसके दुष्परिणामों से अछूते नहीं हैं। जहाँ, बढ़ती उम्र में उन्हें खेल-कूद में भाग लेना चाहिए। वही इस छोटी उम्र में, इंटरनेट में ऑनलाइन गेम्स से चिपके हुए नज़र आते हैं। जिसके उनके दिमाग पर, इस बात का बहुत ही नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। व्यस्को की अपेक्षा बच्चों पर गैजेट्स से निकलने वाली रेडिएशंस से अधिक प्रभावित होते है। ऐसा इसलिए है क्योंकि बच्चों का मस्तिष्क व्यस्कों की अपेक्षा ज्यादा संवेदनशील होता है।
तकनीक की ये देन कहीं अभिशाप बनकर, हमें क्षति न पहुंचाएं, इस बात का ध्यान हम सभी को रखना होगा। ऐसे में बड़ा सवाल यह उठता है कि, न तो हम सूचना प्रोद्योगिकी पर प्रतिबन्ध लगा सकते हैं और न उससे विलग हो सकते हैं पर हम अपने ऊपर नियंत्रण रख, इसमें अपनी भागीदारी तय कर सकते हैं। अन्यथा भविष्य में हमे इसके कई कुपरिणाम भुगतने होंगें ।