ओए टुन्ना! कहाँ बैठा है?, टुन्ना के पापा चीतू ने आवाज़ लगाई। पर कोई जवाब न आया। फ़िर अंदर कमरे में घुसते हुए, ओए टुन्ना! क्या अभी तक सो रहा है? (कोई होता तो ही जवाब मिलता, पर वहाँ तो कोई न था।) आख़िर कहाँ चला गया? टुन्ना! मैंने उससे कहा
अगस्त का महीना आते ही दुकानों में रंगे बिरंगी पतंगें और साथ में माँझे में लिपटी चरखियाँ दिखाई देने लगती हैं......पतंग,मांझा,कटी पतंग,पतंग लूटना,चरखी, Sketches from Life: वो काटा
आई पतंगों की बेलाहैचहुं ओर पतंगों कारेला हैमौसम नई ख्वाहिशों का हैमाँ-बाप ने करदी ढीली जेबें निकले शौकीन ले बहुरंगीपतंगेंचाइनीज हो या डोरबरेली आई-बो----ओ सुनता रोजबोर हो या संध्या का दौरउड़ा रहे सब मचाकरशोरकेजरीवाल, राहुल याहों मोदीनहीं दिखती इनमें फूटपरस्ती मोहल्ला-मोहल्ला बस्ती-बस्तीउड़ाते इन्हें