शीर्षक --वीरसपूत
मेरे भारत माँ के वीर सपूतों की,
क्या खूब थी उनकी ये कुर्बानीयाँ
जो अपनी जान की दे दी खुशी खुशी,
कुर्बानियां।
वो जैसे आज भी पूछते हैं की तुम सबको
याद है हमारी कुर्बानियां,
या भूल गए एक दिन याद करके।
एक बार भी नही सोचा होगा खुद के बारे में,
खुद को कुर्बान कर दिया अपने मातृभूमि,
को आजाद करने के लिए।
क्या गुजरी होंगी उनपर जब उन्होने,
अपनी जान की परवाह भी न की,
खुद की भी अपने देश के खातिर।
इन तीनों ने मर कर भी अपने आप को अमर,
कर दिया खुद को बलिदान करके।
कितने वो खुसनसीब होंगे,
जो अपनी जान की परवाह न करके,
अपने देश के काम आये।
खुद को अमर करके,
हँसते हँसते फांसी के फंदो को,
चुम कर अपने गले का हार,
बनाया।
खुद को देश के नाम,
बलिदान करके।
कैसे सारे भारतवासी भूल सकता है,
उनके इस बलिदान को।
आज भी हर देशवासि उनके बलिदान,
का ऋणी है।
आज भी हर देशवासी याद करता है,
उनके इस बलिदान को।
जिन्होंने कहा था न तन से प्यार करो,
न मन से प्यार करो।
अगर करना ही तो अपने प्यारे,
देश से करो, तुम मिट भी जाओगे
तो तुम्हें याद करेंगे।।
आओ सब मिलकर उन्हें सलाम करें,
उन्हें शत शत नमन करें।
वन्देमातरम जय हिंद।।
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