shabd-logo

सती सावित्री

30 मई 2022

24 बार देखा गया 24

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
भारत वर्ष के एक राज्य  भद्र  के एक राजा थे, जिनका नाम अश्वपति था,  राजा अश्वपति के कोई संतान न थी ,राजा और रानी दोनो ही संतान प्राप्ति के लिए बहुत कुछ प्रयास किए पर कुछ नही हुआ ,!!!

एक ऋषि के बताए हुए एक उपाय को मान
उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए मंत्रोच्चारण के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुतियाँ दीं,,अठारह वर्षों तक यह क्रम जारी रहा,,

उनके पूजा से प्रभावित हो सावित्री देवी ने प्रकट होकर उन्हे  वर दिया कि*" : राजन तुझे एक तेजस्वी कन्या पैदा होगी*"!!

राजा रानी दोनो ही मां सावित्री देवी के चरणों को नमन करते हैं ,तो वह उन्हे आशीर्वाद देकर जाती है ,!!

  माता सावित्री देवी की कृपा से जन्म लेने के कारण उस  कन्या का नाम सावित्री रखा गया ,!!

सावित्री  बड़ी होकर बेहद रूपवान हुई, उसके  योग्य वर न मिलने की कारण  से सावित्री के माता  पिता दुःखी थे। उन्होंने कन्या को स्वयं वर तलाशने भेजा और कहा तुम्हे जो अच्छा लगे उसे वर लो,*"!!

माता पिता का आदेश मिलते ही सावित्री महल से  निकल तपोवन में भटकने लगी।
,*!!!
वहीं पर साल्व देश के राजा द्युमत्सेन रहते थे, क्योंकि उनका राज्य किसी ने छीन लिया था, उनका पुत्र सत्यवान भी बहुत ही सुंदर और मेघावी था ,  उनके पुत्र सत्यवान को देखकर सावित्री ने पति के रूप में उनका वरण कर लिया ,*"!!

देवर्षि  नारद को जब यह बात पता चली तो वह राजा अश्वपति के पास पहुंचे और कहा कि*"  हे राजन! यह क्या कर दिया पुत्री सावित्री ने ? सत्यवान गुणवान हैं, धर्मात्मा हैं और बलवान भी हैं, पर उसकी आयु बहुत छोटी है, वह अल्पायु हैं। एक वर्ष के पश्चात  ही उसकी मृत्यु हो जाएगी,यह तो भूल से  अनर्थ हो गया है ,*"!!

देवर्षि  नारद की बात सुनकर राजा अश्वपति घोर चिंता में डूब गए। सावित्री ने उनसे उदासी का कारण पूछा,*" पिता श्री मैं देख रही हूं आपका कांतिमय मुखड़ा कुछ मालिन हो गया है ,इसका क्या कारण हैं,*"!!?

अश्वपति  ने  उसे दया की दृष्टि से देखते हुए कहा, *" पुत्री तुमने जिस राजकुमार को अपने वर के रूप में चुना है वह अल्पायु हैं। तुम्हे किसी और को अपना जीवन साथी चुनना  चाहिए वह तुम्हारा  साथ नही दे पाएगा ,*"!!

पिता की बात सुन सावित्री ने कहा *"  पिता श्री , आर्य कन्याएं अपने पति का एक बार ही वरण करती हैं, राजा एक बार ही आज्ञा देता है और पंडित एक बार ही प्रतिज्ञा करते हैं और कन्यादान भी एक ही बार किया जाता है, और वह मैंने कर लिया ,*"!!
अश्वपति और रानी दोनो ही सावित्री को बहुत समझाने का प्रयत्न करते हैं,किंतु सावित्री हठ करने लगीं और बोलीं *"  मैं  राजकुमार सत्यवान से ही विवाह करूंगी, अन्यथा जीवन भर उनके नाम से कुंवारी बैठी रहूंगी  रही बात उनके मृत्यु की तो मैं यमराज से  भिक्षा मांग कर भी उनकी मृत्यु बढ़ा को दूर करवा दूंगी ,*"!!!
उसके  हठ के आगे राजा अश्वपति को झुकना पड़ा और उन्हों  ने  हार मान कर सावित्री का विवाह सत्यवान से कर दिया,*"!!

सावित्री  प्रसन्न होकर अपने ससुराल पहुंचते ही सास-ससुर की सेवा करने लगी,!!
कब  समय बीतता चला गया, पता ही नही चला, नारद मुनि ने सावित्री को पहले ही सत्यवान की मृत्यु के दिन के बारे में बता दिया था,  वह दिन जैसे-जैसे करीब आने लगा, सावित्री व्याकुल  होने लगीं,!!

सावित्री ने  तीन दिन पहले से ही उपवास शुरू कर दिया। नारद मुनि द्वारा बताई गई  निश्चित तिथि पर पितरों का पूजन  अर्चन किया,*"!!

प्रति दिन  की तरह सत्यवान उस दिन भी लकड़ी काटने जंगल चले गये , आज जान बूझकर साथ में सावित्री भी गईं  थी*"!! 

जंगल में पहुंचकर सत्यवान लकड़ी काटने के लिए एक पेड़ पर चढ़ गये, तभी अचानक  उसके  माथे  में तेज दर्द होने लगा, दर्द से व्याकुल सत्यवान पेड़ से नीचे उतर गये,, सावित्री  समझ गईं थी की वह घड़ी आ चुकी है ,*"!!

सावित्री  वही एक बड़े  वट वृक्ष के नीचे बैठ  सत्यवान के सिर को गोद में रखकर    उनका  सिर सहलाने लगीं ,तभी वहां यमराज आते दिखे,, सावित्री ने कुछ भी नहीं कहा , यमराज अपने साथ सत्यवान को ले जाने लगे  तो बिना कुछ कहे सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल पड़ीं,!!

यमराज ने सावित्री को पीछे आते देख यमराज ने कहा ,*" पुत्री सावित्री तुम मेरे पीछे क्यों आ रही हो ,*"!!

सावित्री कहती है ,*" आप बिना मुझसे पूछे मेरे पतिदेव को  ले जा रहे हैं ,तो मैंने तो विवाह के समय सौगंध लिया था की हर स्थिति और हर अवस्था में उनका साथ दूंगी ,तो मैं तो उनके साथ चल रही हूं ,*"!!
यमराज कहते हैं ,*" पुत्री ,मैं इसे यमलोक ले जा रहा वहां केवल  आत्माएं ही जाति हैं ,इसका शरीर तो नीचे है तुम वहा जा कर उसके दाह संस्कार की तैयारी करो ,*"!!
सावित्री कहती है ,*"मैने शरीर से नही सत्यवान की आत्मा से विवाह किया बिना आत्मा शरीर तो व्यर्थ है ,!!

यमराज ने कई प्रकार से सावित्री को  समझाने का प्रयास  किया  कि यही विधि का विधान है,*"!!
लेकिन सावित्री नहीं मानी, उसने कहा *" आप ही लोगो ने ये रीति भी बनाई है पति पत्नी के संबंध भी तो विधि का विधान ही है ,*"!!

सावित्री की निष्ठा और पतिपरायणता को देख कर यमराज ने सावित्री से कहा *" हे  देवी सावित्री , तुम धन्य हो ,में तुमसे बहुत प्रसन्न हूं  तुम मुझसे कोई भी वरदान  मांग लो ,*"!!
सावित्री ने  यह सुन कहा कि*"  मेरे सास-ससुर वनवासी और अंधे हैं, उन्हें आप दिव्य ज्योति प्रदान करें *" !!

यमराज ने कहा*" तथास्तु , ऐसा ही होगा। जाओ अब लौट जाओ,*"!!
पर सावित्री नही मानी ,!!
सावित्री अपने पति सत्यवान के पीछे-पीछे चलती रहीं!!

यमराज ने  यह देख कर कहा *" पुत्री सावित्री  तुम लौट  जाओ ,मुझे मेरा कार्य करने दो ,*"!!

सावित्री ने कहा*" धर्मराज  मुझे अपने पतिदेव के पीछे-पीछे चलने में कोई समस्या  नहीं है,, पति के पीछे चलना मेरा कर्तव्य है,, !!
यह सुनकर  यमराज परेशान होकर  फिर से उसे एक और वर मांगने के लिए कहते हैं ,*!!

सावित्री बोलीं हमारे ससुर का राज्य छिन गया है, उनका राज पाट  पुन: वापस दिला दीजिए *"!!
परेशान यमराज ने सावित्री को यह वरदान भी दे दिया और कहा *" सावित्री अब तुम लौट जाओ*"!!
लेकिन सावित्री पुनः पीछे-पीछे चलती रहीं,!!

यह देख यमराज ने सावित्री को तीसरा वरदान मांगने को कहा*"!!
इस पर सावित्री ने  अपने लिए 100 संतानों और सौभाग्य का वरदान मांग लिया ,*"!!
यमराज  उस से पिंड छुड़ाना चाहते थे तो उन्होंने  सावित्री ने वरदान क्या मांगा यह नही ध्यान दिया ,और तथास्तु कह यह  वरदान भी सावित्री को दे दिया,*"!!

यह वरदान मिलते ही सावित्री ने यमराज से कहा कि *"  प्रभु मैं एक पतिव्रता पत्नी हूं और आपने मुझे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया है , अब बिना पति के मैं कैसे जा सकती हूं ,*"!!??

यह सुनकर यमराज  सकते में आ गए  या तो वह अपने वरदान को व्यर्थ करे जो संभव  नहीं था  और कोई चारा नहीं देख वह सावित्री के सामने घुटने टेकते हैं और    सत्यवान के प्राण छोड़ देते है ,"*!! यमराज उसे आशीर्वाद देकर  अंतध्यान हो गए *"!!
सावित्री पुनः  उसी वट वृक्ष के पास आ गई जहां उसके पति का मृत शरीर पड़ा था!!

सावित्री के आते ही सत्यवान जीवंत हो गया और दोनों खुशी-खुशी अपने राज्य की ओर चल पड़े,!!

दोनों जब घर पहुंचे तो देखा कि उनके  माता-पिता को दिव्य ज्योति प्राप्त हो गई है।  और जिसने उनके राज्य पर अतिक्रमण किया था वह स्वयं आ कर उनसे क्षमा मांग कर  आदर पूर्वक ले जाकर उनका राज्य उन्हे सौंप देता है , !!
और इस प्रकार सावित्री-सत्यवान चिरकाल तक राज्य सुख भोगते रहे।

उसके बाद से लोग वट सावित्री की  व्रत और पूजा पाठ करने लगे ,*"!!


1
रचनाएँ
सती सावित्री
0.0
यह एक पौराणिक कथा है

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए