पहले महिलाएं त्याग, संस्कार, धर्म और सादगी की प्रतिमूर्ति हुआ करती थी / इन्ही विशेष गुणों के कारण उन्हें भारतीये समाज में देवी का स्थान प्राप्त था / इन सब गुणों को महिलायों ने बिना किसी के दबाव में स्वच्छेया से अपनाया था / वह परिवार की आतंरिक मैनेजर बनकर गर्व महसूस करती थी / महिलाएं परिवार के आतंरिक जिम्मेवारी को सफलता पूर्वक पूरा करती और पुरुष इन जिम्मेवारियों से निश्चिन्त होकर अपने बाहरी, समाज, और देश की जिम्मेवारियों को निभाता था / वह परिवार को आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा भी प्रदान करता था / इस तरह पुरुष परिवार के आतंरिक जिम्मेवारियों के लिए महिलायों पर तथा महिलाएं परिवार के आर्थिक और सामाजिक जिम्मेवारियों के लिए पुरुषों पर निर्भर रहते थे और ऐसे ही अपने आवस्कतायों के लिए एक दूसरों पर निर्भरता से ही परिवार नामक एक मजबूत संगठन का निर्माण हुआ था जिसमे महिलाओं का स्थान पुरुषो से कही ज्यादा ऊँचा था / महिलाये भोजन तैयार करने जैसा पवित्र कार्य, बच्चों और बुजुर्गो की देखभाल, धर्म और संस्कार का पाठ पढ़ाने जैसा विशेष कार्य जिसमे वह स्वयं पारंगत थी किया करती थी / पुरुष खेतो में कड़ी मेहनत, व्यवसाय और सेनाओं में नौकरी करके अर्थ उपार्जन करता था जिससे परिवार की आर्थिक जरूरतें पूरा होती थी / वह अपने पुरुषार्थ के बल पर परिवार को सामाजिक सुरक्षा भी प्रदान करता था जिससे महिलाये सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन यापन करती थी / लेकिन पश्चिमी संस्कृति, बाजारवाद, भोगवाद, और वैश्वीकरण के फलस्वरूप बने नए समाज में महिलयों के दिमाग में यह भर दिया गया की वह पुरुषो की गुलाम है और उन्हें पुरुषो के बराबरी करना होगा / इन्ही बराबरी के चक्कर में महिलयों ने अपने कद छोटा करना शुरू कर दिया / पहनावा, विचार, स्वछंदता, सबमे वह पुरुषों का नक़ल करने लगी /परिवार में पति का सहायक बनना पसंद नहीं ऑफिस में PA बनकर बॉस का मनोरंजन करना पसंद है / घर में चूल्हा- चौका नहीं करेंगी बार और रेस्टोरेंट में ग्राहकों को खाना और शराब परोसेंगी / घर में बच्चो और बुजुर्गो की देखभाल की बजाय कंपनियों के रिसेप्सन काउंटर पर सज- धज कर ग्राहकों को लुभाना ज्यादा पसंद है./ धर्म, दर्शन, विज्ञानं की जगह फैसन, ग्लैमर, सेक्स जैसे विषयों को प्रमुखता दिया जाने लगा है / अपने सुन्दर काया को महिलायों ने नुमाइस और पैसा बनाने की वस्तु में बदल डाला / ऐसा नहीं है कि सारी महिलाये इसी विचारधारा की है अधिकांश महिलाये आज भी आदर्श जीवन जी रहीं है लेकिन समाज में वे प्रमुखता नहीं पा रही / आज शिक्षा , राजनीती , धर्म, दर्शन में महिलायों का अभाव है जबकि वे अपनी योग्यता फैसन, ग्लैमर , सिनेमा, सिरिअल , बिउटी पार्लर, मसाज सेंटर में दिखा रही है / आज समाज में सीता , सावित्री, लक्ष्मीबाई, की जगह सनी लिओन, पूनम पांडे और सर्लिन चोपड़ा ने ले लिया है/ अनुशाषित और मर्यादित जीवन शैली की जगह खुली संस्कृति को प्रमुखता देकर पुरुषो की बराबरी का ख्वाब देखनी वाली महिलाये आज भी पुरुषों से सुरक्षा प्रदान की अपेक्षा कैसे करती है यह आश्चर्यजनक है / यदि वह पुरुष बनना चाहती है तो अपने सुरक्षा और सम्मानजनक जीवन जीने की जिम्मेवारी भी उन्हें खुद लेनी होगी / सार यह है की कम संख्यक महिलाएं जो पश्चिमी जीवन शैली को अपनाकर पुरुषो की बराबरी कर रही है वह बहुसंख्यक भारतीय आदर्श जीवन शैली जीने वाली महिलाओं पर भारी पड़ रही है / नतीजन महिलाओं पर अत्याचार बढ़ा है और उनका कद छोटा हुआ है /