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पुरुषों के बराबरी के चक्कर में महिलाओं ने अपना कद छोटा किया है

28 जून 2016

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पहले महिलाएं त्याग, संस्कार, धर्म और सादगी की प्रतिमूर्ति हुआ करती थी / इन्ही विशेष गुणों के कारण उन्हें भारतीये समाज में देवी का स्थान प्राप्त था / इन सब गुणों को महिलायों ने बिना किसी के दबाव में स्वच्छेया से अपनाया था / वह परिवार की आतंरिक मैनेजर बनकर गर्व महसूस करती थी / महिलाएं परिवार के आतंरिक जिम्मेवारी को सफलता पूर्वक पूरा करती और पुरुष इन जिम्मेवारियों से निश्चिन्त होकर अपने बाहरी, समाज, और देश की जिम्मेवारियों को निभाता था / वह परिवार को आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा भी प्रदान करता था / इस तरह पुरुष परिवार के आतंरिक जिम्मेवारियों के लिए महिलायों पर तथा महिलाएं परिवार के आर्थिक और सामाजिक जिम्मेवारियों के लिए पुरुषों पर निर्भर रहते थे और ऐसे ही अपने आवस्कतायों के लिए एक दूसरों पर निर्भरता से ही परिवार नामक एक मजबूत संगठन का निर्माण हुआ था जिसमे महिलाओं का स्थान पुरुषो से कही ज्यादा ऊँचा था / महिलाये भोजन तैयार करने जैसा पवित्र कार्य, बच्चों और बुजुर्गो की देखभाल, धर्म और संस्कार का पाठ पढ़ाने जैसा विशेष कार्य जिसमे वह स्वयं पारंगत थी किया करती थी / पुरुष खेतो में कड़ी मेहनत, व्यवसाय और सेनाओं में नौकरी करके अर्थ उपार्जन करता था जिससे परिवार की आर्थिक जरूरतें पूरा होती थी / वह अपने पुरुषार्थ के बल पर परिवार को सामाजिक सुरक्षा भी प्रदान करता था जिससे महिलाये सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन यापन करती थी / लेकिन पश्चिमी संस्कृति, बाजारवाद, भोगवाद, और वैश्वीकरण के फलस्वरूप बने नए समाज में महिलयों के दिमाग में यह भर दिया गया की वह पुरुषो की गुलाम है और उन्हें पुरुषो के बराबरी करना होगा / इन्ही बराबरी के चक्कर में महिलयों ने अपने कद छोटा करना शुरू कर दिया / पहनावा, विचार, स्वछंदता, सबमे वह पुरुषों का नक़ल करने लगी /परिवार में पति का सहायक बनना पसंद नहीं ऑफिस में PA बनकर बॉस का मनोरंजन करना पसंद है / घर में चूल्हा- चौका नहीं करेंगी बार और रेस्टोरेंट में ग्राहकों को खाना और शराब परोसेंगी / घर में बच्चो और बुजुर्गो की देखभाल की बजाय कंपनियों के रिसेप्सन काउंटर पर सज- धज कर ग्राहकों को लुभाना ज्यादा पसंद है./ धर्म, दर्शन, विज्ञानं की जगह फैसन, ग्लैमर, सेक्स जैसे विषयों को प्रमुखता दिया जाने लगा है / अपने सुन्दर काया को महिलायों ने नुमाइस और पैसा बनाने की वस्तु में बदल डाला / ऐसा नहीं है कि  सारी महिलाये इसी विचारधारा की है अधिकांश महिलाये आज भी आदर्श जीवन जी रहीं है लेकिन समाज में वे प्रमुखता नहीं पा रही / आज शिक्षा , राजनीती , धर्म, दर्शन में महिलायों का अभाव है जबकि वे अपनी योग्यता फैसन, ग्लैमर , सिनेमा, सिरिअल , बिउटी पार्लर, मसाज सेंटर में दिखा रही है / आज समाज में सीता , सावित्री, लक्ष्मीबाई, की जगह सनी लिओन, पूनम पांडे और सर्लिन चोपड़ा ने ले लिया है/ अनुशाषित और मर्यादित जीवन शैली की जगह खुली संस्कृति को प्रमुखता देकर पुरुषो की बराबरी का ख्वाब देखनी वाली महिलाये आज भी पुरुषों से सुरक्षा प्रदान की अपेक्षा कैसे करती है यह आश्चर्यजनक है / यदि वह पुरुष बनना चाहती है तो अपने सुरक्षा और सम्मानजनक जीवन जीने की जिम्मेवारी भी उन्हें खुद लेनी होगी / सार यह है की कम संख्यक महिलाएं जो पश्चिमी जीवन शैली को अपनाकर पुरुषो की बराबरी कर रही है वह बहुसंख्यक भारतीय आदर्श जीवन शैली जीने वाली महिलाओं पर भारी पड़ रही है / नतीजन महिलाओं पर अत्याचार बढ़ा  है और उनका कद छोटा हुआ है /

राजेश कुमार श्रीवास्तव की अन्य किताबें

अभय Tiwari

अभय Tiwari

सही है

29 जून 2016

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बेटी बचाएँ , बेटी पढ़ाये

31 मई 2016
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बेटी बचाएँ , बेटी पढ़ाए /यदि ना किये, तो भी ना पछताएं /  लड़ना उसको अवस्य सिखाए / जितना ज्यादा लड़ेंगी बेटियाँ / उतनी जल्दी सेट होंगीं बेटियां / कानून बताएं, सीरियल दिखाएँ / ससुराल वालों को कैसे फंसाए / ये ना जानेंगी बेटियां ,तो कैसे शेरनी बनेगी बेटियां /सभी बेटी वाले परिवारों के लिए जनहित में जारी /  

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त्याग

25 जून 2016
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अपनी कार से उतर कर मैं सीधे ऑफ़िस के अपने केविन में प्रवेश किया / बैंग को टेबल पर रखा और उस पर रखे कागज़ात तथा फाइलों पर नज़र डाली / आज बहुत कम काम निपटाने थे / एक -एक कर मैं उन फाइलों और कागज़ात को उलट-पुलट कर देखने लगा / अचानक मेरी नज़र एक बंद लिफाफे पर पड़ी / शायद कल की डाक से आई थी / यह लिफाफा कोई

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पुरुषों के बराबरी के चक्कर में महिलाओं ने अपना कद छोटा किया है

28 जून 2016
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पहले महिलाएं त्याग, संस्कार, धर्म और सादगी की प्रतिमूर्ति हुआ करती थी / इन्ही विशेष गुणों के कारण उन्हें भारतीये समाज में देवी का स्थान प्राप्त था / इन सब गुणों को महिलायों ने बिना किसी के दबाव में स्वच्छेया से अपनाया था / वह परिवार की आतंरिक मैनेजर बनकर गर्व महसूस करती थी / महिलाएं परिवार के आतंरिक

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ठूठ

29 जून 2016
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हे पथिक मुझे माफ़ करना।इस भरी दुपहरी में-तुम्हारी तपन मिटाने  के लिए -मेरे पास अपने हरे कोमल पत्तियों की छाया नहीं हैं। हे पथिक मुझे माफ़ करना।आज इस निर्जन भूखंड पर-तुम्हारी  क्षुधा मिटाने के लिए-मेरी सुखी डालियों में अब फल नहीं है। हे पथिक मुझे माफ़ करना।इस चिलचिलाती धुप में-तुम्हारी तृष्णा मिटाने के

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वेश्या

30 जून 2016
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वो हर शाम दिख जाती /उस खंडहर सा इमारत के नीचे /जिसकी सफेदी, दिवाल के पपड़ियों के साथ-उजड़ गई थी वर्षों पहले /लेकिन उसकी कोमल चमड़ियों को-सभ्य समाज नोच-नीच कर भी -नहीं उजाड़ पाया था अब तक /टूटी खिड़किया, अधखुले दरवाजे/दीवालों पर लटकती लताए /शाम होते ही लगती थी टिमटिमाने-केरोसिन की ढिबरिया /सज जाती थी

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रामू काका

2 जुलाई 2016
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"अरे! बबुआ / तुम कईसे-कईसे यहाँ पहुँच गए /" रामू काका अचानक मुझे दरवाजे पर खड़ा पाकर हैरान थे / दरवाजा खोलकर झट मुझे अपनी गोद में उठाना चाहा / लेकिन अब मैं इतना भारी हो गया था कि काका उठाने के अपने प्रयास में सफल नहीं हो पाये / मै हंसते -हंसते उनसे लिपट गया और बोला " काका अब मैं बड़ा हो गया हूँ / मु

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सीख

12 जुलाई 2016
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अक्सर जब घर में कमाने वाला एक और खाने वाले अत्यधिक हों तो जो हाल होता है वही हाल सुधीर का था/ उसके अलावा,  परिवार में माता -पिता,एक बेरोजगार भाई, एक अविवाहित बहन और एक तलाकशुदा बहन अपने दो-दो बच्चों के साथ एक ही घर में रहते थे / सभी के खर्च का जिम्मा सुधीर ही उठाता था / पिताजी रिटायर्ड हो चुके थे और

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बलात्कार जारी है /

13 जुलाई 2016
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पीड़िता अपने स्वजनो के साथ थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने और मेडिकल टेस्ट कराने के बाद जैसे ही घर पहुंची उसने देखा घर पर मीडिया वालों का जमावड़ा लगा था  / टैक्सी से उनके उतरते ही मीडिया के लोग अपने-अपने कैमरे और माइक लेकर पीड़िता के पास पहुँच गए / उसके घरवालों ने मीडिया वालों को रोकना चाहा लेकिन वो खुद मी

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ऐसे विज्ञापनों के प्रकाशन क्यों ?

14 जुलाई 2016
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आजकल प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक सभी तरह के मीडिया पर कुछ ऐसे विज्ञापन प्रकाशित  किये जा रहे है जो बच्चो, किशोर, युवाओं के साथ -साथ बृद्धों को भी बुरी तरह से प्रभावित कर सामाजिक पतन, आर्थिक नुकसान के साथ-साथ उनको चारित्रिक पतन की ओर ढ़केल रहे है / ऐसे विज्ञापनों के माध्यम से खुलकर समाज में देह व्यवसाय, अन

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डैड मेरे लिए हस्बैंड खरीद दो ना /

15 जुलाई 2016
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डैड अब मैं यंग हो गई हूँ/ब्वाय फ्रैंड बदलते-बदलते -तंग हो गई हूँ/अब मुझे चाहिए स्थाई समाधान/ला दो ना मुझे कोई हैंडसम, स्मार्ट  चाहे जितना देना पड़े दाम/"कन्या दान" का नाम मत लेना/वर खरीदकर मुझे दान कर देना/कोई ऐसा वर खरीदना /जो जिंदगी भर मेरी गुलामी कर सके/गाड़ी, बंगला मैं जहाँ-जहाँ चाहू दिला सके/उस

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फेसबुक

18 जुलाई 2016
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"अबे स -I ---ल--/ मैं आधे घंटे से तेरे सामने बैठा हूँ / तेरे डब्बे की सारी बिस्किट खा चुका / अपना और तेरा, दोनों चाय का कप शेष कर डाला / लेकिन तू है क़ि कम्प्युटर  से नजर ही नहीं हटाता/ स -I ---ल-- अब तू कम्प्युटर चला और मैं चला /" मैं गुस्से से कुर्सी से उठते हुए दरवाजे क़ि ओर बढ़ा / गुस्सा आना भी

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अब गदहे भी घोड़े कहाने लगे है

19 जुलाई 2016
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इस कदर अब बुरे वक्त आने लगे हैं /सोएं मुर्गे, लोग उनको अब जगाने लगे हैं/ कश्ती डूबने की  डर थी जिन्हे बीच भँवर में /अपनी कश्ती ही खुद वो डुबोने लगे है /ना दुःख में शामिल, सुख में मिलना बामुश्किल /अब "फेसबुक" पर ही दोस्ती निभाने लगे है /जवानी के जोश में हुए बेख़ौफ़ इस कदर /मासूमों पर ही अपनी मर्दांगि

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तू मेरे सीने से लिपटो /

21 जुलाई 2016
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चलो हम सब मिलकर -आपसी नफ़रत को - जलाकर राख कर डाले /तू मेरे सीने से लिपटो ,हम तुम्हे गले लगा डाले /तू हमारे और  हम तुम्हारे -भावनाओं का रखें ख्याल /बन गई जो दूरियाँ -उसे सिमटा डाले /तू मेरे सीने से लिपटो ,हम तुम्हे गले लगा डाले /अब न कोई सेंक सके रोटी -हमारी भावनाओं की-जलाकर आग /राजनितिक मुहरा बनने स

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लिंग-भेद

22 जुलाई 2016
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 "इक्कीसवी सदी में स्त्रियाँ किसी भी मायने में पुरुषों से कम नहीं है / कारखाना हो या ऑफिस, सीमा पर लड़ना हो या अंतरिक्ष में चहलकदमी, सभी जगह महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधे मिलाकर आगे बढ़ रही है / और एक आप है जो खुद नौकरी करते है लेकिन मुझे रोकते है / बड़े सौभाग्य से मेरी सहेली ने मेरे लिए कॉल स

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ना हिन्दू बुरा है ना मुसलमान बुरा है

23 जुलाई 2016
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ना हिन्दू बुरा है ना मुसलमान बुरा है /कौन कहता है अपना हिन्दुस्थान बुरा है /करे जो वतन से गद्दारी, धरम के नाम पर /मै कहता हूँ उनका इमान बुरा है /ना मेरा राम बुरा है ना तेरा रहीम बुरा है /दोनों के दिमाग में बैठा शैतान बुरा है /कराता है अधर्म लेकर नाम धर्म का /इंसान के भेष में घूमता हैवान बुरा है /ना

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गुस्सा

12 अगस्त 2016
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गुस्से से जब वे लाल हो गए /बुद्धि से तब वे कंगाल हो गए /लिए निर्णय जब - जब वे गुस्से में /मत पूछो, हाल उनका बेहाल हो गए /गुस्से की आग झुलसाता किसी को /क्रोध की अग्नि जलाता है खुद को /रखो इसे बहुत दूर या फिर काबू में /रखके पास इसे कई बेसमाल हो गए /गुस्से ने अब तक बनाया है किसको /क्रोध एक मीठा जहर उजा

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खंडित भारत माँ का क्रन्दन

13 अगस्त 2016
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सुनती   हूँ  ना कि मै -सैकड़ो वर्षो की पराधीनता से मुक्त हुई हूँ।तुमने मेरी गुलामी की जंजीरों को काटकर,मझे स्वतंत्र किया है।लेकिन मुझे याद है-मेरी खुली बालें लहराती थी-मुजफ्फराबाद, रावलपिंडी, लाहौर से क्वेटा तक।आज मुझे नहीं दिखाई पड़ती है,मेरी लहराती, उन्मुक्त बालें।रोज नए नए जख्म मेरे सर में-पैदा क

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माँ का ज़ेहाद

15 अगस्त 2016
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शायद दिल्ली के राजपथ पर गणतंत्रता दिवस पर होने वाले परेड की तैयारी भी उतनी जोर -शोर से नहीं चल रही होगी जीतनी तैयारी रेहाना बीबी गणतंत्रता दिवस के एक दिन पहले अपने घर पर कर रही थी / उनका एकमात्र बेटा अब्दुल्ला,  दो वर्षों के पश्चात सऊदी अरब से कमा कर घर  लौट रहा था / चौबीस जनवरी को ही वह मुम्बई एअरप

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इण्डिया बनाम भारत

29 अगस्त 2016
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ये इण्डिया वाले, अपने बच्चे तक को - गोद में नहीं उठा पाते है / भारत के लोग,अधेड़ पत्नी के शव को उठाकर- मीलों चले जाते है / (चित्र गूगल से साभार)

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मदर टेरेसा की सेवा भावना /

4 सितम्बर 2016
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कहते है जहाँ सेवा है वहां स्वार्थ नहीं और जहाँ स्वार्थ है वहां सेवा नहीं / मदर टेरेसा सात समुद्र पर करके भारत जैसे देश में सेवा के उद्देश्य से आई थी ऐसा नहीं है / उनका मूल उद्देश्य सेवा की आड़ में हिन्दुओं का ईसाईकरण करना था / और, किसीके सेवा का एक प्रतिशत भाग भी यदि

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अतिथि देवो भव:

8 सितम्बर 2016
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अपने भारत की संस्कृति में अतिथि को देवता के समान माना जाता है / यदि शत्रु भी किसी के घर पर अतिथि बन कर जाता है तो उसे अपमानित नहीं करने की परंपरा है / लेकिन कुछ दिनों पहले कश्मीर में जो भी हुआ वह भारतीय परम्परा और संस्कृति के सीधे उलट है / जब कश्मीर की वर्तमान समस्या

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विजयादशमी

11 अक्टूबर 2016
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अब हम विजयादशमी कुछ इस तरह मनाते है / पुतले तो फूंक देते रावण बचा लिए जाते है / अच्छाई के रास्तों पर चलना गंवांरा नहीं हमें /बुराइयों के सहारे हम ऊँची छलांग लगाते है / राजेश कुमार श्रीवास्तव विजयादशमी की हार्दिक शुभकामना /( फोटो गूगल से साभार)

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प्रधानमंत्री भजन

23 नवम्बर 2016
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तुम्ही हो त्राता, भाग्य विधाता / खोज रही थी जिसे भारत माता / देशभक्तों के तुम बन गए सवारी / दुश्मनो पर तूम पड़ रहे हो भारी / ना पद का मोह ना धन से नाता / छोड़ा घर-बार, बने राष्ट्र निर्माता / नाम तुम्हारा सुन शत्रु घबड़ाये / भारत माता की जयकार लगाए / एक भारत श्रेष्ठ भ

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एकता

24 नवम्बर 2016
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यदि साथ ईमानदारों के- खड़े ना हो सको तो / सारे बेईमानो एक हो जाओ / भय, भूख और भ्रष्टाचार मुक्त ,देश के राह में रोड़े अटकाऒ

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मुझे दूसरे के घर जाना है न

24 मई 2017
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अपने मित्र सोहन के साथ उसके बहन के घर पहुँचा / सोहन की बहन रेखा की शादी शहर से ४० किलोमीटर दूर एक गांव में हुई थी / सोहन और हम एक दूसरे के गहरे मित्र थे / हमें देखकर पता ही नहीं चलता की हमलोग मित्र है या सगे भाई / रेखा भी मुझे अपने छोटे भाई जैसा प्यार देती / रक्षा बंधन हो

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हम कितना नीचे उतर गए

25 मई 2017
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हजारों साल पहले जिस देश में - विशाल स्नानागार हुआ करें , और आज उसके नागरिकों को - शौच करने की जगह बतलानी पड़े, तो समझों हम कितना पिछड़ गए / जिस देश के संस्कार में - स्वच्छता को ईश्वर का निवास - बतलाया जाय और - फिर आज उसके निवासियों को - स्वच्छता की पाठ पढाई जाय / तो समझो

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हो मेरे राम

7 जून 2017
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हो मेरे राम, मेरे भगवान / फिर से आओ ना अपने धाम / हो मेरे राम, मेरे भगवान / छल की शिकार बन रही अहिल्या / बन जाओ ना तारणहार / तुझे पुकार रहे विश्वामित्र होकर ताड़का , मारीच से परेशान / हो मेरे राम, मेरे भगवान / फिर से आओ ना अपने धाम / सब कुछ लुटा चुकें है सुग्रीव / आओ

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शौच का समय

9 जून 2017
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कुछ साल पहले की घटना है / मैं अपने पैतृक गांव बैकुंठवा एक रिश्तेदार की शादी में सम्मिलित होने आया हुआ था / यह गाँव बिहार प्रदेश के पश्चिम चंपारण जिले में है / यह क्षेत्र काफी पिछड़ा है / मुझे एक सप्ताह यहाँ रुकना था / जून का महीना था / काफी गर्मी पड़ रही थी / सुबह चार बजे ह

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दूरियाँ

14 जून 2017
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चलो दूरियां कुछ सिमटा लेते है / एक दूजे को फिर अपना लेते है / क्या ठीक, ये जिंदगी रहे ना रहे / रिश्तों की गर्माहट बढ़ा लेते है / ना तुम याद रखो, मै भूल जाऊ / सारे गीले -सिकवे मिटा लेते है / तुम मैं, और मैं तुम बन जाऊं / रिश्तों को नया अंजाम देते है / दूरियां बढ़ ना पाए फिर

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कई और बंगलादेश बना देंगे /

14 जून 2017
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तुम बार-बार- हमारी सहनशीलता का - परीक्षा लेते हो / जीत जाने पर बुजदिल, और- हारने पर असहिष्णु / नाम देते हो / तुम पत्थर चलाते रहो, और - हम फूल बरसाते रहें / ये कैसा तुमने - शौक पाल रखा है / सहनशीलता का ठेका क्या अकेले हमने ही - सम्भाल रखा है / एक गाल में थप्पड़ - जड़ दो

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मैं मोबाइल फोन हूँ

29 जून 2017
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मैं मोबाइल फोन हूँ / वर्तमान युग में - मानवता के खातिर - मानव द्वारा आविष्कृत - एक अभूतपूर्व खोज / मैंने सिमटा है दूरियों को - ताकि इस विशालकाय पृथ्वी को बनाया जा सके एक गांव / मैंने मिलाये है - कई अनजानों को / बधें है कई जोड़ों पवित्र बंधन में - मेरे ही खातिर

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मेरा वो देश कहाँ है /

22 जुलाई 2017
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http://rajeshkumarsrivastav.jagranjunction.com/2017/07/22/%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A4%BE-%E0%A4%B5%E0%A5%8B-%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6-%E0%A4%95%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%81-%E0%A4%B9%E0%A5%88/

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संघे शक्ति कलियुगे

5 अगस्त 2017
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अब देश के तीनों शीर्ष पदों पर राष्ट्रिय स्वयं संघ से सम्बंधित लोग आसीन हो चुके है / राष्ट्रपति के पद पर श्री रामनाथ कोबिंद जी , उपराष्ट्रपति के पद पर श्री वेंकैया नायडू जी और प्रधानमंत्री के पद पर श्री नरेंद्र मोदी जी आसीन ह

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बंगलादेश के राष्ट्रगान में मातृवन्दना

18 अगस्त 2017
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उत्तर प्रदेश के योगी सरकार के सभी मदरसों में स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर राष्ट्रगीत गाने के आदेश के खिलाफ कई मुश्लिम संगठन और इस्लामिक धर्मगुरुओं ने आवाज़ बुलंद की है / खबर है की भारतवर्ष के राष्ट्रगान वन्दे मातरम को गैर इश्लामिक करार देते हुए कई मदरसों में इसे गाने नह

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