क्या कभी महसूस किया है तुमने?
उत्पत्ति कारक के होने का कल्पित माध्य?
अथवा सपनो की कब्रगाह से उठती
शांत चीखों को? या फिर बारहवीं पुत्र संतति
के असफल रहने के फलस्वरूप चीथड़े हो
चले विस्तर में लिपटी एक कोने में चंद ईंटों
पर टिकी, टूटी चारपाई पर पड़ी,अपनी जबानी
में मोनालिसा को भी शर्माती, झुर्रीदार चेहरे की
स्वामिनी, उस बीमार मां की दो टिमटिमाती
आंखों से झरते दर्द को, महसूस किया है तुमने?
है कोई उत्तर तुम्हारे पास? उन आंखों से रिसते
प्रश्नों का, जो अद्यतन निरुत्तर हैं, वो पूछती है?
"मेरे और उसके द्वारा संतति क्रम में समान
उपक्रम के बाबजूद मेरे और उसकी संतानों
के बीच इतना भाग्यांतर.......................?"
उत्तर पाना उसका हक नहीं है क्या? शायद!
जीवन के अंतिम क्षणों में उसे इंतजार है, तो
सिर्फ कर्ता के वास्तविक सच को जानने का
उसे याद है कि कैसे विवश किया गया था,
उस कल्पित माध्य पर ईमान लाने को, जो था
तो, ग्रंथों में वर्णित कथाओं में, मिला?...नहीं,
सुना था उसे देखा भी गया था, पर इंसानों द्वारा
नहीं, मात्र मूल बीज_और कल्पित माध्य के
बीच चिन्ह बनकर अवतारित योजकों द्वारा,
उस सब पर वह भी तो थी आस्थान्वित,
पर दुर्गति को पूर्व जन्म के कुक्रत्य का प्रतिफल
मानने को तैयार नहीं थी वो, उसकी पथराती
आंखों में प्रश्न है? आखिर सर्व नियंत्रक के
न्यायालय में भी पेंडेंसी? वो भी इतनी! कि इस
जन्म की फाइल और फैसला अगले जन्म,
क्या ये नाइंसाफी नहीं है? उसका मानव उसे
डराता है, ये पूछना तो दूर, सोचना भी पाप है,
पर आज न जाने क्यों,बाक शक्ति खोने के
उपरांत उसका अंतर उठते प्रश्नों के सटीक उत्तर
की खोज में खोया है, अंततः गमन से पूर्व वह
जान चुकी है, जीवन बीजगणित के एक समीकरण
से ज्यादा कुछ नहीं है जहां बहुत से निर्मूल्य अंक हैं,
और वही बीज हैं कुछ होने का,एक अंक के होने या
न होने से ब्रह्मांड के बीजगणित पर कोई असर
नहीं पड़ता, शायद इसीलिए उसके पुत्र पर भी
नहीं पड़ता,अनायास टिमटिमाती आंखों के
जुगुनू थक कर सन्नाटों के अंतहीन जंगल में
खो जाते हैं, उस दर्द को...क्या महसूस किया
है तुमने? उस अंतहीन सन्नाटे से उठती
निरुत्तर प्रश्नों की दम तोड़ती चीत्कारों की
बजबजाती बदबू को,जो कभी ही खुशबू
बन पाए? क्या कभी.......................?
हां मैंने किया है महसूस, जिस्म को खाक में
बदलने तक के अंतिम सफर में मैने ढोया है
उस दर्द को, क्योंकि मैं आतिश हूं, आतिश।
@ नवाब आतिश। 2/11