क्या कभी महसूस किया है, तुमने?
सबकुछ में कुछ कम होना या फिर,
कम में सबकुछ होने का
नितांत अप्रत्याशित एहसास,
जिसका ताल्लुक, यकीनन
तुम्हारे होने या न होने से,
बिल्कुल भी नहीं है।
क्या कभी महसूस किया है तुमने?
धूप के तिनकों पर पड़ती,
बारिश की बूंदों के अंतर को-
सोखती असहनीय जलन को?
जिनके गृह त्याग का उद्देश्य,
ये बिल्कुल भी न था,
पर ये क्या? आखिर क्यों?
मोती बनने की महत्वाकांक्षा ने,
न सिर्फ दम तोड़ दिया, अपितु,
बूंद के अस्तित्व को ही........?
क्या सोचते हैं? क्या ऐसा होना,
उनके होने या ना होने से
प्रभावित हो पाता? शायद.....?
परंतु इस होने में, यकीनन,
उनका कोई हाथ नहीं था।
फिर भी उन्हें दोषी माना गया,
धूप के मासूम तिनकों के कत्ल का।
जबकि सब जानते हैं, क्या सच?
वही तिनके यदि जवान हुए होते,
वास्पित कर सकते थे जीवन बीज-सागर,
जला सकते थे नवजात पल्लव-गात को,
झुलसा सकते थे किसी तरुणी लता पर,
पल्लवित नवांकुर के नवजनित पात को,
आखिर क्यों संचित किया जाता है,
ऐसे घातक तिनकों को, तुम्हारे होते हुए?
अब यह मत कहना कि इसमें तुम्हारा
कोई हाथ नहीं है, यकीनन हाथ हो ना हो,
साथ तो है न, सोचिएगा?
@ नवाब आतिश।....01/11