कहीं तो महफूज रखो मुझे अपने घराने में,
कहीं उम्र न बीत जाए खुद को बचाने में,
एक तो वैसे ही बदनाम हैं हम तेरी चाहत में,
कहीं पकड़े न जाये तेरे साथ आने जाने में,
घोसला बना कर तुमने तो खो दिया हौसला,
मैं कैसे बसाऊ आशियाना तेरे बिना ज़माने में,
बेदाम हो तुम तो मगर मोल हमारा तो है,
कैसे मिल जाऊ मैं भी बिनमोल के खजाने में,
तेरी मोहब्बत में हम ख़ास से अंजान हो गए,
और तुम उस्ताद निकले नफरत को भी जताने में,
लत ऐसी लगी तेरे दीदार की हम बदनाम हो गए,
और तुम बाज़ न आये खुद को बेहतर दिखाने में,