आज देखा माता की चौकी को एक मुस्लिम दे रहा था सहारा,
वो अपना मजहब भूल कर सिर्फ पैसे था कमा रहा,
फ़िक्र न थी उसको किसी भी लड़ाई दंगे की जनाब,
वो तो बड़ी ख़ुशी से माता के कदमो में था फूलो को बिछा रहा,
माता की चौकी के पीछे ही चल रहा था एक जनाजा भी,
रोक कर माँ की चौकी को सारे हिंदू ने जनाजे को दिया सहारा भी,
देख कर इंसान की ऐसी अदभुत सोच का नजारा,
मन बाग़ बाग़ हो गया एक बार फिर से हमारा,
हर किसी के मन से अगर ये जात धर्म का झगड़ा मिट जाए,
वो दिन दूर नहीं जब ये भारत फिर से हिंदुस्तान बन जाये,