प्रायश्चित कहानी [ तीसरी क़िश्त ]
16 वें दिन बनवारी लाल राजस्थान से वापस आए। दोपहए 3 बजे वे घर पहुंचे साथ में उन्होंने अपने साथ ज़हर का पुड़िया भी लाए थे । स्नान करके तैयार होते होते 4 बज गए। बहू ने उनको भोजन परोसा ,फिर वे बहू को यह कहते हुए अपने कमरे में चले गए कि अब मैं रात को कुछ नहीं खाऊंगा । मैं लंबे सफ़र से बुरी तरह से थक गया हूं । अब मैं सोऊंगा और कल सुबह ही तुम सबसे मुलाक़ात होगी । कमरे में जाकर उन्होंने ज़हर का पुड़िया निकाला और थोड़ी देर बाद कमरे से बाहर देखा उन्हें जब यह तसल्ली हो गई कि घर के सारे सदस्य अपने कमरे में हैं तो वे किचन में गए । वहां से गुड़ का एक डल्ला उठाकर ले आए और ज़हर को गुड़ के डल्ले में मिलाकर पार्वती को खाने के लिए दे दिए और खुद अपने कमरे में आकर सो गए।
सुबह 9 बजे उनकी नींद खुली तो घर में एक अजीब सी शान्ति छाई थी । किचन से कोई आवाज़ नहीं आ रही थी न ही पोते की धमा चौकड़ी की आवाज़ आ रही थी । लेकिन पार्वती की रंभाने की आवाज़ बीच बीच में सुनाई दे रही थी । जिसे सुनकर बनवारी लाल जी को लगा कि हो सकता कि ज़हर ने पार्वती पर कम असर किया हो । अत: वह ज़िन्दा है । उन्होंने अपने बेटे और बहू को आवाज़ दिया पर जब कोई उत्तर नहीं मिला तो उनके मन में किसी अनहोनी की आशंका बलवति होने लगी । वे किचन की ओर बढे और किचन का दृश्य देखकर वे गश खाकर ज़मीन पर गिर गए। डायनिंग टेबल के अलग अलग हिस्से पर उसके बेटे , बहू और पोते बेसुध पड़े थे । उन तीनों के सामने दूध का गिलास रखा था और तीनों गिलास में थोड़ा थोड़ा दूध बचा दिख रहा था । ऐसा प्रतीत हो रहा था कि तीनों ने दूध पिया हो और दूध पीने से उनकी तबीयत खराब हुई हो । कुछ देर बाद बनवारीलाल जी को होश आया । उन्हें लगने लगा कि कोई बड़ा हादसा उसके परिजनों के साथ हुआ है । दूर से बेटे बहू, पोते को देखने से लग रहा था कि उनकी सांसे नहीं चल रहीं थी । बनवारीलाल ने तुरंत ही अपने कुछ रिश्तेदारों को फोन करके घर बुलाया । साथ ही पड़ोस के गुप्ता डाक्टर को भी बुलाया गया । डाक्टर गुप्ता ने उनके बेटे , बहू और पोते की जांच करके कहा कि तीनों स्वर्ग लोक की ओर प्रस्थान कर गए हैं । तीनों के व्होंठ व सीने नीले पड़े हैं । संभवत: तीनों की मृत्यु ज़हर के सेवन से हुई है । यह सुनकर बनवारीलाल दहाड़ मारकर रोने लगे । उन्हें लगने लगा कि उन तीनों की मृत्यु का कारण मैं ही हूं । मेरे ही अधार्मिक कृत्य से हीउन तीनों की मौत हुई है । उनका दिमाग कहने लगा कि जो ज़हर मैंने पार्वती को दिया था वह पार्वती के लिए तो नाकाफ़ी साबित हुआ पर ज़हर का जो अंश पार्वती के दूध में प्रवाहित हुआ वह इंसानी ज़िन्दगी को लीलने के लिए काफ़ी था । वह अंदर से टूटने लगे और मन ही मन खुद से कहने लगे कि बनवारीलाल तुमने क्या किया ? दो चार सौ रुपियों के लिए ऐसा किया कि अपन परिजनों को ही मौत के आगोश में पहुंचाने की वजह बन गए। अब तो जीवन भर मुझे आंसू बहाना पड़ेगा और कोई आंसू पोछने वाला भी शायद ही मिले। इस बीच तीनों दिवंगतों की अंतेय्ष्ठी की तैयारी होने लगी । इस बीच चरवाहा नंदू आया और पारवती को बंधन से छुड़ाकर बाहर ले जाने लगा । उस समय बनवारीलाल को नंदू से पता चला कि पिछले 10 दिनों से पार्वती की तबीयत ठीक है । वह घूम फिर रही है , दाना अच्छे से खा रही है और दूध भी 10 से 15 किलो दे रही है । दूध का उपयोग घर वाले अच्छे से कर रहे हैं । यह सुनकर बनवारीलाल सन्न रह गए। वह सोचने लगे कि मैंने इस काम को इतनी जल्दी बाज़ी में क्यूं किया ? कम से कम एक दो दिन रुक जाता तो पार्वती के स्वास्थ्य के बारे में पता चल जाता । फिर उसे ज़हर देने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती । जिससे घर में जो हादसा हुआ वह नहीं होता । यह सोचते सोचते उनका दिमाग भिन्नाने लगा , फिर वे कब बिस्तर में पसर गए उन्हें पता भी नहीं चला ।
[ क्रमश; ]