--- प्रायश्चित---[ दूसरी क़िश्त ]
बनवारीलाल ने पार्वती को अपने घर ले जाकर घर के आंगन में बंधवा दिया ।
वहां जाकर पार्वती बहुत ही उदास रहने लगी । हालाकि शुरू के 2 दिन उसने दूध तो वैसे ही दिया जैसे वह रोज़ देती थी । जिसे जानकर बनवारीलाल जी बेहद ख़ुश हुए। वे 2 किलो दूध घर के लिए रखकर बाक़ी दूध को बिकवा देते थे । जिससे उनको अच्छा खासा पैसा मिल रहा था । तीसरे दिन पार्वतू ने दूध देना बंद कर दिया । तब बनवारीलाल ने एक पशु चिकित्सक से उसका इलाज करवाया । जिन्होंने पार्वती को कुछ इंजेक्शन लगाया और कुछ दवाएं खिलाने के लिए लिखकर दिया । ये दवाएं बहुत ही महंगी थी। जिसका रोज़ाना खर्च लगभग 300) 00 आता था । 5/6 दिनों तक तो बनवारीलाल ने पार्वती के इलाज के खर्च को उठाया पर 7 वें दिन से बनवारीलाल ने दवाओं के खर्च से परेशान होकर दवाएं खरीदना बंद कर दिया । धीरे धीरे पार्वती कमज़ोर होती गई । उसकी तबीयत में सुधार के कोई लक्षण दिखाई नहीं दे रहे थे । वैसे पार्वती दाना रोज़ बराबर खा रही थी । पार्वती के दाने का खर्च भी लगभग 100 रुपिए आता था । अब बनवारीलाल को लगने लगा कि उसने पार्वती को घर लाकर बड़ी गल्ती कर दी है । एक सिर दर्द मोल ले लिया हूं । अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारा हूं । अब पार्वती को लौटाया नहीं जा सकता था ,जब तक कि गोपाल सारा पैसा ब्याज सहित लौटा न दे। जिसकी संभावना दूर दूर तक नज़र नहीं आ रही थी । देखते देखते 1 महीने गुज़र गया पार्वती ठीक हो रही थी न ही वह भगवान को प्यारी हो रही थी । उधर उसका बेटा गणेश मां का दूध न मिलने के कारण 15 दिनों में ही स्वर्ग सिधार गया था । साथ ही गोपाल पैसा न पटा पाने के कारण और पार्वती को बनवारीलाल के द्वारा अपने घर ले जाने के कारण परेशान रहने लगा । धीरे धीरे उसका दिमागी संतुलन बिगड़ने लगा और एक दिन गोपाल बिना किसी को बताये गांव छोड़कर कहीं चला गया । घर वालों को भी पता नहीं चल पाया कि आखिर गोपाल कहां चला गया ।
उधर बनवारीलाल पार्वती के कारण परेशान था । कभी वह सोचता था कि इस गाय को कांजी हाउस में डाल दिया जाए और इससे मुक्ति पाई जाए पर बदनामी के दर के कारण वे पीछे हट गए कि मुहल्ले और समाज वाले ये न कहने लग जाए कि एक बीमार गाय के इलाज का खर्च न ऊठा पाने के कारण उसे कांजी हाउस में भिजवा दिया । ऐसे में कौन मुझे अमीर मानेगा । कुछ दिनों बाद बनवारीलाल के दिमाग में यह बात आई कि पार्वती को ज़हर देकर उसे इस दुनिया से बिदा कर दिया जाये। वैसे वे पार्वती का इलाज तो बंद करवा दिए थे पर दाना पानी का खर्च तो करना ही पड़ रहा था । ऐसा सोचते सोचते कुछ दिन गुज़र गए। इस बीच बनवारीलाल को 15 दिनों के लिए राजस्थान जाना पड़ा । तब उन्होंने मन बना लिया कि पार्वती का काम तमाम राजस्थान से आने के बाद करना ही होगा।
इधर जिस दिन बनवारीलाल राजस्थान को प्रस्थान किए उस दिन से पार्वती की तबीयत में सुधार परिलक्षित होने लगा । वह दाना भी ज्यादा खाने लगी और दूध भी ज्यादा देने लगी । उसकी रंभाने की आवाज़ भी बेहतर होने लगी । वह इधर उधर अच्छे से विचरण करने लगी । अब वह रोज़ लगभग 10 किलो दूध देने लगी । जिसका उपयोग बनवारीलाल के बेटे बहू और नाती करने लगे । उन्हें यह जान कर अच्छा भी लगा कि चलो पार्वति बीमारी से तो उबर गई व अकाल मृत्यु से बच गई ।
( क्रमश; ]