--- प्रायश्चित--- [ कहानी __ प्रथम क़िश्त ]
सेठ बनवारी लाल दुर्ग शहर के जाने माने रईस थे । वैसे तो उनकी सोने चांदी की दुकान थी पर उनका मुख़्य काम ब्याज पर पैसा देना था। वे अधिकतर गरीब और अनपढ लोगों को 5 से 10 प्रतिशत मासिक ब्याज की दर पर पैसे उधार देते थे । साथ ही वे गहने भी बतौर ज़मानत रख लेते थे । उनका 2 से 4 करोड़ रुपिए सदा ही बाज़ार में फ़ैले रहता था । जिससे उन्हें हर महीने 2 से 4 लाख रुपिए ब्याज के रुप में हासिल होता था । साथ ही उन्हें अपनी दुकान से भी अच्छी खासी कमाई होती थी । इस तरह से 20 वर्षों में उन्होंने अथाह संपत्ति अर्जित कर ली थी । बनवारी लाल की पत्नी का निधन हुए 5 बरस हो गए थे और उनकी दुकान को उनका पुत्र सुशील संभालता था । जो एक मेहनती इंसान था । सुशील ब्याज के काम को ठीक नहीं मानता था । वह कई बार अपने पिता को समझा चुका था कि अब ब्याज का त्याग दीजिए। हमें पैसों की कमी तो है नहीं । आप क्यूं दो दुनी चार के चक्कर में आज भी पड़े हैं ? अब तो आपको धर्म और समाज के काम में मन लगाना चाहिए लेकिन उनके पिता का मन तो ब्याज से पैसा कमाने में ज्यादा अच्छा खुशी करता था । ब्याज के पैसों को गिनने में उन्हें एक अजीब तरह का आनंद मिलता था । वे तो रिश्तेदारों से भी अच्छा खासा ब्याज ले लेते थे । उनका सिद्धान्त था कि रिश्तेदारी अपनी जगह और धंधा अपनी जगह ।
बनवारी लाल जी को सारा शहर जानता था । एक धनवान व्यक्ति की तरह उनकी भी समाज में प्रतिष्ठा थी लेकिन लोग कभी यह भी कह ही देते थे कि उनकी रईसी का राज़ तो ब्याज का ही धंधा है ।
एक बार एक किसान जिसका नाम गोपाल था , बनवारीलाल जी से गाय खरीदने के बाबत 20000)00 रुपिए उधार लिया । बनवारीलाल और गोपाल के बीच 5% मासिक ब्याज का करार हुआ । आपसी करार को बाकायदा स्टैंप पेपर में लिखा गया और दो गवाहों से दस्तखत भी कराए गए। इस करार में दो विशेष बातें थी । एक तो यह कि गोपाल हर महीने ब्याज का पैसा तो पटायेगा ही और अगर वह लगातार 3 महीने तक ब्वयाज नहीं पटाएगा तो बनवारीलाल खरीदी गई गाय को अपने घर ला सकते हैं और उस गाय को वह तब तक रख सकते हैं जब तक गोपाल पूरा पैसा मय ब्याज न लौटा दे । ऐसी स्थिती में गाय के गोबर और दूध का उपयोग करने का अधिकार भी बनवारीलाल जी को रहेगा। इसके साथ ऐसी स्थिति में उस गाय की यथोचित देखभाल की ज़िम्मेदारी भी बनवारीलाल जी की ही रहेगी । उपरोक्त तहरीर को गोपाल और बनवारीलाल जी ने रजिस्टर्ड करवा कर एक एक कापी अपने पास रख लिए थे । हालाकि गोपाल को उस कागज का न ही महत्व मालूम था न ही वह कागज को अपने पास रखना चाहता था ।
गोपाल ने उधार के उन पैसों से एक उन्नत नस्ल की गाय खरीद लाया । जिसका उसने नाम रखा पार्वती। पार्वती बड़ी ही तन्दरुस्त थी और उसकी उम्र उस समय 3 साल की रही होगी । पार्वती दोनों समय में 50 किलो दूध देती थी । दूध से हो रहे आय से गोपाल हर महीने किस्त की रकम के साथ कुछ मूलधन का पैसा बनवारीलाल जी को पटा आता था । यह सिलसिला 6 महीने तक तो ठीक ठाक चला । 6 महीने बाद पार्वती गर्भवति हुई और उसका दूध निकलना बंद हो गया । अत: गोपाल अब ब्याज का पैसा पटा नहीं पा रहा था । इस बीच पार्वती ने एक बड़े ही सुन्दर और स्वस्थ्य बछड़े को जन्म दिया। उस बछड़े का नाम रखा गया गणेश । अन्य घरेलू कारणों के रहते तीन महीनों तक जब गोपाल एक भी पैसा बनवारीलाल को नहीं पटा पाया तो एक दिन बनवारीला अपने 4 कर्मचारियों के साथ आकर पर्वती को अपने घर ले गया । शर्तों के अनुसार यह सही था । अब गोपाल पार्वती को तब ही अपने घर वापस ला सकता था जब वह ब्याज और मूलधन दोनों एक साथ पटाये। जब बनवारीलाल जी के गुर्गे पार्वती को ले जा रहे थे तब गोपाल ने बनवारीलाल से निवेदन किया था कि सेठ जी अभी इस गाय को मत ले जाए इसका एक छोटा बच्चा है । उसे अपनी मां का दूध नही मिलेगा तो वह भूखे मर जायेगा । आप चाहे तो इसे 2 महीने बाद ले जाएगा तब तक उसका बच्चा बड़ा हो जाएगा और वह चारा खाकर ज़िन्दा रह सकेगा । या फिर आप उसक बच्चे को भी ले जाइए लेकिन बनवारी लाल पार्वती को ले गया और गणेश को यह कहकर गोपाल के पास ही छोड़ दिया कि इसे शर्त के अनुसार मैं नहीं ले जा सकता। पार्वती के बच्चे को घर ले जाना हमारे एग्रीमेंट के अनुसार सही नहीं होगा ।
[ क्रमश; ]