और उस रात मैंने उसे एक कमरा किराये पर दिला दिया, आठ रूपये कमरे का किराया, दो रूपए बत्ती और आठ आने सन्डास की सफाई, कमरा थोड़ा गन्दा था लेकिन साफ होने के बाद ठीक लगने लगा उसे और मन्नू को छोड़कर मैं घर आ गया।।
लेकिन कुछ दिनों तक मैं वहाँ जा नहीं पाया, दिन के उजालें में बहुत मुश्किल था और रात को मेरे पड़ोसी भइया राम खिलावन की ड्यूटी मेरे साथ लगती थीं और मैं केशर से मिलने जाता तो वो हजारों तरह के सवाल पूछने लगते।।
घर पहुँचकर देखा तो माँ सुबह की पूजा करते हुए कह रही थी___
माता! तू जगमाता है, मेरे बच्चे की जल्दी शादी हो, तेरी दया से उसका संसार सुख का हो।।
जगमाता! मुझे अभी शादी नहीं करनी, मेरी माँ की मत सुन, मैं बोला।।
चुप रह, जगमाता इसकी मत सुन, माँ बोली।।
अब तुझे जल्द शादी कर लेनी चाहिए, मैंने एक लड़की देख रखीं है, बहुत अच्छी हैं, माँ बोली।।
तभी बोरिया बिस्तर उठाएं गांव के रामदीन काका आ पहुँचे और बोले, मैं अभी अपने खेत देखकर गाँव से लौटा हूँ तू भी देख आ अपने खेत और गाँव का घर नहीं तो मालगुजार कह रहा था कि कोई आता नहीं हैं, तो मैं कब्जा कर लूँगा, अब लापरवाही मत करना नहीं तो तेरा हिस्सा चला जाएगा और इतना कहकर काका अपने कमरे मे चले गए।।
जीवन! जा बेटा एक दिन के लिए, माँ बोली।।
अच्छा माँ, मैंने कहा।।।
उधर केशर के पास ना पैसे थे और ना खाने को , ऊपर से पड़ोसी भी उसे परेशान करने लगे थे, एक रात मैं केशर के कमरे तक पहुंचा ही था कि रामदीन काका मिल गए बोले, जीवन तू यहाँ क्या कर रहा हैं?
मैंने पूछा और काका! तुम यहाँ कैसे?
वो बोले, मैं तो यहीं रहता हूँ और रामखिलावन भइया मुझे ढूँढ़ते हुए आ पहुँचे , वो बोले जीवन! यहाँ क्या कर रहा हैं, मैंने कहा काका से पूछने आया था कि गाँव जाना जरूरी हैं, काका बोले हाँ, कल ही जाओ और मैंने काका से कहा ठीक हैं, यही पूछने आया था और मुझे केशर से मिले बिना ही राम खिलावन भइया के साथ लौटना पड़ा।।
और फिर रात के तीसरे पहर मुझे केशर के कमरे में जाने का मौका मिल गया और मैंने दरवाजा खटखटाया, मन्नू दरवाजा खोलकर बाहर चला गया, देखा तो वो सब सामान बाँधकर जाने को तैयार बैठी थी।।
अरे! किधर चलीं, मैंने पूछा।।
वापिस, जहाँ से आई थीं वहीं, वो बोली।।
क्यों, मैंने पूछा।।
विश्वास की हद हो गई, आपने नहीं मैंने गलती की, वो बोली।।
मतलब, मैना पूछा।।
क्यों बातें बनाते हो? मुझे यहाँ अकेली को छोड़े , तुम वहाँ मुंह छुपा कर बैठे हो, इसलिए कि कोई तुम्हारा रास्ता देख देखकर चला जाए, तुम जैसे आदमी भी लोगों को फंसाने के धंधे करते हैं, ये मुझे नहीं मालूम था, वो बोली।।
मैंने तुझे फँसाया, तेरी तो पूरी जिन्दगी दूसरों को फँसाने में गई है, इसलिए तुझे लगता हैं कि सारा जमाना ही लुटेरों और बदमाशों से भरा हैं, ये मत समझ, मुझे मालूम है कि तुम जैसी औरतें क्यों चिल्लातीं हैं, ये ले पैसे और इतना कहकर मैंने उसके मुंह पर पैसे फेंक दिए।।
तुम मुझे क्या समझते हो, पैसे ही कमाने थे तो मैं यहाँ नहीं आती, वहाँ मुझे बहुत पैसे मिलते थे, वो बोली।।
तो फिर यहाँ क्यों आई? मैंने पूछा।।
समझती थीं कि आप मुझे सीधी राह पर लगाएंगे, आपकी मदद से मेरी नई जिन्दगी शुरु होगी, इंसान बनूँगी, मगर आप मुंह छुपाते हैं वो रोते हुए बोली।।
मैं मुंह छुपाता हूँ... मैं.. यहाँ मैंने कितने दफा आने की कोशिश की लेकिन बाहर वो हमारे गाँव के काका पहरा लगाए बैठे हैं या मेरे पड़ोसी भइया, कोई ना कोई रूकावट आ ही जाती हैं और अगर काका को कुछ पता चल गया तो पूरे शहर में बात फैल जाएगी और भइया को कुछ पता चला तो सब माँ को बता देगें, आखिर मैं आदमी हूँ, मुझे दुनिया की परवाह करनी चाहिए, मैंने तुझे फँसाया है ये कहते हुए कुछ सोचना था, मैंने कहा।।
और मैं यहाँ पैसे के लिए आईं हूँ, आपने भी तो ये कहते हुए सोचना था, वो बोली।।
मैंने कहा ठीक हैं! मैं ये बताने आया हूँ कि कल सुबह मुझे गाँव जाना हैं, अगर ना आ पाऊँ तो मुंह मत फुलाना, दो दिन के बाद आऊँगा, मैने उससे कहा।।
जी, सुना ।।अभी इतने दिन आए नहीं और फिर दो दिन के लिए जाना है फिर आना, फिर जाना, यही कहने के लिए आए थे, ये सारा मुहल्ला मुझे तंग करता है, जो आता हैं वो आंखें फाड़ फाड़कर देखता हैं जैसे कि मैं सरकस का कोई जानवर हूँ, मुझे नहीं रहना यहाँ, मैं भी चलूँगी तुम्हारे साथ, वो बोली।।
मेरे साथ और उस गाँव में, लोगों ने तुझे मेरे साथ वहाँ देख लिया तो तरह तरह की बातें बनाएंगे, मैंने कहा।।
पर कुछ भी हो मैं तुम्हारे साथ चलूँगी, वो बोली।।
मैं तुझे नहीं ले चलूँगा, वापिस आने पर मिलूँगा और इतना कहकर मैं चला आया।।
दूसरे दिन सुबह सुबह मैं गाँव के लिए निकला, क्योंकि पन्द्रह किलोमीटर का रास्ता था गाँव तक का और पैदल ही जाना पड़ता था, उस समय आज की तरह सुविधाएं नहीं हुआ करतीं थीं, माँ ने साथ में कुछ खाना बाँध दिया था, ढेर सारी बाजरे की रोटी, लहसुन की चटनी, हरी मिर्च और प्याज की कुछ गाँठें भी रख दीं थीं साथ में।।
एक-आध किलोमीटर जाने पर मुझे किसी की आहट सुनाई दी, मैंने पीछे मुड़कर देखा तो कोई नहीं था, मैं अपनी धुन में गुनगुनाते हुए फिर चलने लगा लेकिन मुझे लगा कि फिर से कोई आहट सुनाई दे रहीं हैं और मैंने पीछे मुड़कर देखा तो एक पेड़ की ओट में केशर छुपी थी।।
मैंने उसके पास जाकर कहा___
तू! मेरे पीछे आत्माओं की तरह क्यों भटक रही हैं।।
तुम्हें क्या? मैं कहीं भी जाऊँ, तुम अपने रास्ते जाओ और मैं अपने रास्ते, वो बोली।।
और हम दूर दूर चलने लगे, रास्ता इतना सुन्दर था, हरा-भरा जंगल, ऊँचे ऊँचे पहाड़ और पंक्षियों का चहचहाना बहुत अच्छा लग रहा था, लेकिन हम लोगों ने रास्ते भर बातें नहीं की।।
चलते-चलते दोपहर हो गई, हम आधा रास्ता पार कर चुके थे, मुझे रास्ते में एक झरना दिखा, मैंने बहते हुए पानी में हाथ मुंह धोए तो उसने भी वही किया और मैंने एक पेड़ के नीचे चादर बिछाई और खाना खोलकर खाने लगा, वो भी मेरे बगल में आकर बैठ गई लेकिन मैंने उसे खाने को नहीं पूछा।।
कोई खाने को भी नहीं पूछता, कितने जालिम लोग हैं, वो बोली।।
उसकी बात सुनकर मुझे हँसी आ गई और मैंने पूछा__
तू! भी खाना खाएगी।।
हाँ क्यों नहीं खाऊँगी? मुझे क्या भूख नहीं लगती? देख रहीं हूँ तुम कबसे ठूँसे जा रहे हो, पूछते ही नहीं, केशर गुस्से से बोली।।
फिर मैंने उसे भी एक पत्तल में खाना दिया और वो खुश होकर खाने लगी फिर एक पल में उदास होकर बोली___
कितने नसीब वाले हो तुम! जो रोज तुम्हें माँ के हाथ का खाना मिलता है।।
ये तो है, मैंने कहा।।
और ऐसे ही बातें करते करते हमने खाना खाया और फिर से झरने से पानी पीकर, हम गाँव की ओर निकल पड़े, जैसे गाँव नजदीक आ पहुँचा, मैने उससे कहा कि तू मेरे साथ गाँव के भीतर मत आ, लोग देखेगे तो क्या कहेंगे, ये ले कुछ खाना और दियासलाई, आग जलाकर किसी पेड़ के नीचे सो जाना।।
रात हुई तो मुझे उसकी चिंता होने लगी कि कहीं कोई जंगली जानवर ना आ जाए, मेरा जी ना माना और मैं उसे देखने गाँव के बाहर चला आया, देखा तो वो आग जलाकर बैठी थी और सुबक रही थी।।
मैंने उसे डरा दिया, वो पहले से ही इतना डरी हुई थीं कि और भी ज्यादा डर गई।।
मैंने कहा कि चल उठ झोंपड़ी में चल।।
वो बोली, मैं नहीं आती।।
फिर मैंने कहा कि गाँव के लोग कहते हैं कि इस पेड़ से लटक कर एक औरत ने आत्महत्या कर ली थीं और वो चुडै़ल बनकर लोगों को डराती हैं।।
और वो डर के मारे मेरे साथ आ गई, मैंने उससें कहा कि उजाला होने से पहले उठ जाना, गाँव के लोग मुझे लेने आएंगे, वो बोली, ठीक है और वो कोठरी के भीतर सो गई और मैं बाहर बरामदे(चबूतरें) में।।
सुबह सुबह मुझे लोग अपने साथ खेंतों में लिवाने आ पहुंचे उन्होंने पूछा भी कि बाहर क्यों सोए,
मैंने कहा अन्दर गर्मी लग रही थी और मैं उनके साथ चला गया,
जागने के बाद केशर नहर किनारे दातून तोड़ने गई होगी तो किसी ने उसे देख लिया और मुझे जैसे ही इस बात का पता चला मैं फौरन ही वापिस आकर उससें बोला चलो यहाँ से, मैंने कहा था ना कि कोई देख लेगा तो तमाशा खड़ा हो जाएगा और शायद अब यही होने वाला है और हम दोनों गाँव से वापस आने लगे।।
मैंने कहा, सबको पता चल गया है, अब माँ को भी सब पता चल जाएगा।।
चिन्ता ना करो, घर पहुँचकर मैं अपनी पुरानी वाली जगह चली जाऊँगी, वो बोली।।
क्यों, मैंने पूछा।।
किसलिए ? तुम्हें तकलीफ़ दूँ, तुम्हारी माँ को अच्छा नहीं लगेगा और तुम हमेशा मुझे खुद से दूर रखने की कोशिश करोगे, चोरी छुपे का नाता कब तक निभेगा, तुम्हें तकलीफ़ रहेगी और मुझे चिन्ता, वो बोली।।
तेरा कहना एकदम सच हैं, मगर क्या करूँ? कुछ समझ में नहीं आता, मैंने कहा।।
तो फिर जो सच्ची बात हैं वो माँ से कह दो, वो बोली।।
कह दूँ, मैंने पूछा।।
हाँ, कह दो, जो होना है, वो होगा, तुम्हारी माँ को ये बात पसन्द नहीं आएगी, कोई मुझे पास नहीं बिठाएगा और सही भी हैं भला क्यों बिठाए, वो बोली।।
नहीं, मेरी माँ, ऐसी नहीं हैं, उसके दिल में दो ही वस्तुएं हैं एक देव और दूसरी दया, मैंने कहा।।
अच्छा, ठीक है तो फिर माँ से कहो, वो बोली।।
फिर मैंने सोचा, रामखिलावन भइया से सलाह लेता हूँ तो मैंने उनसे पूछा__
भइया! तुम्हारी माँ थी।।
तू पागल हैं क्या, तेरा दिमाग फिर गया है क्या? मेरी माँ नहीं थी तो क्या मैं आसमान से गिरा, रामखिलावन भइया बोले।।
तुम अपने दिल की छुपी हुई बात माँ से कैसे पूछते थे, मैंने उनसे पूछा।।
वो बोले, मिली क्या कोई खेत पर।।
तभी देखा तो भाभी रामखिलावन भइया कि चप्पल लेकर आ रही थी, इतने सारे लोगों के बीच वो घूँघट में आईं और उन्होंने भइया के पैर में चप्पल डाली और चली गई, सब हँसने लगे तभी उनमें से एक बोला___
नसीब वाला हैं रामखिलावन जो ऐसा प्रेम करने वाली बीवी मिली हैं।।
भइया बोले, सुबह चप्पल टूट गई थी ये बोली तुम्हें देर हो रही हैं तुम जाओ मै बाद में सिला कर दे जाऊँगीं और इसे बुखार भी हैं।।
तब मुझे लगा कि कितना गहरा प्रेम है दोनों में, एक दूसरे का कितना ख्याल रखते हैं घर पहुंचा और माँ से बताया तो वो बोली, तीस बरस साथ रहकर एक जान हो गए हैं, एक फूल और एक खुशबू।।
मैं नहाने गया तब तक गाँव से काका आ पहुँचे और उन्होंने माँ से सब कह दिया, मै नहाकर आया तो माँ बोली।।
तभी काका माँ से खुसर खुसर करके कह रहे थे आया पूछो, वो कौन थी।।
तभी माँ बोली__
ऐसी बात है, जीवन! मुझसे नहीं बताया ना! मुझसे कहता था कि शादी नहीं करूँगा।।
शादी...शादी... माँ वो, मैंने कहा।।
किसकी लड़की हैं रे? माँ ने पूछा।।
एक गरीब है बेचारी, मैंने कहा ।।
हम भी कहाँ अमीर हैं रे, माँ बोली।।
वो गुणों की तो अच्छी हैं ना, उसे यहाँ बुला, आज ही बुला लें, माँ बोली।।
मैंने कहा, ठीक है।।
और शाम को खुशखबरी सुनाने मैं उसके घर पहुंचा।।
मैं उस दिन केशर के कमरे खुशखबरी सुनाने पहुँचा और मैंने केशर से कहा___
पता है मुझे, तू जरूर पूछेगी कि मैं दोपहर के समय तेरे यहाँ क्यों आया।
हाँ, पूछना तो चाहती हूँ, वो बोली।।
पता हैं, आज एक मजेदार बात हुई, माँ को हमारे बारे में सब पता चल गया, गाँव के काका ने आकर माँ को सब बता दिया, मैंने कहा।।
फिर माँ क्या बोली, उसने पूछा।।
माँ ने मुझसे पूछा कि तू उससे शादी करेगा क्या? मैंने उससे कहा।।
फिर तुमने क्या कहा, वो बोली।।
मैंने कहा, अच्छा तुम ही बताओ, मैंने माँ से क्या कहा होगा, मै बोला।।
मैं कैसे बता सकती हूँ, कहो ना क्या कहा, उसने फिर पूछा।।
केशर तू मुझे पसंद हैं, मैंने कहा।।
सच! वो बोली।।
लेकिन ऐसी बातें मुंह से नहीं कही जातीं, मेरे भइया रामखिलावन भाभी से कितना प्रेम करते हैं, मगर कभी कहते नहीं, केशर! मैं तुझसे शादी करूँगा, मैंने उससे कहा।।
और इतना सुनकर उसकी उसकी आंखें भर आई।।
ये क्या? तू रो रही हैं, मैंने पूछा।।
नहीं, ये तो खुशी के आँसू हैं, आज तक दुनिया मुझे गंदा समझती थी, तुमने इंसान बनाया, सहारा दिया, इसलिए आँसू छलक पड़े, वो बोली।।
फिर फालतू की बातें शुरु कर दीं, मैंने कहा।।
तभी मन्नू भी आ पहुँचा और मैंने उससे कहा, क्यों रे? पति पत्नी की बात चोरी से सुनता है।।
और मैं घर चला आया, तभी मुझे याद आया, मैं फिर से उसके पास जाकर बोला__
आज शाम तुझे मेरे घर चलना है, माँ ने बुलाया है और हाँ जरा बनठन के।।
वो बोली, बनठन के मतलब।।
मतलब ये कि माँ तुझे देखते ही पसंद कर ले, मैंने कहा ।।
और मैं वहाँ से चला आया, शाम को पहुंचा तो वो तैयार होकर मेरा इंतजार कर रही थीं, मैंने उसे देखा तो देखता ही रह गया।।
सलीके से पहनी साड़ी और सिर पर पल्लू, लक्ष्मी सी लग रही थी वो.....
वो बोली, मैं तुम्हारी माँ को पसंद आऊँगी ना।।
मैंने कहा, हाँ..हाँ..जरूर ।।
और हम घर पहुंचे, देखा तो माँ पूजा करके कह रही थी__
जगमाता! मेरे बच्चे ने अपने लिए पत्नी देखी है, मेरे बच्चे की नइया पार करो, मुझे तेरा ही सहारा हैं और जैसे ही हमें देखा तो वो बोली___
आ गए तुम दोनों, आओ बैठो फिर देवी की मूर्ति को देखकर बोली__
माता! बहु पसंद आई मुझे, अच्छी है।।
फिर माँ ने पूछा__
बेटी! तेरा नाम क्या हैं?
केशर, केशर बोली।।
केशर! इधर आ, पीछे क्यों खड़ी हैं , माँ बोली।।
और केशर पीछे हटते हुए बोली__मेरे जैसी को,
माँ बोली, तेरी जैसी को क्या मतलब? तेरे जैसी, कोमल, निर्मल, दिलवाली को माता कुछ नहीं कहेंगी, आज मेरे मन की चिंता दूर हुई, मैं सोचती थी कि पता नहीं कैसी बहु मिलेगी लेकिन तुझे देखकर मेरी सारी चिंता दूर हो गई, अच्छी पत्नी से घर स्वर्ग बनता है, पति के नसीब खुलते हैं, तेरे जैसी शीलवन्ती, सतवन्ती, बहु पाकर मैं तो धन्य हो गई और मेरे बेटे के तो जैसे भाग्य ही खुल गए हैं, ये हमारे कुल का नाम रौशन करेगी।।
माँ की बातें सुनकर केशर की दशा खराब होती जा रही थी ।।
मैंने कहा, रहने दो ना माँ।।
माँ बोली, क्यों बेटी तुझे भजन आता है तो सुना दे, केशर ने भजन सुनाया और हम दोनों ने जगमाता के सामने माथा टेका, माँ ने मंदिर का दीप भी केशर से जलवाया और बोली___
अब तुझे ही सब करना है, सब देख ले बेटी, डर मत, आज से मैं तेरी भी माँ हूँ और माँ केशर को साड़ी देकर बोली, जरा पहनकर दिखा, भला कैसी लगती हैं और केशर है कि इतनी इज्जत पाकर उसका तो जैसे दम घुट रहा था और वो पसीने पसीने हुई जा रही थी।।
केशर साड़ी पहनकर माँ के सामने आई तो माँ बोली__
अच्छी स्त्री से घर चलता है, घर में लक्ष्मी का वास होता हैंll
केशर बोली, मैं और अच्छी।।
माँ बोली, हाँ बेटी।।
माँ रसोई में कुछ करने लगी तो केशर बाहर आँगन में चली गईं, शायद उसका दम घुट रहा था, मैं भी उसके पीछे भागकर आँगन में आ गया।।
वो बोली, मैं चली जाऊँगी।।
क्यों? मैंने पूछा।।
मुझ जैसी पापिन को इस देवघर में नहीं रहना चाहिए, तुम्हारी माँ की जूती के पास भी बैठने की मेरी योग्यता नहीं, वो बोली।।
ये क्या कह रही हो, मैंने पूछा।।
मैं भलों के साथ भली बन जाऊँगी, मगर भले मेरे साथ बुरे बन जाएंगे, वो बोली।।
मतलब क्या है तुम्हारा, मैंने पूछा।।
सही तो कह रही हूँ, वो बोली।।
नहीं, तुम ऐसा कुछ नहीं करोगी, मैंने कहा।।
दूध के प्याले में एक बूँद जहर हो तो कौन मुंह लगाएगा, सच में कितनी भोली और भली है तुम्हारी माँ और ऐसी भोली और पवित्र दिल की देवी को फसाना, ये मैं नहीं कर पाऊँगी, इतना बड़ा झूठ मैं नहीं बोल पाऊँगी, वो बोली।।
अच्छा, चलो, मैं माँ से सब कुछ सच सच कह देता हूँ, मैंने उससे कहा।।
आप क्यों नहीं समझते कि जूती सोने की क्यों ना बनी हो, कोई अपने सिर पर कभी नहीं रखता, मैं कैसी औरत हूँ, जब तुम्हारी माँ को पता चलेगा, तो वो क्या सोचेगी तुम्हारे बारे में, उनका मानना है कि मेरा बेटा कितना भोला और शरीफ है, वो चाहती है कि तुम किसी शीलवन्ती से शादी करो, दोनों सुख से रहो, कुल का नाम रौशन करें, इसी आशा में तुम्हें कलेजे से लगाकर बड़ा किया हैं और तुमने जो पसंद की है वो कैसी औरत है अगर उसे मालूम हुआ तो क्या होगा उस देवी का, वो बहुत भोली है और ये पता चलते ही अपनी जान दे देगी, वो बोली।।
तो फिर तुम क्या चाहती हो, मैंने उससें पूछा।।
मुझे जाने दो, वो बोली।।
नहीं, तू नहीं जाएगी, मेरी माँ बहुत भली है, वो तेरी सारी बातों को पेट में छुपाकर रखेगी, कभी बुरा नहीं मानेगी, मैं जानता हूँ ना कि मेरी माँ कैसी है, मैंने उससे कहा।।
कितना बड़ा दिल है तुम्हारा, मैं तुम्हारे घर की दासी भी बनने लायक नहीं, तुम किसी शीलवन्ती से शादी करके सुख से रहो और माँ को भी सुख से रखो, वो बोली।।
हाँ, जरूर उसे सुख से रखूँगा, क्यों तुम मुझे मिली, क्यों आई मेरी जिन्दगी में, तू ही है ना जो मेरी राह देखा करती थी, तू ही है ना तो मेरे लिए तरसा करती थी, किसने कहा था मुझे आशा लगाने को, तूने ही ना, उस समय तुझे धरम की बात क्यों नहीं सूझी, तू ने ही तो कहा था कि माँ से कहो और अब तू पीछे हट रही है।।
उस समय मैं केवल अपने बारे में सोच रही थी, अपने ही सुख का ध्यान था मुझे, अपनी ही चिंता थी मुझे, बहुत बड़ी गलती हुई मुझसे क्षमा करो लेकिन अब समझ चुकी हूँ, वो बोली।।
तभी माँ ने हमें खाने के लिए आवाज दी, हम सबने खाना खाया और मैं राय को ड्यूटी पर चला गया और वो रात को माँ के साथ घर पर ही थी।।
माँ ने उससे कहा कि मेरा बेटा बहुत सीधा सादा है, उसे बाजरे की रोटी और बैंगन का भरता बहुत पसंद हैं, तू इतना भी खिला देगी तो उसके लिए पकवान के बराबर होगा, मैं खाना कैसे पकाती हूँ, तुझे सिखाऊँगी, बहुत सी औरतों को तो ये पता ही नहीं होता कि पति को कैसे खुश रखते हैं, पति क्या चाहता है, पति के पसंद की चीज क्या है?
केशर को माँ की बातें सुनकर बहुत उलझन हो रही थीं, वो बरदाश्त ना कर पाई और माँ के सो जाने के बाद घर से चली गई और अपने उस कमरे को भी छोड़कर चली गई साथ में मन्नू भी चला गया।।
मन्नू को लगा कि माँ ने मना कर दिया है लेकिन वो बोली__
नहीं रे, वो तो मुझ पर जान देते हैं ऐसा ना हो कि मेरे जाने के बाद वो कुछ उलटा सीधा कर बैठे।।
और वो उस शहर से दूर रहने लगी छुपकर और मन्नू से मुझ पर नजर रखने को कहा।
मैं सुबह लौटा तो माँ ने बताया कि केशर रात को ही कहीं चली गई, मैंने माँ से कहा कि तुमने उसे रोका क्यों नहीं।।
मुझे मालूम ही नहीं चला कि वो कब गई, वो आ जाएंगी, माँ मुझे दिलासा देते हुए बोली।।
अब वो नहीं आएगी, मैंने माँ से कहा।।
मैं उसी वक्त उसे ढूँढने के लिए बाहर निकल पड़ा, मैं उसके कमरें में पहुँचा लेकिन वो वहाँ से जा चुकी थी फिर मैं उसके पुराने घर भी गया लेकिन वो वहाँ भी नहीं मिली, मैंने पागलों की तरह उसे सारे शहर में ढूँढ़ डाला लेकिन वो मुझे कहीं ना मिली।।
मैं थक हार कर घर लौट आया, देखा तो माँ जगमाता के सामने बैठकर मेरे लिए विनती कर रही थी, मुझे अकेला देखकर रो पड़ी, अब तो मेरी हालत पागलों जैसी हो गई, मेरा किसी भी चीज में मन ना लगता, माँ ने सारी बात रामखिलावन भइया को भी बता दी।।
भइया माँ से बोले कि अभी नया नया खून है, जवानी का नया नया जोश है, जो लड़की आपने इसके लिए पसंद की है उस से इसकी शादी करवा दो, सब ठीक हो जाएगा।।
फिर एक रात मुझे मन्नू दिखा , मैंने उससे पूछा कि केशर कहाँ हैं लेकिन वो बोला उसे नहीं मालूम मैंने उसे मारा भी, पैसे भी देने की कोशिश की लेकिन उसने मुंह नहीं खोला और हाथ छुड़ाकर रात के अंधेरे में ना जाने कहाँ भाग गया।।
दिनबदिन मेरी हालत बद्तर होती जा रही थीं, अब मुझे होश ना रहता हमेशा खोया खोया सा रहता और एक दिन मैं नदी की ओर आत्महत्या करने चल पड़ा, माँ ने देखा तो फौरन रामखिलावन भइया को मेरे पीछे भेजा और उधर मन्नू भी मुझ पर नजर रख रहा था, उसने भी केशर को बता दिया कि मैं नदी ओर जा रहा हूँ और वो भी नदी की ओर मन्नू के साथ भागी।।
मैं बदहवास सा बस चलता चला जा रहा था.... बस चलता चला जा रहा था, नदी के किनारे ऊँचे पहाड़ से जैसे ही नीचे कूदने वाला था, तभी रामखिलावन भइया ने मुझे रोक लिया।।
मैंने उनसे कहा कि लोग ग़म मिटाने के लिए शराब का सहारा लेते हैं तो क्या मैं भी पी लूँ।।
वो बोले ठहर! और मेरे लिए शराब की बोतल लाकर बोले__
ले पी, मिटा अपने ग़म, कुछ देर के बाद नशा उतरेगा तो फिर चिंता परेशानी और उसके बाद फिर पीना और पी पीकर खतम कर ले जिन्दगी, पागल! लाज नहीं आती, एक लड़की के लिए लड़कियों की तरह रोता हैं।।
मैं रोता नहीं हूँ लेकिन दिल की बेचैनी सहन नहीं हो रही हैं, मैंने उनसे कहा।।
अरे पागल, इससे भी बुरा वक्त आता है इंसान पर लेकिन कोई ऐसे हिम्मत नहीं हारता और नई दुनिया बनाता हैं, उन्होंने कहा।।
तेरा बाप भी तो मरा था फिर उसके पीछे तू क्यों नहीं मर गया, बाप से भी तो तेरा प्रेम था, बाप की चिंता नहीं और आज की आई लड़की से इतना प्रेम, भइया बोले।।
तो मैं क्या करूँ, मैंने कहा।।
क्या करूँ? जा चूड़ियाँ पहन ले, एक औरत भी दुखों से नहीं डरती, तेरी माँ को देख, जवानी में बेचारी का पति मर गया, मगर उसने हिम्मत नहीं हारी, रोकर नहीं बैठी, पन्द्रह बरस लोगों के जूठे बरतन माँजती रही, तुझे पढ़ाने के लिए और तू उसे ये दिन दिखा रहा है, कुछ उसका भी ख्याल कर, वो बुढ़िया तुझे कुछ हो जाने पर जान दे देंगी, जा उस से पूछ कि उसका क्या हाल है, भइया बोले।।
और मैं माँ की चिंता करके घर आ गया, कुछ दिनों बाद माँ ने मेरी सगाई कर दी अपनी पसंद की लड़की के साथ, माँ मुझ में बदलाव देखकर खुश थी।।
कुछ दिनों बाद पता चला कि केशर ने अपने किसी ग्राहक का खून कर दिया है और उसे पुलिस ने पकड़ लिया हैं, वो उसे जबरदस्ती अपने साथ ले जाना चाहता था, मुझे ये सब मन्नू ने आकर बताया, मैं केशर से मिलने आधी रात के वक्त जेल पहुँचा__
और जेल का दरवाजा खोलते हुए कहा कि भाग जा, उजाला होने वाला है।।
वो बोली, क्या तुम्हारे जिस्म के अंदर ही खून बहता है और मेरे जिस्म में पानी, मैं तुम पर खुद को जेल से भगाने का इल्जाम लगाकर भाग जाऊँ, अब मेरी किस्मत में सिर्फ अँधेरा है तुम कहाँ तक मुझे रोशनी दिखाओ, मेरी जिन्दगी तो कालिख हैं और तुम उसे साफ साफ करते करते काले हो जाओगे, जाओ अपनी नई जिन्दगी शुरू करो, घर बसाओ, माँ का ध्यान रखो।।
उस रात में लौट आया, उस पर मुकदमा चला और उसे उम्र कैद हो गई, उस दिन जेल जाते समय उसने मुझसे वादा लिया कि तुम कभी भी मुझसे मिलने नहीं आओगे, मैं जब संदेशा भेजूँ तभी आना और मैं फिर उससे कभी नहीं मिला, और आज उसने संदेशा भेजा है,
जीवन लाल जी की कहानी सुनकर बंसी की आँखें भर आईं।।
जीवन लाल जी दूसरे दिन ही केशर से मिलने चल पड़े, वहाँ पहुँचे तो केशर बिस्तर पर लेटे लेटे उनकी बाट जोह रही थी और उनके पहुँचते ही उसने आँखें मूँद ली।।
केशर ने जीवन भर अपने प्रेम के लिए कड़ी तपस्या की शायद इसे ही प्रेम-तपस्या कहते हैं।।
समाप्त....
सरोज वर्मा....