
दिसंबर 2012 गैंगरेप के बाद प्रोटेस्ट करते युवा. (फोटोःReuters)
हम लगातार कहते-सुनते रहते हैं कि दिल्ली औरतों के लिए सुरक्षित नहीं है. कई बार ये महज़ एक सरलीकरण लगता है. लेकिन रेप और सेक्शुअल असॉल्ट की दूसरी घटनाओं से जुड़े आंकड़े इसी सरलीकरण को सही ठहराते लगते हैं. हिंदुस्तान टाइम्स ने आज एक रिपोर्ट छापी है. इसमें नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो और दिल्ली पुलिस से जुटाई जानकारी है. रिपोर्ट में सिलसिलेवार ढंग से ये बताया गया है कि रेप करने वाले लोग कौन होते हैं और उनका बैकग्राउंड क्या होता है. इसके अलावा रिपोर्ट में रेप की विक्टिम्स को लेकर भी जानकारी है. इससे दिल्ली में रेप की समस्या की एक तस्वीर तैयार होती है.
दिल्ली में 2015 और 2016 में हुए रेप के मामलों से जुड़ी मोटा-माटी बातें ये रहींः
# दिल्ली रेप कैपिटल है
दिल्ली में मुंबई से तीन गुना ज़्यादा रेप होते हैं. 2015 से 2016 के अक्टूबर तक दिल्ली में 3973 लड़कियों का रेप हुआ. मतलब हर चार घंटे में एक. मॉलेस्टेशन के मामले और ज़्यादा हैं. हर दो घंटे में दिल्ली में कहीं न कहीं किसी लड़की को मॉलेस्ट किया जाता है.
# रेप के आरोपियों की उम्र
दिसंबर 2012 गैंग रेप केस के बाद से नाबालिगों के किए रेप ज़बरदस्त बहस का मुद्दा बने हैं. रेप के आरोपी नाबालिगों को सख्त सज़ा देने के लिए देश का कानून भी बदला गया. पूरी रिपोर्ट में सबसे परेशान करने वाली बात यही है कि बड़ी तादाद में ऐसे केस सामने आ रहे हैं जिनमें आरोपी नाबालिग हैं. हर हफ्ते दो से तीन मामलों में रेपिस्ट नाबालिग होते हैं. लेकिन इनकी तादाद फिर भी कम ही है, 6 फीसदी के आस-पास. सबसे ज़्यादा रेप के आरोपी (लगभग 51 फीसदी) 18-25 की उम्र के थे.
# ‘बाहरी’ रेपिस्ट नहीं होते
ये एक धारणा है कि दिल्ली में ज़्यादातर रेप ‘बाहरी’ लोग करते हैं. ऐसे लोग जो किसी काम के सिलसिले में शहर आते हैं. लेकिन रिपोर्ट में सामने आया है कि 80 फीसदी से ज़्यादा रेपिस्ट दिल्ली शहर से ही होते हैं.
# पढ़ाई-लिखाई का क्या फर्क पड़ता है?
आमतौर पर माना जाता है कि कम पढ़े-लिखे लोग कानून ज़्यादा तोड़ते हैं. रेप के आरोपियों में से सिर्फ 2 फीसदी ने कॉलेज तक की पढ़ाई की थी. लेकिन ऐसा नहीं था कि सारे आरोपी अनपढ़ थे. 2015 में 70 रेप के आरोपी ही ऐसे थे, जो पूरी तरह अनपढ़ थे. बाकियों ने किसी न किसी स्तर तक पढ़ाई की थी.
# अपराधी किस क्लास के होते हैं?
दिसंबर 2012 के बाद से दिल्ली पुलिस रेप के आरोपी और रेप विक्टिम की सामाजिक प्रोफाइल की जानकारी भी दर्ज कर रही है. ‘लो’, ‘मिडिल’ और ‘हाई’ तीन क्लास बनाई गई हैं. 61.38 फीसदी रेप के आरोपी दिहाड़ी मज़दूर या कोई छोटा-मोटा काम करने वाले लोग थे. इन्हें ‘लो-क्लास’ में गिना गया. इनके बाद लगभग 800 रेप के आरोपी ‘मिडिल क्लास’ समझे गए. सिर्फ 5 आरोपी हाई क्लास (पॉश कॉलोनियों में घर वाले) थे. इस पर औरतों के खिलाफ हिंसा पर काम करने वाली समाजिक कार्यकर्ता कल्पना विश्वनाथन का कहना ये है कि इससे ये न समझा जाए कि ‘हाई क्लास’ लोग रेप नहीं करते. हो सकता है कि उनके खिलाफ लोग रेप के केस रिपोर्ट कम कराते हों.
# विक्टिम कौन हैं
रेप की सबसे ज़्यादातर विक्टिम्स 18 से 25 की उम्र की हैं. पुलिस का कहना है कि इनमें से कई मामलों में रेप उन लड़कियों के साथ हुए, जो शादी करने के लिए अपने साथी के साथ घर से भागती हैं. लगभग 75 फीसदी विक्टिम्स बैचलर होती हैं. इसके अलावा लगभग आधे मामलों में रेप की शिकार नाबालिग लड़कियां थीं. इनमें से 227 लड़कियों की उम्र 7 साल से कम थी. एक मामले में तो दो साल की बच्ची का रेप हुआ था. ऐसे मामलों को जानकार रेप की आम घटनाओं से अलग देखने की बात करते हैं. मनोवै ज्ञान िक इन्हें बिहेवियरल क्राइम कहते हैं क्योंकि उनका मानना है कि किसी दो साल की बच्ची का रेप करने वाला आदमी उसके शरीर की बनावट से आकर्षित नहीं होता. आधे से ज़्यादा विक्टिम गरीब परिवारों से आती हैं.
# रेप और सामाजिक संबंध
रिपोर्ट इस बात की ताकीद भी करती है कि रेप के ज़्यादातर आरोपी आस-पास के लोग ही होते हैं. कई बार बेहद करीब के रिश्तेदार. सिर्फ 3.17 फीसदी मामलों में रेप के आरोपी पूरी तरह अजनबी होते हैं. ज़्यादातर लोग लिव इन रिलेशन को ओछी नज़र से देखते हैं. कहते हैं कि ये सिर्फ बदन की ज़रूरत के लिए होता है. वो जान लें कि लिव इन रिलेशन में रेप के सामने आने वाले मामले सिर्फ 5.20 फीसदी होते हैं. जबकी 7.82 फीसदी मामलों में आरोपी भाई, पिता, चाचा, दादा या कोई और रिश्तेदार होते हैं.
साभार : The Lallantop