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रिबिका की पहली झलक

29 अगस्त 2024

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रिबिका, जो कि एक आम परिवार से हैं, जो कि अपनी फैमिली की शायद लाडली हैं। रिबिका और सुनेहा दोनों सिस्टर्स हैं और एक दूसरे की जान भी। दोनों बहनों में बहुत प्यार है और दोनों एक दूसरे के लिए लड़ती हैं, पर पता नहीं कब एक दूसरे के लिए लड़ते-लड़ते वे एक दूसरे के खिलाफ लड़ने लग गईं। जब से सुनेहा हॉस्टल से घर वापस आ गई थी, वह अपनी बहन को देखकर एकदम सोच में पड़ी रहती थी कि आखिर दीदी को हुआ क्या हैं? क्यों वह इतनी बदली-बदली नजर आ रही थी? जो बहन हमेशा छोटी-छोटी बातों पर लड़ती थी, जो इतनी हँसमुख थी, वह अब हिटलर कैसे बन गई? वह इतनी क्रूर कैसे हो गई? 5 साल तक सुनेहा हॉस्टल में रही थी, आखिर इन 5 सालों में ऐसा क्या हो गया कि वह इतनी बदल गई? सुनेहा को ये बातें रात-दिन तंग करती रहती थीं। इससे नहीं था कि सुनेहा ने किसी से पूछा नहीं, बल्कि उसने अपने मम्मी-पापा दोनों से ही पूछा पर अक्सर उस को यहीं जवाब मिला कि दादा-दादी के जाने के बाद रिबिका ऐसी बन गई। दादा-दादी तो एकदम ठीक थे, फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि उनकी मौत अचानक से हो गई? दादा-दादी की मौत होने पर भी मुझे नहीं बुलाया गया। सवाल बहुत ज्यादा थे पर जवाब या तो रिबिका दे सकती थी या परिवारवाले। पर दोनों ही जवाब देने को तैयार नहीं थे।

"क्यों?" सुनेहा ने अक्सर यही सुनकर चुप हो जाती, पर सोचती रहती कि आखिर इस उम्र में दुश्मन कैसे बन गए? क्या हुआ था, दीदी, इन 5 सालों में, जो मैं नहीं जानती? मैं जानकर जरूर रहूंगी, चाहे कुछ भी हो जाये। इतना सोचकर सुनेहा बेड से उठती हैं और नहा कर बाहर आ जाती हैं पानी रूम से किचन की ओर बढ़ती हैं।

"रिबिका, मेरा ब्लैक सूट कहां पर हैं? मुझे मिल नहीं रहा," रिबिका पानी रूम से आवाज लगाकर कहती हैं।

"कल धोने के लिए बाहर गया था, बाहर होगा। हाल में वहां से ले लो, मैं तुम्हारा नाश्ता बना रही हूँ," माँ भी किचन से आवाज लगाती हैं।

"ठीक है, मैं ले लेती हूँ," इतना कहते हुए रिबिका अपने सिर पर लपेटे हुए टॉवल को उतारती हैं और बालों को झाड़ती हुए रूम से बाहर बढ़ती हैं, तभी सुनेहा उसका हाथ पकड़ लेती हैं और कहती हैं,

"तुम यह सूट नहीं पहन सकती," सुनेहा पूरे गुस्से में कहती हैं।

"क्यों नहीं पहन सकती, भला मैं यह सूट?" रिबिका भी गुस्से से कहती हैं।

"क्योंकि आप यह सूट पहनेगीं, दीदी," सुनेहा पुरे गुस्से में कहती हैं।

"रिबिका, इससे नहीं," सुनेहा ने मुस्कुराते हुए कहा।

रिबिका बोली,"तुम जानती हो कि मैं ये कलर नहीं पहनती अब। मैं ब्लैक में ठीक हूँ, ये तुम पहन लो।" इतना कहकर रिबिका जाने लगती है कि तभी।

सुनेहा बोली, "दीदी, प्लीज। मेरे लिए पहन लो।" इतना सुनकर रिबिका रुक जाती है और मुड़ती है।

रिबिका बोली,"रिबिका, नेहा कि तरफ देख कर कहती है, 'नेहा, प्लीज मुझे फ़ॉर्स मत करो, व्हाइट पर बहुत दाग लगते हैं और मुझ पर तो पहले से ही बहुत हैं। जब वे सब दाग धुल नहीं जाते तब तक मैं व्हाइट क्या कोई भी कलर नहीं पहनूंगी।" इतना कहकर रिबिका रूम में चली जाती है। सुनेहा उसको बुला रही होती है, पर वह नहीं सुनती। सुनेहा की आवाज सुनकर उसकी माँ बाहर आ जाती है और वह सब कुछ सुन लेती है और कहती है,

माँ: "नेहा, बेटा, रहने दे। जब उसका मन होगा तब वह पहन लेगी, ये सूट अंदर रख दे। और आ जाओ, नाश्ता कर लो।" इतना कहकर माँ अंदर चली जाती है रसोई में। रिबिका भी अपने कमरे में चली जाती है और अंदर से कमरा बंद कर लेती है। नेहा अपने कमरे की तरफ जाने लगती है, फिर उसके दिमाग में अचानक आता है कि दीदी ने ऐसा क्यों कहा कि मुझ पर बहुत दाग हैं। पहले उन्हें साफ़ कर लूं।

इधर रिबिका अपने कमरे में दरवाजे के साथ लगी हुई है और रो रही है और बोल रही है, "क्यों किया तुम ने ऐसा, सिद्धार्थ? तुमने मेरा प्यार तो देखा, मेरा भरोसा देखा, मेरा सब कुछ देखा, पर अब तुम देखोगे मेरा धोखा, वो ही जैसा तुम ने मुझे दिया। अब देखोगे तुम मेरी नफ़रत।" इतना बोलती हुई रिबिका खड़ी हो जाती है और अपने आंसू साफ करती है गुस्से और घमंड से अपनी आँखों से आग निकालती है, कहती है, "तुम्हारा सारा एम्पायर गिरा दूंगी मैं। जिस एम्पायर के लिए तुमने मेरी जिंदगी बर्बाद कर इस बात को मैं तब तक नहीं भूलूंगी जब तक मैं तुम्हे और तुम्हारे बाप कब्र में न लिटा दूं। तब तक इस काले रंग के इलावा और कोई रंग नहीं पहनूंगी।"

आधे घंटे बाद नेहा और रिबिका दोनों ही बाहर आ जाती हैं रूम से। दोनों ही एक दूसरे से आँखें चुरा कर डाइनिंग टेबल पर बैठ जाती हैं।

नेहा बोली, "माँ, मेरा एग्जाम है आज। मैं खाना नहीं खाऊंगी, आप बीएस मुझे मिल्क दे दो। खाना, मैं कॉलेज की कैंटीन में ही खा लूंगी।"

रिबिका बोली,"खाना क्यों नहीं खाना, तुमने? कितनी बार कहा है कि खाना छोड़ने से पेपर नहीं आएगा, बल्कि खाना खाने से एनर्जी आएगी तुम्हें।"

नेहा बोली, "दीदी, तुम पिज्जा और श्रद्धा के बारे में कुछ नहीं जानती। तुम रहने ही दो।"

रिबिका बोली,"ये विश्वास नहीं, बल्कि अन्धविश्वास है। भगवान तो कण-कण में हैं, फिर तुम खाना छोड़कर क्या साबित करना चाहती हो? 20 दिन पेपर चलेंगे तो क्या उतने दिन तुम कुछ नहीं खाओगी क्या? देखो, अगर तुम कुछ नहीं खाओगी तो बीमार हो जाओगी और फिर पेपर भी नहीं दे पाओगी, और फिर तुम फेल हो जाओगी। फिर से वही क्लास, वही इन्सुल्ट, और वही पापा का खर्चा।"

नेहा बोली, "दीदी, कोई बात बीमार मैं होऊँगी, पेपर मैं नहीं दे पाऊँगी, फेल भी मैं ही होऊँगी और उसी क्लास में भी मैं ही रहूँगी। और बेजती भी मेरी ही होगी और खर्चा पापा करेंगे, आपको क्या? आपको इतनी फिकर क्यों, दीदी? अगर पापा कि आप जैसी नालायक औलाद हैं जो पिछले तीन सालो से सेम ही क्लास में हैं, तो अगर पापा उस पर खर्चा कर सकते हैं तो मुझ पर तो कर ही सकते हैं, पापा। है न पापा?" नेहा पापा की तरफ देख कर कहती है।

रिबिका बोली,"तुम मेरी बात कर रही हो, नेहा?" रिबिका गुस्से में कहती है।

नेहा बोली, "तुम से ज्यादा क्या कोई और है, इतना होनहार बताओ जरा? ये सुनकर पापा को बहुत गुस्सा आता है और वे कुछ बोलने ही लगते हैं, तभी रिबिका पपा के हाथ पर अपना हाथ रख देती है, जिस वजह से पापा आँखों से रिबिका को कुछ कहते हैं, और रिबिका भी अपनी आँखों के इशारे से ही पापा को शांत रहने को कहती हैं।

रिबिका बोली,"चलो जो भी है, हम लोगों की बहस होती रहेगी, अब हमें चलना चाहिए कॉलेज के लिए, लेट हो रहे हैं।" इतना कहकर रिबिका कड़ी होती है और अपना बैग लेकर बाहर सीडियो के पास जाकर सैंडल पहनकर घर के बाहर आती है और पीछे ही नेहा भी आ जाती है और लड्डू खाते हुए कहती है, "नेहा बोली, दीदी, रुको, मैं भी जाऊँगी साथ आपके।" तभी रिबिका पीछे मुड़कर बोली,

रिबिका बोली,"नेहा को ध्यान से देखने के बाद कहती है, 'अभी तो नादान बोल रही थी कि मेरा पेपर हैं, मैं कुछ नहीं खाऊँगी और अब तुम लड्डू ठूस रही हो। तुम्हारी कुछ समझ नहीं आती।'"

नेहा बोली, "आँखें चुराते हुए बोली, 'वह तो मैंने आपके कहने पर खाया है, ताकि आपको बुरा न लगे, इतना बोलते ही रिबिका हंसते लग जाती है और रिक्शा को रोक लेती है। इस बात पर नेहा हैरान हो जाती है कि रिबिका को देखकर ही रिक्शा रुक जाता है।

रिबिका बोली,"भाई, यूनिवर्सिटी तक चलोगे।"

रिक्शा वाला बोला,  "हाँ, दीदी, चलेंगे। आप बैठो, मैं उतर दूंगा वहां पर।"

रिबिका बोली,"भाई, हम दोनों हैं और मैं बस 30 ही रूपए दूंगी, चाहे आप मीटर चालू रखो या बंद रखो।"

रिक्शा वाला बोला, "दीदी, क्या बोलो आप? आप से भी क्या, मैं पैसे लूँगा? अरे, आप बैठिए, आप ने तो बिना पैसे के हम सब को एक दम सुरक्षित कर दिया है, कहीं भी आ आ जा सकते हैं सिर्फ आप की ही वजह से, और आप आप पैसों की बात करती हैं। सुबह-सुबह आप के दर्शन हो गए हमारे लिए, तो यहीं हमारी आज की कमाई है, दीदी।" दीदी और नेहा दोनों ही रिक्शा में बैठ जाती हैं, और नेहा बस चुपचाप रिबिका की तरफ देखती रहती है और रिक्शा वाले की बात सुनती रहती है। तभी कुछ दूरी पर मंदिर आ जाता है, और रिक्शा को कहती, "भाई, 2 मिनट रुको, हम माथा टेक लें, आज हमारा पेपर है।" आजा नेहा और रिक्शा वाला रिक्शा रोक लेता है।

नेहा बोली, "दीदी, आप भी हड़बड़ाती हो, वैसे तो कहती हो कि भगवान नहीं होता और अब मंदिर में माथा टेकने लग गई हो। तुम तो मेरी समझ के बाहर ही हो, दीदी।" रिबिका कुछ नहीं बोलती और माथा टेक कर रिक्शा में बैठने ही वाली हैं कि तभी बहुत ही तेज हवा चलने लग जाती है और नेहा का दुपट्टा उड़ जाता है।

रिबिका बोली,"रिक्शा में बैठते हुए बोली, 'बैठ न, सोच क्या रही हैं?'"

नेहा बोली, "दीदी, दुपट्टा उड़ गया है मेरा। मैं लेकर आती हूँ।" नेहा दुपट्टा लेने चली गई और रिबिका ऑटो से बाहर आ कर कहती है, "तो रिक्शा वाला, कि तरफ देखती हैं, और वह हाँ में सिर हिला देता है, तो रिबिका भी नेहा के पीछे चल पड़ती है और इससे पहले कि वह कुछ बोलती, वो लड़का दुपट्टा पकड़ लेता है और कहता है, 'लगता है, कॉलेज जा रही हो, क्या करोगी कॉलेज जाकर? चलो मूवी देखने चलते हैं, कार्नर सीट पर पूरी मस्ती करेंगे, ये सुन नेहा डर जाती है और आँखें झुका लेती हैं, तभी रिबिका आती है और नेहा के आगे आकर खड़ी हो जाती है और इससे पहले कि वह कुछ बोलती, वो लड़का डर के मारे कांपने लगता है और दुपट्टा छोड़ देता है।"

रिबिका बोली,"क्या हुआ, अब नहीं बोलोगे क्या? कुछ तो बोलो, नहीं नहीं, कुछ तो बोलो, अब इतनी बुरी शक्ल तो नहीं है मेरी जो तुम ऐसा कर रहे हो। बोलो न मुझे भी, कौन सी मूवी दिखाओगे मुझे और सी सीट पर बिठाओगे, प्लीज बोलो न।"

लड़के बोले, "सॉरी दीदी, हमें नहीं पता था कि आप के साथ हो, वो लोग हकलाते हुए बोल रहे थे, माफ कर दीजिए, आयंदा ऐसी गलती नहीं होगी।"

रिबिका बोली, "अच्छा, यानी जो मेरे साथ होगा, उसे तुम कुछ नहीं कहोगे और बाकी लोगों को आप लोग छोड़ेंगे, नहीं नहीं है ना? तो आज किस्सा ही ख़त्म करते हैं, तुम लोग मुझे मूवी दिखाओ और मैं तुम लोगों को दिखाऊंगी मूवी, यकीं मनो, बहुत मज़े दार होगी।" तभी उन दो लड़कों के पीछे बैठा एक लड़का बोलता है, बिना रिबिका को देखे।

लड़का बोला, "ओहो, बहुत आग लगी हुई है, शायद। क्या है न, जानेमन, आज नहीं आज तो वो दूसरी लड़की चाहिए हमें, तो तू चलती बन, इतना सुन रिबिका ने कुछ ऐसा किया कि अभी सभी डर जाते हैं और नेहा डर के मारे कांपती है और रिबिका को बार बोल रही थी, "दीदी, बच्चों, आप वो मार डालेगा आप को।" 

रैना की अन्य किताबें

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

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बहुत खूबसूरत लिखा है आपने पढ़ें होम पेज पर मेरी कहानी कचोटती तन्हाइयां और सभी भागों पर अपना लाइक देकर आभारी करें 😊🙏

31 अगस्त 2024

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दो दिल रहे तड़प
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ये कहानी हैं राघव और रिबिका की जो दोनों ही अपनी अलग अलग दुनिया से हैं | राघव जहाँ पर ढेर सारे दोस्त बनता हैं वही पर रिबिका को दोश्ती से दर लगता हैं | एक दूसरे से नफरत नफरत करते करते कब प्यार हो गया इस बारे में दोनों को पता ही नहीं लगा पर एहसास हो चूका था की दोनों ही अब एक दूसरे के बिना नहीं रह सकते | राघव अपनी फीलिंग्स को एक्सेप्ट कर चूका था पर रिबिका ये एक्सेप्ट नहीं करना चाहती थी वो समझती थी की जो उस के साथ पहले हुआ हैं मोहब्बत के नाम पर कहीं वो फिर से न हो जाये | एक दूसरे की मोहब्बत समझते हुए भी दोनों में दूरिया थी || जब तक रिबिका को इस बात का एहसास हुआ की राघव उससे सच्ची मोह्हबत करता हैं तभी किसी ने राघव की वो सच्चाई रिबिका को बताई जो राघव ने रिबिका से से छुपाई हुयी थी | सच्चाई सूनने के बाद रिबिका को ऐसा लगा की शयद वो फिर धोखा ही खायेगी और इसलिए वो शादी से मंडप से उठ कर भाग जाती हैं || आखिर राघव और रिबिका एक हो पाएंगे | जहाँ पर रिबिका अपने पहले से बदला ले रही हैं क्या वहीँ वो अपने दूसरे प्यार को एक और मौका देगी | रिबिका अंगारो भरी ज़िंदगी में राघव फूल बरसा पायेगा क्या ? जान ने के लिए प्लीज पड़े मेरी कहानी दो दिल रहे तड़प
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