कलम की धार को तलवार बनाते है।
हम्म सिर्फ लिखना ही नहीं जानते सुने मन में आश जगाते हैं।।
माटी की मूरत को आकार दिलाते हैं।
बुझे हुए चिराग को अपनी कलम से जलाते हैं।।
बिन तलवार के ही हम्म घाव सीने में कर जाते हैं।
जब जब चलती कलम हमारी पन्ने भी बोल जाते हैं।।
मुर्झाए चेहरे पर भी एक हँसी ले आते हैं।
हमारा चेहरा हमारी पहचान नहीं हम्म कलम से अपनी पहचान बनाते हैं।।
कि रूठ कर बैठे को प्यार के बोल से मनाते हैं।
और देशद्रोहियों को बिन तलवार के ही अपनी कलम से चोट पहुंचाते हैं।।
हम्म ज्यादा बड़े तो नहीं पर व्यवहार से जाने जाना पसंद कराते हैं।
जब चलती है सही के लिए कलम हमारी तो सबके जवाब बंद हो जाते हैं।।
सवाल बहुत है ज़माने से पर जवाब एक न मिल पाते हैं।
हम्म भी पक्के है वचन के जब तक सोचने पर मजबूर न कर दे कलम अपनी हौसलों से चलाते हैं।।
हाँ कहने से इतिहास नहीं रचता हम्म मेहनत दिल से करते जाते हैं।
और एक सच्ची मानवता को जीवित रखने के लिए हर दम प्रयास करते जाते हैं।।
धन्यवाद.......✍️✍️👑
❤️ Written by Madhuri Raghuwanshi❤️