गीत चतुर्वेदी की पहली कहानी ‘सावंत आंटी की लड़कियाँ’ जब 2006 में पहल पत्रिका में छपी थी, तो उसने हिन्दी साहित्य में तहलका मचा दिया। उसे छापने वाले संपादक ज्ञानरंजन के अनुसार, “इस कहानी ने हिन्दी साहित्य के ढेर सारे ऊँघते-आँघते लोगों को नींद से जगा दिया और हिंदी के पाठकों में एक नई अपेक्षा और विश्वास भी पैदा किया। अपने कथन में लफ्ज़ की बारीक नक्काशी के साथ ही गद्य में भी कविता की सुगंध, गीत के लेखन की विशेषता रही है।” लगभग ऐसा ही माहौल 2007 में बना, जब इस किताब में संकलित गीत की तीसरी कहानी ‘साहिब है रंगरेज़’ तद्भव पत्रिका में छपी। उसके संपादक अखिलेश के अनुसार, “साहिब है रंगरेज़’ समकालीन रचनाशीलता के विरल उदाहरण गीत चतुर्वेदी के कथाकार की उपलब्धि है।” मुंबइया पृष्ठभूमि पर लिखी गई तीन लम्बी कहानियों के इस संग्रह के केंद्र में प्रेम है। उसके लिए कुछ भी करने और सहने की ताक़त से भरी स्त्रियाँ हैं। छल और उपहास से भरे पुरुष हैं। यथार्थ के गर्म तवे पर छन्न से गिरी सपने की बूँदों के गुम हो जाने का कवित्व है।
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