यह कहानी एक औरत की है, जिसका नाम सुरजीत है। सुरजीत अधकढ़ उम्र की है। उसकी वेशभूषा बिल्कुल साधारण है। उसके पति बीमार होने के कारण वह अपने आप में गुमसुम सी और चुपचाप रहती है। उसकी अपनी कोई संतान न होने के कारण उसने एक बच्ची को अपनी बहन से गोद ले लिया था, जिसका नाम उन्होंने मिनी रखा। वह अपने पति के बीमार होने और अपनी बेटी मिनी के भविष्य की चिंता करती रहती है। उसके देवर और देवरानी के दो बेटे थे। उसके देवर का नाम बलवीर था। सुरजीत के पति के बीमार होने के बाद बलवीर ही 28 किलो ज़मीन को अकेले ही संभालता था। बलवीर भी अपने बड़े भाई के बीमार होने के कारण चिंतित था। बलवीर ही अपने बड़े भाई को दवाइयां दिलवाता था। उसके बड़े भाई की हालत गंभीर होती जा रही थी। मिनी भी सुबह-शाम भगवान से यही प्रार्थना करती कि उसके पिता जल्दी से ठीक हो जाएं। उसके पिता जल्दी ठीक होकर उसके साथ वैसे ही खेलें जैसे कि वह पहले खेलते थे। वह उसे पहले जैसे ही कबड्डी खेलना सिखाएं। बलवीर के दोनों बेटे मिनी से बड़े थे। वे कक्षा में पढ़ते थे, लेकिन मिनी अभी स्कूल में दसवीं कक्षा में पढ़ती थी। मिनी पढ़ने में होशियार थी और खेलों में भी होशियार थी। मिनी ने एक बार स्टेट लेवल पर कबड्डी में जीत हासिल की थी। मिनी ने अपने माता-पिता और स्कूल का नाम रोशन किया था।
उस समय उसके पिता बिल्कुल ठीक थे। मिनी के पिता तब मिनी के लिए बहुत खुश थे। मिनी के पिता ने भी कभी मिनी को पराया नहीं समझा। मिनी के पिता ने मिनी को हमेशा अपनी खुद की बेटी की तरह प्यार दिया। जब मिनी ने सुरजीत और उसके पति का नाम रोशन किया, तब सुरजीत की बहन ने मिनी को उन्हें वापस करने को कहा। लेकिन सुरजीत ने अपनी बहन को मना करते हुए कहा कि "क्या हुआ कि मैं एक मां नहीं बन सकती? तुमने भले ही मिनी को जन्म दिया, लेकिन मैंने मिनी को अपने हाथों से पाल-पोस कर बड़ा किया। अब मैं ही मिनी की मां हूं और मैं ही मिनी की मां रहूंगी।" सुरजीत की यह बातें सुनकर उसकी बहन वहां से चली जाती है।