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साजिश - ए - इश्क़

14 नवम्बर 2022

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मगध देष में सुकुमार नाम का एक राजा राज्य करता था जिसकी चन्द्रावती नाम की रानी थी। जो अत्यन्त ही सुन्दर और गुणवती स्त्री थी। सम्पूर्ण देष में उसके जैसी सुन्दर कोई अन्य न थी, मानो ब्रह्मा ने उसे अपने हाथों से बनाया है, वह चांद की तरह खूबसूरत थी। उसे देखकर एक कोई उसके रूप को देखता ही रह जाता था। उसके यौवन की छवि उसके गोरे अंगों से ऐसे छलकती थी मानों क्षीर सागर से दूध की बूंदें चमकती हों। राजा के साथ चन्द्रावती बहुत खुष थी, विवाह के कुछ समय पष्चात उन्हें एक पुत्र प्राप्त हुआ जो अत्यन्त ही वीर और कुषल राजकुमार था लेकिन एक ऐसा समय आया जब राजा की किसी युद्ध में मृत्यु हो गई जिसके पष्चात राजकुमार का षासन मिला। अब वह अपनी मनमर्जी से राज्य करता और किसी की भी न सुनता। थोड़ा समय बीता, तो रानी चन्द्रावती पति के वियोग के कारण काम भावना से तड़पने लगी। ऊपर से वह दुखी और उदास नजर आती लेकिन भीतर ही भीतर वह किसी सुन्दर पुरूश को देखकर मन ही मन उसे पाने की आषा करने लगती लेकिन एक रानी होने के कारण यह सब इतना आसान नहीं था। राज्य की मर्यादाओं ने रानी चन्द्रावती को जकड़ा हुआ था। लेकिन वहीं दूसरी और कामाग्नि उसे अत्यन्त ही पीड़ा पहुंचा रही थी।

एक दिन उसने एक सुन्दर युवक अपने यहां बुला लिया। उसे मन माफिक धन देकर रानी उसके साथ भांति भांति की क्रिड़ाएं करने लगी। जिससे वह अत्यन्त ही आनन्द मना रही थी लेकिन मन ही मन उसे यह भी भय था कि कहीं उसका भेद राजा के सामने न खुल जाये। इसके लिए रानी को एक विचार आया। उसने युवक को पास बुलाकर उसके कान में एक योजना बताई। जिसकी सहायता से वह सदैव उसके साथ रह सकेगा और वह इस प्रकार बिना किसी से छुपे वह सब कर सकेंगे, जिसकी समाज इजाजत नहीं देता।

चन्द्रावती के कहने के अनुसार युवक जंगल की ओर चला गया, वहां पर नदी में स्नान करने के पष्चात ध्यान लगाकर बैठ गया। जिसे देख कर जब कुछ लोगों ने उसे देखा तो उन्हें देखकर कहने लगा कि उसे श्री कृश्ण के दर्षन हुए हैं और वह आज से उनके आदेषानुसार समस्त जगत का उद्वार करेगा। देखते ही देखते यह खबर आग की तरह पूरे नगर में फैल गई। दूर-दूर से लोग आने लगे। यह बात राजमहल में रानी तक पहुंची। तो रानी अपनी दासियों को कहने लगी। मुझे भी उस गुरू से मिलवाओ, जिसको गोपाल के दर्षन हुए हैं, ऐसे गुरू सदियों में एक बार मिलते हैं। लेकिन असल भेद तो सिर्फ रानी और वह युवक जानते थे कि वास्तविकता क्या है। रानी अपनी सैकड़ों दासियों के साथ रथ में सवार होकर जंगल में पहुंच गये जहां वह युवक बैठा हुआ था और उसे लोग चारों तरफ से घेरकर बैठे हुए थे और अपनी मुक्ति के उपाय पूछ रहे थे। इन सबके बीच रानी युवक को नमस्कार करते हुए बोली - आप कृपा करके मेरे घर चलिये। मै। एक पैर पर खड़ी होकर आपकी सेवा करूंगी। जिसे सुनकर युवक कहने लगा - आप सदा सुखी रहें, हम त्यागी ही ठीक हैं, हमें इन बंधनों में न फंसाओ। हम ऐसे ही अच्छे हैं। तब रानी बोली - आप कृपा करके मेरे साथ चलिये, मैं सदा आपकी आज्ञा मानूंगी, आप जैसा कहेंगे, मैं वैसा ही करूंगी, कृपया आप मेरे साथ चलिये। थोड़ी देर के पष्चात युवक रानी के साथ उसके महल में चला गया। जहां पर रानी ने सभी को उस युवक को अपना गुरू बताया और उसकी बहुत ही सेवा की। थोड़ी देर बाद रानी अपनी सभी दासियों को बोली कि वह योगी के साथ धर्म संबंधी बातें करेंगी और उनसे ज्ञान की प्राप्ति करेंगी इसलिए अब वह सब उन्हें अकेला छोड़ दें। यह आदेष पाकर सभी वहां से चले गये। जिसके पष्चात रानी और वह युवक सभी षर्मों-हया छोड़कर एक साथ कामक्रीड़ा में लिप्त हो गये और तरह-तरह के आसनों में संबंध बनाते हुए परम आनन्द की प्राप्ति की। इस प्रकार वह रानी उस युवक के साथ बाकी का जीवन बड़े आराम से रहती रही और बाकी के लोग उक्त युवक को गुरू समझ कर उसके पैर पड़ते रहे और उसकी पूजा-अर्चना करते रहे। 

इसलिए किसी ने सच ही कहा है कि प्यार और जंग में सब कुछ जायज है, षायद यह कहानी इसके अलावा और भी बहुत गहरा संदेष देती है, जिसे देखना और समझना आज के समय में बहुत ही आवष्यक है।


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रचनाएँ
कही-अनकही कहानियाँ
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विज्ञान और धर्म (बुद्धि और हदय) में मात्र इतना ही अंतर है कि विज्ञान मानता है काला रंग वास्तव में कोई रंग न होकर समस्त रंगों की अनुपस्थिति मात्र है। जहां कोई रंग नहीं वहां काला अर्थात् अंधकार ही होगा । इसी प्रकार सफेद रंग वास्तव में सभी रंगों के मिश्रण से प्राप्त होता है। यही भौतिकी के सिद्वान्त कहते हैं। इसके विपरित इसी विषय में हदय का प्रयोग करने वाले कला प्रेमी लोगों का इसके विपरित ही तर्क है। उनके अनुसार वास्तव में काला रंग समस्त रंगों के मिश्रण का नाम है। आप किसी चित्रकार से पूछिए कि उसे काला रंग बनाने के लिए क्या करना होगा, उत्तर में यही मिलेगा कि समस्त रंगों को मिला दीजिए, जो रंग प्राप्त होगा वह काला और समस्त रंगों की अनुपस्थिति से सफेद रंग प्राप्त होता है। यहां दोनों ही अपने-अपने स्थानों पर बिल्कुल सही हैं। दोनों वर्ग अनेकों प्रकार के प्रयोग करने के पष्चात ही इस निर्णय तक पहुंचे हैं जिसका गलत होने की कोई संभावना नहीं। मात्र दृष्टि का अंतर है। सही दोनों हैं। यह दोनों को मानना भी होगा कि वैज्ञानिक और चित्रकार दोनों ही सही हैं। विरोध को कोई प्रष्न नहीं और कभी इस विषय को लेकर किसी ने इनके मध्य कोई लड़ाई भी न सुनी होगी। मानव चेतना भी इन्ही चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जिसमे अक्सर मनुष्य का अंतर्मन सदा आपस में काले-सफेद को लेकर लड़ता रहता है, सदा दोनों और चलने वाली इस खींच तान के बीच कभी भी यह सुनिष्चित नहीं हो पाता कि वैज्ञानिक सही या चित्रकार? मानव मस्तिष्क के भीतर चलने वाले द्वन्द को इस पुस्तक में क्रमबद्ध पिरोया गया है, जिसमे उसके अंतर जगत को प्रतिबिंबित करता है....
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