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कंजूस बुढिया

17 मार्च 2024

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80 वर्षीय रामरति आज दांत दर्द से बेहाल थी उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें । खाना पीना सब कुछ ही हराम था, दांत दर्द कुछ होता ही ऐसा है जो ना तो जीने देता है और ना ही मरने देता है।
रामरति का एक बेटा और एक बहू भी थे और दो छोटे-छोटे पोते जो एक किराए के मकान में रहते थे बेटा छोटा-मोटा काम करता था जिससे बड़ी मुश्किल से उसका परिवार चल पाता था।
रामरति का पति भी कुछ सालों पहले गुजर चुका था। जिसके कारण अब वह पूरी तरह से अपने बेटे पर निर्भर थी। बेटे ने देखा कि उसकी मां का दांत का दर्द बहुत ही बढ़ता जा रहा है उसने उन्हें इलाज के लिए कुछ पैसे दिए और डॉक्टर के पास जाने को कहा रामरति ने बेटे से₹1000 लेकर अपने पास रख लिए और वह दर्द से कराहती हुई डॉक्टर के क्लीनिक पर पहुंची। थोड़ा इंतजार करने पर उसे पता चला, दांत निकलवाने के लिए डॉक्टर की फीस₹500 है।
₹500 फीस का सुनकर वह बडबडाते हुए बोली इतनी ज्यादा फीस, दांत ही तो निकालना है, फिर इतने पैसे से तो महीने भर का खर्च चल जाता है। नर्स बोली, फीस तो इतनी ही लगेगी, दांत निकलवाना है तो निकलवाओ नहीं तो अपना रास्ता नापो।
रामरति दर्द से कराहती हुए वापस घर की ओर चलने लगी। दांत का दर्द बढ़ता ही जा रहा था जो बहुत ही असहनिय था। धीरे-धीरे कदमों के साथ चलते हुए तभी उसे सड़क के किनारे भीड़ सी दिखाई पड़ी। वह देखने लगी कि आखिर वहां क्या हो रहा है। ऐसी कौन सी दुकान है जहां पर इतनी भीड़ लगी हुई है तभी उसे पता चला वह एक देसी शराब की दुकान थी जहां पर बहुत सारे शराबी शराब खरीद रहे थे और पी रहे थे। दुकान के बाहर शराब का दाम₹50 लिखा हुआ था ।
बुढ़िया ने दिमाग दौड़ाया और तुरंत एक शराब की बोतल खरीद ली और घर जाकर वह पूरी की पूरी शराब गटक गई। शराब का सुरूर चढ़ते ही बुढ़िया में जबरदस्त चुस्ती और फुर्ती आ गई उसके बाद उसे दांत का दर्द महसूस तो हो रहा था लेकिन इतना अधिक नहीं हो रहा था जितना कि पहले तभी उसने कमरे के एक कोने में एक शीशा उठाया और उसमें अपना चेहरा देखते हुए मुंह खोलकर दर्द होने वाले दांत को हिलाने लगी दर्द वाले दांत को हिलाने से उसका दर्द बहुत बढ़ गया लेकिन बुढ़िया ने हिम्मत नहीं हारी और बजरंगबली का नाम लेकर एक जोरदार झटके से दांत बाहर खींच लिया उसके बाद वह पानी से कुल्ला करके सो गई जब सुबह उठी अब उसका दांत भी गायब था और उसका दर्द भी। उसका बेटा बहू यह नहीं जानते थे कि उसने दांत को कैसे निकाला l पूछने लगा आज तो आप ठीक लग रही हो । क्या डॉक्टर से दांत निकलवा लिया बुढिया बोली नहीं, वह तो बहुत ज्यादा पैसे मांग रहा था मैंने खुद से ही निकाल लिया बस एक आयुर्वेदिक नुस्खा मिल गया जो सस्ता भी था और दमदार भी।
सभी बड़े हैरान थे बाद में जब पता चला की बुढ़िया ने कौन से नुस्खे से अपना दांत निकाला है तब यह बात सभी और फैल गई और लोग बुढ़िया के बारे में तरह-तरह की बातें करने लगे कि जब बेटे ने पैसे भी दे दिए थे तब भी वह उसे खर्च न कर सकी। कितनी कंजूस बुढ़िया थी वह। आपको क्या लगता है कि वह वाकई में कंजूस थी या कुछ और ही बात थी?
अगर कुछ समझ आए तो उसे बुढ़िया के बारे में अपनी राय कमेंट बॉक्स में अवश्य दें लाइक और शेयर करें धन्यवाद।


मीनू द्विवेदी वैदेही

मीनू द्विवेदी वैदेही

अमर जी आपने बेहद सजीव और मार्मिक कहानी लिखी है, बहुत सुंदर 👌👌👌 आप मेरी कहानी प्रतिउतर और प्यार का प्रतिशोध पर अपनी समीक्षा एवं लाइक जरूर दें 🙏🙏🙏

21 मार्च 2024

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रचनाएँ
कही-अनकही कहानियाँ
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विज्ञान और धर्म (बुद्धि और हदय) में मात्र इतना ही अंतर है कि विज्ञान मानता है काला रंग वास्तव में कोई रंग न होकर समस्त रंगों की अनुपस्थिति मात्र है। जहां कोई रंग नहीं वहां काला अर्थात् अंधकार ही होगा । इसी प्रकार सफेद रंग वास्तव में सभी रंगों के मिश्रण से प्राप्त होता है। यही भौतिकी के सिद्वान्त कहते हैं। इसके विपरित इसी विषय में हदय का प्रयोग करने वाले कला प्रेमी लोगों का इसके विपरित ही तर्क है। उनके अनुसार वास्तव में काला रंग समस्त रंगों के मिश्रण का नाम है। आप किसी चित्रकार से पूछिए कि उसे काला रंग बनाने के लिए क्या करना होगा, उत्तर में यही मिलेगा कि समस्त रंगों को मिला दीजिए, जो रंग प्राप्त होगा वह काला और समस्त रंगों की अनुपस्थिति से सफेद रंग प्राप्त होता है। यहां दोनों ही अपने-अपने स्थानों पर बिल्कुल सही हैं। दोनों वर्ग अनेकों प्रकार के प्रयोग करने के पष्चात ही इस निर्णय तक पहुंचे हैं जिसका गलत होने की कोई संभावना नहीं। मात्र दृष्टि का अंतर है। सही दोनों हैं। यह दोनों को मानना भी होगा कि वैज्ञानिक और चित्रकार दोनों ही सही हैं। विरोध को कोई प्रष्न नहीं और कभी इस विषय को लेकर किसी ने इनके मध्य कोई लड़ाई भी न सुनी होगी। मानव चेतना भी इन्ही चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जिसमे अक्सर मनुष्य का अंतर्मन सदा आपस में काले-सफेद को लेकर लड़ता रहता है, सदा दोनों और चलने वाली इस खींच तान के बीच कभी भी यह सुनिष्चित नहीं हो पाता कि वैज्ञानिक सही या चित्रकार? मानव मस्तिष्क के भीतर चलने वाले द्वन्द को इस पुस्तक में क्रमबद्ध पिरोया गया है, जिसमे उसके अंतर जगत को प्रतिबिंबित करता है....
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