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बड़े लोग

19 सितम्बर 2022

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राहुल निम्न मध्यवर्गीय परिवार से तीन भाई-बहनों में मझला बेटा था। उसके पिता जूते बनाने वाली एक फैक्ट्री में सेल्समैन का काम करते थे। जिससे बड़ी मुष्किल से उनके परिवार का गुजारा चल पाता था। दसवीं की परीक्षा के बाद गर्मियों के छुट्टियां हो चुकी थी। छुट्टियों की खबर से पूरे विद्यालय के बच्चों में हलचल सी मची हुई थी कि वो इन छुट्टियों में क्या करेंगे, कहां जायेंगे और इस तरह का बहुत कुछ जो अक्सर छुट्टियों के दौरान होता ही है। कक्षा का अंतिम दिन सभी बच्चों के लिए उत्साहपूर्ण था। वहीं दूसरी ओर राहुल मन ही मन यह सोच रहा था कि इन दो माह की छुट्टियों में क्यों न वह कहीं कोई छोटा-मोटा काम कर ले। उसका एक मित्र अजय जिसकी आर्थिक स्थिति भी राहुल के परिवार की भांति ही थी। वह राहुल से बोला। क्या बात है राहुल किस सोच में हो। राहुल- कुछ नहीं यार, बस, सोच रहा था कि इन दो महीनों में ऐसा क्या किया जाये जिससे कुछ अपना खर्चा-पानी ही निकल जाये। जेब खर्च के नाम पर तो घर से कुछ भी नहीं मिलता, बस कभी कापी-किताब के बहाने से पहले कुछ खर्च निकल जाता था। पर अब तो वो भी दो महीने के लिए बंद हो जायेगा। ऊपर से सारा दिन घर में खाली समय और खाली जेब लेकर समय भी नहीं कटेगा। इस पर अजय बोला - मेरी नजर में एक काम है। तू कहे तो बात करूं? बाजार में एक गारमेन्ट षॉप है, जहां सुबह 9 बजे से रात 7 बजे तक काम करना होगा। तनख्वाह 3,000 रूपये देगा। इस पर राहुल बोला - तीन हजार तो बहुत कम है और काम का समय बहुत अधिक है, कैसे करेंगे? अजय - कर लेंगे यार, मैं भी वहीं जा रहा हूं, दोनों एक साथ काम करेंगे तो मन भी लगा रहेगा, तू कहे तो मैं तेरी भी बात बाउजी से कर लूं, उन्हें और लड़कों की भी आवष्यकता है। राहुल - ठीक है यार, 3,000 रूपये भी तो बहुत हैं, मेरी भी बात कर लें।

अगले दिन अजय सुबह-सुबह राहुल के घर आकर दरवाजा खटखटाया तो घर के अंदर से एक स्त्री बाहर निकली और अजय को देखकर पूछने लगी। कैसे हो बेटा? आज बड़े दिन बाद यहां आये। राहुल - आंटी जी, बस आज से स्कूल में छुट्टियां पड़ गयी हैं तो राहुल से मिलने आ गया। राहुल कहां है? इस पर राहुल की मां अजय को घर के अंदर आने को कहकर अंदर चलने चली और पीछे-पीछे अजय घर के अंदर आ गया। राहुल की मां बोली कि देखो सुबह के नौ बजे गये और यह महाषय अभी तक सो रहे हैं। कहते हुए राहुल की मां उसको उठाने लगी। देखो तुम्हारा दोस्त अजय आया हुआ है और तुम अभी तक सो रहे हो। जल्दी उठो। आंख मलते हुए राहुल उठा और सामने अजय को देखा। अजय - राहुल, कल तुमको बताया था न, कि एक जगह नौकरी की बात की है। चलो, आज चलकर देख आते हैं। राहुल और अजय सीधे बाजार की ओर चल दिये। आसमान साफ था और तेज धूप में चलते हुए पसीने से दोनों भीगने लगे। इस बात को नजरअंदाज करते हुए दोनों बातचीत करते हुए सड़क के किनारे फुटपाथ पर चलते जा रहे थे। सड़क में गाड़ियों का जाम लगा हुआ था। फुटपाथ पर रेड़ी वालों ने लाईन से अपनी-अपनी रेड़ियां लगाई हुई थी जिसमें फल-सब्जी वाले, समोसे-चाट वाले, आईसक्रीम और कुल्फी वाले, पेन-पेन्सिल, कपड़े, इलैक्ट्रोनिक सामान बेचने वालों के साथ-साथ कई तरह के सामान बेचने वाले थे। इस प्रकार दोनों का फुटपाथ पर भी चलना मुष्किल हो रहा था। कुछ एक जगह पर लोगों के लड़ने की आवाजें आ रही थी जहां लोग उन्हें घेरकर तमाषा देखने में मगन थे। भीड़ के पीछे से राहुल और अजय ने किसी से पूछा कि क्या हुआ? क्यों झगड़ा हो रहा है। इस पर उसने जवाब दिया - कुछ नहीं भाई, जाम में एक कार को एक रिक्षे थोड़ा सा लग गया जिससे कार में स्क्रैच आ गये हैं इसलिए लड़ाई हो रही है। कार में एक महिला थी जो जोर-जोर से रिक्षे वाले को धमकाते हुए पांच हजार रूपये मांग रही थी और गरीब रिक्षेवाले से कुछ करते न बन रहा था। जनता भी महिला के साथ हो गयी थी। अंत में पुलिस ने दोनों का मामला रफा-दफा करवाया जिसमें रिक्षेवाले ने दो हजार रूपये किसी मित्र से उधार लेकर भरपाई की। ऐसा षहरों में अक्सर देखने को मिल ही जाता है। जब लोग छोटी-छोटी बातों में अपना आपा खो फसाद करने लगते हैं। जिसमें अधिकतर गरीब और कमजोर व्यक्ति ही पिसता है।

राहुल और अजय चलते-चलते अब दुकान पहुंच गये। रेडिमेड गारमेन्टस की दो मंजिला दुकान के मुख्य द्वार पर विभिन्न डिजाइन के कपड़े पहने डमियां लगी हुई थी। जिन्हें देख राहुल बोला - अबे यार, देख तो सही, यह तो एकदम असली इंसान लगते हैं और जाकर उन्हें छूने की कोषिष करने लगा तभी अंदर से एक सेल्समैन जोर से बोला, इसे मत छूना, अगर गिरकर टूट गया तो हर्जाना भर न सकोगे यह बहुत महंगा डमी है। राहुल और अजय एकदम से चौकन्ने हो गये और सीधा अंदर जाकर सेल्समैन से मालिक के बारे में पूछने लगे तो सेल्समैन बोला बाऊजी को आने में अभी एक घण्टा लगेगा। थोड़ा बैठकर इंतजार कर लो। यह सुनते ही अजय और राहुल बैंच पर बैठ गये। दुकान के अंदर बाहर के अपेक्षा ठण्डा था, जिससे दोनों खुष थे और अचरज भरी निगाहों से दुकान में रखे सामान को देख रहे थे। कुछ ग्राहकों को सेल्समैन कपड़े दिखा रहे थे। जिसके कारण टेबल पर कपड़ों का ढेर सा लगा हुआ था। सामने दीवार पर एक बड़ी सी टीवी स्क्रीन लगी हुई थी। जिसमें फिल्मी गाने चल रहे थे। जिसे देख दोनों दोस्त काफी खुष थे। एक घण्टा बीतने के बाद भी अभी तक बाऊजी नहीं आये तो सेल्समैन और और इंतजार के लिए बोला। तभी सामने से एक बूढ़ा सेल्समैन दुकान के ऊपर की मंजिल से उतरता हुआ नीचे आने लगा जो बड़ी मुष्किल से सीड़ियों से उतर रहा था, जिसने कमर में बैंड बांधा हुआ था जिसे देखकर लगता था कि उनकी कमर में कोई अधिक परेषानी थी। पूछने पर पता चला कि कुछ महीने पहले काम करते हुए अचानक सीढ़ियों से गिर गये थे जिसके कारण कमर की हड्डी में गुम चोटें लगने के कारण कई दिनों तक काम पर न आ सके। अब जैसे ही थोड़ा सा चलने लायक हुए तो फिर से काम करने आ गये क्योंकि मध्यमवर्गीय व्यक्ति भले ही देखने में साफ-सुथरा, पढ़ा-लिखा और पैसे वाला जान पड़ता है परन्तु वास्तविक धरातल पर सच्चाई कुछ और ही है। उस बुजुर्ग सेल्समैन ने बताया कि कैसे वह समय उसके लिए बहुत ही त्रासदीपूर्ण था जब वह सीढ़ीयों से गिरकर पीठ में चोट लगने के कारण कई दिनों तक घर में पड़ा रहा। उस समय उस पर दोहरी मार पड़ रही थी, जहां एक ओर इलाज में पैसे लग रहे थे वहीं दूसरी ओर काम में न आ पाने कारण वेतन भी कट रहा था। मदद करनी तो दूर मालिक ने यह तक चेतावनी दे दी थी कि अगर इसी महीने काम पर न आये तो कहीं ओर काम देख लेना क्योंकि यह सीजन का समय है और इतनी छुट्टी मैं बर्दाष्त नहीं कर सकता। आखिर 20 साल एक ही जगह ईमानदारी से काम करने का यह इनाम मिला। तो मजबूरन इसी हालत में आकर काम करना पड़ रहा है। आखिर घर वालों की जिम्मेदारी भी तो निभानी है। कमायेंगे नहीं तो खायेंगे क्या?

बातों-बातों में कैसे समय कट गया पता ही नहीं चला, दिन के दो बज चुके थे। सभी अपना-अपना खाना खाने ऊपर वाली मंजिल में चले गये। तभी नीचे बैठे सेल्समैन का फोन बजा जिसमें दुकान के मालिक ने कहा कि उन दो लड़कों को कल बुला लेना। आज मैं नहीं आ सकूंगा क्योंकि मेरा बेटा आज साईकिल से गिर गया था जिसे दिखाने मैं अस्पताल गया हूं। वहां समय लग जायेगा। इस पर सेल्समैन बोला - बाऊ जी, आपके बेटे को ज्यादा चोट तो नहीं आई? इस पर मालिक ने जवाब दिया - ज्यादा कुछ नहीं, थोड़ी सी खरोंच आई थी, डॉक्टर ने टिटनेस का इंजेक्षन दे दिया है और कुछ दवाईयां दे दी हैं और आराम करने की सलाह दी है। इतना कहते हुए फोन कट गया। सेल्समैन राहुल और अजय से बोला कि तुम कल आना, आज बाऊजी नहीं आयेंगे। उनकी बात सुनकर दोनों दुकान से बाहर निकल गये और घर की ओर जाने लगे। घर जाते हुए राहुल अजय से बोला - हमारे जैसे लोग कितने सख्तजान होते हैं जो बड़ी-बड़ी चोटों के बावजूद कितनी आसानी से काम कर लेते हैं और यह बड़े लोग कितने नाजुक और कमजोर होते हैं, है न.....!

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रचनाएँ
कही-अनकही कहानियाँ
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विज्ञान और धर्म (बुद्धि और हदय) में मात्र इतना ही अंतर है कि विज्ञान मानता है काला रंग वास्तव में कोई रंग न होकर समस्त रंगों की अनुपस्थिति मात्र है। जहां कोई रंग नहीं वहां काला अर्थात् अंधकार ही होगा । इसी प्रकार सफेद रंग वास्तव में सभी रंगों के मिश्रण से प्राप्त होता है। यही भौतिकी के सिद्वान्त कहते हैं। इसके विपरित इसी विषय में हदय का प्रयोग करने वाले कला प्रेमी लोगों का इसके विपरित ही तर्क है। उनके अनुसार वास्तव में काला रंग समस्त रंगों के मिश्रण का नाम है। आप किसी चित्रकार से पूछिए कि उसे काला रंग बनाने के लिए क्या करना होगा, उत्तर में यही मिलेगा कि समस्त रंगों को मिला दीजिए, जो रंग प्राप्त होगा वह काला और समस्त रंगों की अनुपस्थिति से सफेद रंग प्राप्त होता है। यहां दोनों ही अपने-अपने स्थानों पर बिल्कुल सही हैं। दोनों वर्ग अनेकों प्रकार के प्रयोग करने के पष्चात ही इस निर्णय तक पहुंचे हैं जिसका गलत होने की कोई संभावना नहीं। मात्र दृष्टि का अंतर है। सही दोनों हैं। यह दोनों को मानना भी होगा कि वैज्ञानिक और चित्रकार दोनों ही सही हैं। विरोध को कोई प्रष्न नहीं और कभी इस विषय को लेकर किसी ने इनके मध्य कोई लड़ाई भी न सुनी होगी। मानव चेतना भी इन्ही चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जिसमे अक्सर मनुष्य का अंतर्मन सदा आपस में काले-सफेद को लेकर लड़ता रहता है, सदा दोनों और चलने वाली इस खींच तान के बीच कभी भी यह सुनिष्चित नहीं हो पाता कि वैज्ञानिक सही या चित्रकार? मानव मस्तिष्क के भीतर चलने वाले द्वन्द को इस पुस्तक में क्रमबद्ध पिरोया गया है, जिसमे उसके अंतर जगत को प्रतिबिंबित करता है....
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कश्मकश

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सदा बेईमानी करने वाला मनोहर स्कूटी चलाते हुए कुछ सोचते हुए कहीं जा रहा था। थोड़ी दूर बाद लाल बत्ती आने के कारण अनेकों गाड़ियां कतारबद्ध खड़ी हो गई। तभी पीछे से एक मोटरसाईकिल सवार मनोहर के आगे आकर रूका

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19 सितम्बर 2022
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मैं ही सही हूं...

4 अक्टूबर 2022
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मुकेश लकड़ी का कार्य करने में अत्यन्त ही कुशल कारीगर था। काशी में दूर-दूर से लोग उसके पास लकड़ी के फर्नीचर और डिजाईनर सामान बनवाने के लिए आते थे जिससे उसके कार्य की ख्याति अत्यधिक फैल चुकी थी। मुकेश सदा

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चमत्कार होते हैं

17 अक्टूबर 2022
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अपने कस्बे में आषीश ने अच्छा नाम कमा लिया था। जिसका पषुओं का व्यापार इतना बढ़ चुका था, जिसे संभालने के लिए आषीश ने अनेकों लोग रखे हुए थे। एक आलीषान घर होने के साथ-साथ कई दुकानें, गाड़ियां और धन होने के

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इसी का नाम जिन्दगी है....!

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न जाने क्यों यह बाबा कुछ महीनों बाद बार-बार हमारे यहां आ जाते हैं और अगर आना ही है तो कम से कम साफ-सुथरे कपड़ों में तो आयें, उनके जूते भी कितने गंदे हैं, सारे फर्ष में मिट्टी-मिट्टी फैला दी। चिल्लाते ह

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इश्क क्या है, इस पर बड़े-बड़े कवियों और शायरों ने एक से एक खूबसूरत बातें कही होगी लेकिन इस अहसास को शब्दों में बयान कर पाना बहुत ही मुष्किल है क्योंकि कुछ लोगों के इश्क करने का अंदाज औरों से अलहदा होता

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शिकारी खुद यहां शिकार हो गया - धैर्य और संयम

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प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में सुख, सफलता और मानसिक षान्ति प्राप्त करना चाहता है। जिसके प्राप्त करने के लिए सभी के अपने-अपने तरीके होते हैं। मेहनत, ईमानदारी, बुद्विमानी, षिक्षा व्यक्ति को सफलता प्राप्

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साजिश - ए - इश्क़

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मगध देष में सुकुमार नाम का एक राजा राज्य करता था जिसकी चन्द्रावती नाम की रानी थी। जो अत्यन्त ही सुन्दर और गुणवती स्त्री थी। सम्पूर्ण देष में उसके जैसी सुन्दर कोई अन्य न थी, मानो ब्रह्मा ने उसे अपने हा

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मोबाईल में ग्रेट ग्रैण्ड मस्ती फिल्म में षाइनी मेड का सीन देखता हुआ मोन्टी मन ही मन गुदगुदा रहा था और एक्साईटेड होते हुए सोचता है। अगर ऐसी मेड मेरे पास भी होती तो क्या मजा होता! इंस्टा, फेसबुक, व्हाटस

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सांप और मकड़ी की कहानी

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एक बार एक साँप जंगल में घूम रहा था। उसे भूख लगी थी और वह खाने की तलाश में था। तभी उसे एक मकड़ी दिखाई दी। साँप ने सोचा कि उसे यह मकड़ी अपना शिकार बनाएगी। लेकिन मकड़ी बहुत चतुर थी। मकड़ी ने साँप को एक

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रेगिस्तान का नाम लेते ही एक दृश्य मस्तिष्क में उभरता है। जहां दूर-दूर तक दिखते हैं, रेत के कभी न खत्म होने वाले ऊंचे-नीचे पहाड़, खुले आसमान में तेज चमकता सूरज, गर्म चलती हुई तेज हवाएं जो रेगिस्तान की र

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कंजूस बुढिया

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80 वर्षीय रामरति आज दांत दर्द से बेहाल थी उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें । खाना पीना सब कुछ ही हराम था, दांत दर्द कुछ होता ही ऐसा है जो ना तो जीने देता है और ना ही मरने देता है। रामरति का एक बे

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