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शिकारी खुद यहां शिकार हो गया - धैर्य और संयम

11 नवम्बर 2022

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प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में सुख, सफलता और मानसिक षान्ति प्राप्त करना चाहता है। जिसके प्राप्त करने के लिए सभी के अपने-अपने तरीके होते हैं। मेहनत, ईमानदारी, बुद्विमानी, षिक्षा व्यक्ति को सफलता प्राप्त करवा सकती है लेकिन इन सबके साथ तीन गुण और भी ऐसे हैं जिसके बिना व्यक्ति यह सारे गुण होते हुए भी आगे नहीं बढ़ पाता और वह है - संयम, धैर्य और साहस। यह तीन गुण ऐसे हैं जिनकी सहायता से व्यक्ति बाकी के सभी गुणों को प्राप्त करते हुए जीवन में सुख, सफलता और षान्ति प्राप्त कर लेता है।

आज की कहानी इसी से संबंधित है कि कैसे विकास ने ऐसी परिस्थिति से संयम और धैर्य की सहायता से बाहर निकला। जब किसी ने उसके साथ धोखा किया। बात उस समय की है, जब विकास कॉलसेन्टर में रात्रि में कार्य करता था और दिन में पूरा समय खाली रहने के कारण अन्य स्थान पर कार्य करने को सोचना है क्योंकि मध्यम वर्गीय परिवार का होने के कारण इतना वेतन पर्याप्त नहीं था। एक दिन विकास समाचार पत्र में एक पार्ट टाईम जॉब की नौकरी देखता है जिसमें उसे कम्प्यूटर संबंधी कार्य करने थे, जिसके उसे कार्य के अनुसार वेतन मिलना था। यह देखकर विकास खुष होता है और सीधे अखबार में दिये पते पर पहुंच जाता है।

कार्यालय में पहुंचते ही ऑफिस में उसे एक सूटबूट में एक अधिकारी मिलते हैं, जो इंटरव्यू ले रहे होते हैं।

अधिकारी - तो अपने बारे में कुछ बताओ और इस कार्य में क्या अनुभव है?

विकास - मैं अभी कॉलसेन्टर में कार्य करता हूं, जहां प्रायः रात्रि की ड्यूटी रहती है, सारा दिन खाली होने कारण मैं चाहता हूं, कि कोई पार्ट टाईम कार्य करूं। आपका विज्ञापन देखा और मुझे लगता है कि मैं यह कार्य करने के लिए बिल्कुल परफैक्ट व्यक्ति हूं क्योंकि मुझे कम्प्यूटर में डाटा एन्ट्री और टाईपिंग संबंधी कार्यों का बहुत अच्छा अनुभव है।

अधिकारी - षैक्षिक पत्र देखते हुए, तो ठीक है, आज तुम कार्य करके दिखाओ, फिर हम यह निष्चित करेंगे कि तुम्हें रखना है या नहीं।

विकास - मन ही मन खुष होते हुए क्योंकि वह तो चाहता ही था कि एक बार उसे कार्य के कहें, ताकि वह अपनी कार्यक्षमता उन्हें दिखा सके। कुछ ही घण्टों मेें विकास बहुत सारा कार्य करके दिखा देता है जिसे देखकर अधिकारी और अन्य स्टाफ के लोग हैरान होते हैं क्योंकि विकास के कार्य करने की गति उनकी उम्मीद से कहीं अधिक थी।

अधिकारी - तुम्हारा कार्य तो बहुत अच्छा है, लेकिन यह बताओ कि तुम कितने वेतन में यह कार्य करोगे?

विकास - सर आपको जो सही लगे, आप ही बतायें, आपके यहां क्या पैकेज है?

अधिकारी - तो ठीक है, हम आपको अन्य स्थानों पर भेजेंगे, जहां आपको प्रोजेक्ट बेस्ड काम दिये जायेंगे। कार्य पूर्ण होने के पष्चात आप वहां से उस कार्य की पूरी पेमेन्ट जो उनके साथ हमारे द्वारा पहले से तय होगी, आपको लेकर यहां आना है, जिसकी आधी राषि आपको दे दी जायेगी। 

विकास - ठीक है, मैं तैयार हूं। 

अधिकारी - ठीक है, तुम कल से सुबह यहां आ जाओ।

अगले दिन विकास दिये गये समय आफिस पहुंच जाता है। जहां उसे अधिकारी एक प्रोजेक्ट बताता है, जहां विकास को जाना था। वह स्थान वहां से कोई 10 किलोमीटर दूर था, जहां विकास को अपने वाहन द्वारा जाना था। विकास सीधे उस स्थान पर पहुंच जाता है और कार्य करने लगता है, कार्य करते हुए यूं ही 20 दिन बीत जाते हैं और कार्य भली भांति पूर्ण हो जाता है। अधिकारी द्वारा जैसा कि तय हुआ था। विकास वहां से पेमेन्ट ले लेता है जो करीब 40,000 रूपये बने थे। वह राषि लेकर विकास सीधे अधिकारी को दे देता है और उनसे कहता है कि जैसा कि तय हुआ था आप मुझे बाकी की आधी राषि दे दें क्योंकि रोजाना आने-जाने के कारण गाड़ी से काफी खर्चा हो गया है और मुझे अब लगता है कि अभी कुछ दिन आगे मैं अगला प्रोजेक्ट करने में समर्थ नहीं हूं। क्योंकि रात्रि में कॉल सेंन्टर की डयूटी होने के कारण सुबह पुनः लंबे समय तक कार्य से मुझे आराम नहीं मिल पा रहा है इसलिए कुछ दिन बाद फिर से आपके पास आउंगा और कार्य करूंगा जिसमें थोड़े कम घण्टे हों। 

यह सुनकर अधिकारी विकास को बोलता है, आपको हमारे यहां लगातार पूरे महीने कार्य करना होगा, तभी आपको आपकी पेमेन्ट मिलेगी। हमारे संस्थान का यही रूल है।

विकास - लेकिन सर, यह बात तो आपने पहले नहीं बताई। आपने तो कहा था कि प्रत्येक प्रोजेक्ट के बाद मिलने वाली आधी राषि तुम्हें दी जायेगी।

अधिकारी - धूर्ततापूर्ण भाव बनाते हुए, हमारे यहां ऐसा ही रूल है, आपको पैसे नहीं मिलेंगे, जो भी करना है, कर लो।

विकास - अधिकारी द्वारा ऐसी बात सुनकर विकास मन ही मन अत्यन्त ही क्रोध भर उठा लेकिन तुरन्त मन को संयमित करते हुए तुरन्त सोचा कि यदि इस समय क्रोध दिखाया तो कुछ भी नहीं मिलने वाला बल्कि लड़ाई-झगड़े से समय ही खराब होगा। उक्त अधिकारी अत्यन्त ही धूर्त और लालची किस्म का व्यक्ति हैं क्यों न अंधेरे में ही तीर छोड़ा जाये। यह सोचते हुए विकास भावनाओं को नियंत्रित रखते हुए अत्यन्त ही भोली सी सूरत बनाकर विकास बोला - सर, अगर ऐसी ही बात है तो कोई बात नहीं, यदि आपका यही रूल है तो मैं इससे मानता हूं और बिना पैसे लिये ही जाने को भी तैयार हूं लेकिन मेरी आपसे गुजारिष है कि कुछ समय बाद भी यदि आपको मेरी कोई आवष्यकता पड़ती है, तो आप मुझे दुबारा बुला सकते हैं। मैं फिर से आपके साथ काम करना चाहूंगा, वो भी आपकी षर्तों में।

यह सुनकर अधिकारी खुष हुआ और सोचने लगा कि ऐसे मूर्ख व्यक्ति ही तो हमें चाहिए। मुस्कुराते हुए विकास को ऑल द बेस्ट कहकर विदा कर दिया।

विकास अब मन ही मन सोच रहा था कि क्या वह व्यक्ति उसे दुबारा बुलायेगा। यदि यह तरीका काम न किया तो उसके पुराने पैसे तो डूबे ही समझो।

कुछ समय ऐसे ही बीत गया। एक माह बाद ही उक्त अधिकारी का फोन विकास को आया।

अधिकारी - हैलो, विकास बोल रहे हो?

विकास - जी, सर, कैसे याद किया आपने।

अधिकारी - एक नया प्रोजेक्ट मिला है किसी नई पार्टी का। तीन चार महीने का काम है, क्या करोगे?

विकास - जी जरूर करूंगा। मन ही मन विकास सोचने लगा, यही तो मैं चाहता था....! सर मैं अभी एक घण्टे में आपके आफिस पहुंचता हूं।

अधिकारी - ठीक है, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा।

थोड़ी देर पष्चात विकास ऑफिस पहुंच गया। अधिकारी ने विकास को एक पार्टी के प्रोजेक्ट के बारे में बताया जो दो माह तक चलना था। विकास तुरन्त सारी जानकारी लेकर उस पार्टी के पास पहुंच गया और वहां कार्य करने लगा। देखते ही देखते काम पूर्ण हो गया। पार्टी का करीब 50 हजार रूपये बिल बना जो विकास ने ले लिया और पार्टी को अपने और उक्त अधिकारी के बीच हुई घटना के बारे में सभी बातें बता दी और भविश्य में कोई भी अन्य प्रोजेक्ट होने की स्थिति में अपना नम्बर दिया और वर्तमान में लिये गये रेट से बहुत कम प्राईज़ में उनका कार्य करने का वायदा किया। क्योंकि उसके कार्य से उक्त पार्टी के लोग प्रसन्न थे तो वह भी मान गये।

पेमेन्ट हो जाने के पष्चात विकास चुपचाप अपने घर आ गया। कुछ दिनों पष्चात उक्त अधिकारी का फोन आया और वह कहने लगा कि वह उसकी पेमेन्ट करे।

विकास - कैसी पेमेन्ट।

अधिकारी - जो तुमने उक्त पार्टी से ली है।

विकास - वो तो हिसाब पूरा हो चुका है।

अधिकारी - क्या बात कर रहे हो, तुमने मुझे 25 हजार रूपये देने हैं।

विकास - सर, आप भूल रहे हैं षायद। 25,000 इस बार के और 20,000 रूपये पिछली बार के, और बाकी के बचे 5,000 रूपये इतना इंतजार करने के। इस हिसाब से हमारा हिसाब पूरा हो चुका है और यही मेरा भी रूल है।

अधिकारी - तिलमिलाते हुए, यह बात ठीक नहीं है। मैं पुलिस कम्प्लेन करूंगा।

विकास - आपको जो करना है, कर लीजिए। लेकिन मेरी तरफ से अपना हिसाब पूरा हो चुका है और अगर आपके पास और भी ऐसे ही कोई अन्य प्रोजेक्ट हों तो मुझे जरूर याद कीजिएगा, मैं तुरन्त आपके पास हाजिर हो जाऊंगा।

अधिकारी भड़कते हुए फोन काट देता है।

इस घटना को करीब 10 वर्श बीत चुके हैं और विकास आज भी उस पार्टी के यहां जाकर अपने काम के साथ-साथ अलग से काम करता है और अपने संयम, धैर्य की बदौलत अपनी मेहनत का फल स्वयं प्राप्त करता है। आज के समय में ऐसे अनेकों धूर्त लोमड़ियां लोगों की मेहनत का फल चुराने में माहिर हैं। जो लोगों को डरा-धमकाकर, बहला-फुसलाकर उन्हें लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ती। ऐसी लोमड़ियों के साथ क्या किया जाना चाहिए? आपको क्या लगता है, विकास ने अधिकारी के साथ धोखा किया या फिर सही..... जरूर कमेंट करें। 


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रचनाएँ
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विज्ञान और धर्म (बुद्धि और हदय) में मात्र इतना ही अंतर है कि विज्ञान मानता है काला रंग वास्तव में कोई रंग न होकर समस्त रंगों की अनुपस्थिति मात्र है। जहां कोई रंग नहीं वहां काला अर्थात् अंधकार ही होगा । इसी प्रकार सफेद रंग वास्तव में सभी रंगों के मिश्रण से प्राप्त होता है। यही भौतिकी के सिद्वान्त कहते हैं। इसके विपरित इसी विषय में हदय का प्रयोग करने वाले कला प्रेमी लोगों का इसके विपरित ही तर्क है। उनके अनुसार वास्तव में काला रंग समस्त रंगों के मिश्रण का नाम है। आप किसी चित्रकार से पूछिए कि उसे काला रंग बनाने के लिए क्या करना होगा, उत्तर में यही मिलेगा कि समस्त रंगों को मिला दीजिए, जो रंग प्राप्त होगा वह काला और समस्त रंगों की अनुपस्थिति से सफेद रंग प्राप्त होता है। यहां दोनों ही अपने-अपने स्थानों पर बिल्कुल सही हैं। दोनों वर्ग अनेकों प्रकार के प्रयोग करने के पष्चात ही इस निर्णय तक पहुंचे हैं जिसका गलत होने की कोई संभावना नहीं। मात्र दृष्टि का अंतर है। सही दोनों हैं। यह दोनों को मानना भी होगा कि वैज्ञानिक और चित्रकार दोनों ही सही हैं। विरोध को कोई प्रष्न नहीं और कभी इस विषय को लेकर किसी ने इनके मध्य कोई लड़ाई भी न सुनी होगी। मानव चेतना भी इन्ही चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जिसमे अक्सर मनुष्य का अंतर्मन सदा आपस में काले-सफेद को लेकर लड़ता रहता है, सदा दोनों और चलने वाली इस खींच तान के बीच कभी भी यह सुनिष्चित नहीं हो पाता कि वैज्ञानिक सही या चित्रकार? मानव मस्तिष्क के भीतर चलने वाले द्वन्द को इस पुस्तक में क्रमबद्ध पिरोया गया है, जिसमे उसके अंतर जगत को प्रतिबिंबित करता है....
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