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मैं ही सही हूं...

4 अक्टूबर 2022

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मुकेश लकड़ी का कार्य करने में अत्यन्त ही कुशल कारीगर था। काशी में दूर-दूर से लोग उसके पास लकड़ी के फर्नीचर और डिजाईनर सामान बनवाने के लिए आते थे जिससे उसके कार्य की ख्याति अत्यधिक फैल चुकी थी। मुकेश सदा से ही अपनी कार्यक्षमता बढ़ाने के बारे में चिंतित रहता था और अपने ज्ञान को बढ़ाने में सदैव तत्पर रहता था। हाल ही में वह अपने किसी रिश्तेदार के विवाह में दक्षिण भारत गया, जहां उसने लकड़ी का बना पुल देखा, जिसे देखकर उसके मन में आया कि क्यों न ऐसा पुल बनाना वह भी सीख ले। यह सोचकर वह उस पुल बनाने वाले कारीगर को ढूंढने लगा। बड़ी मुश्किल से उसे एक बुजुर्ग कारीगर मिला जिसने वह पुल बनाया था। मुकेश ने उन्हें अपने बारे में बताया कि वह भी एक कारीगर है और उनसे वह पुल बनाना सीखना चाहता है। यह सुनकर वह बुजुर्ग सहर्ष तैयार हो गया और कुछ ही समय में मुकेश को पुल बनाना सीखा दिया। पुल बनाना सीखते ही मुकेश अति उत्साह में जल्दी-जल्दी बुजुर्ग कारीगर को धन्यवाद देकर जाने लगा तो बुजुर्ग ने उसे कुछ बताने के लिए आवाज लगाई लेकिन मुकेश अपनी प्रसन्नता के अति उत्साह में उनकी बात अनसुनी करके चला गया।

अपने नगर काशी में वापिस आते ही मुकेश ने सभी लोगों को बताया कि वह किस प्रकार एक नई कला सीखकर आया है और दक्षिण भारतीय तरीके का लकड़ी का अद्भुद पुल बना सकता है। यह सुनकर सभी अत्यन्त आश्यचर्यचकित हुए लेकिन अभी तक उसे कोई ऐसा व्यक्ति न मिला था जो उसकी की कला का लाभ उठा सके। लेकिन बहुत ही जल्दी उसे एक ग्राहक मिला जो एक धनी व्यापारी था। उसके घर में उसकी बेटी का विवाह होना सुनिश्चित हुआ था। व्यापारी ने सोचा कि क्यों न मुकेश से दक्षिण भारतीय तरीके का वह लकड़ी का पुल बनवाया जाये जिसके ऊपर से बारात गुजरेगी तो क्या अद्भुद नजारा होगा। व्यापारी के कहने पर मुकेश ने पुल बनाना प्रारम्भ कर दिया और निश्चित समय के अन्दर उसने पुल तैयार कर दिया। पुल को बहुत ही सुन्दर लाईटों से सजाया गया था। बारात के आते ही वधु पक्ष में बारातियों का स्वागत किया और बड़े ही उत्साह से पुल पर से आने का न्यौता दिया। बारात पुल के ऊपर से आने लगी तभी उन बारातियों में से एक व्यक्ति बारातियों से कहने लगा कि जल्दी से इस पुल से उतर जाओं, नहीं तो यह टूट सकता है लेकिन किसी ने उसकी बात नहीं मानी और सभी बाराती उसे विवाह का कार्यक्रम खराब न करने की बात कहते हुए उसे चुप कराने लगे। जैसे-जैसे बारात आगे बढ़ रही थी, सभी बाराती पुल के ऊपर आ चुके थे। एक साथ नाचने के कारण पुल हिल रहा था। जिसके कारण वह व्यक्ति फिर सबसे कहने लगा जल्दी से इस पुल से उतर जाओ यह जल्दी ही गिरने वाला है। वहीं मुकेश यह सब देख रहा था और उस व्यक्ति को समझाने लगा कि यह पुल नहीं टूट सकता क्योंकि वह उसने बनाया है और उसकी बनाई प्रत्येक वस्तु अद्भुद होती है। मुकेश की बात सुनकर भी उस व्यक्ति ने कहा, तुम देखना यह पुल जरूर टूटेगा और यह कहते ही वह भागकर पुल से उतर गया। उसके उतरते ही वह पुल भरभरा कर टूटने लगा। जिससे सभी बाराती ऊंचाई से गिरने लगे और भगदड़ मचने के कारण काफी लोगों को चोट आई। जिस पर कुछ बाराती उक्त व्यक्ति को बुरा-भला कहने लगे कि उसने ऐसे अच्छे समय में बुरी बातें कहीं जिस कारण यह दुर्घटना घटी। कुछ उसे मनहूस कहकर अपशब्द कहने लगे।

यह सुनकर वह व्यक्ति कहने लगा कि इसमें मेरी कोई गलती नहीं है, मैने तो आप सबको पहले ही चेतावनी दी थी कि जल्दी ही यह पुल गिरने वाला है क्योंकि मुझे लकड़ी के चरमराने की आवाज महसूस हो रही थी और उसके जोड़ कमजोर प्रतीत हो रहे थे। इसमें पूरी गलती इसके बनाने वाले की है। लेकिन अभी भी लोग उसे ही दोषी मान रहे थे। यह सब मुकेश भी देख रहा था जिसे देखकर वह भी घबरा गया और लोगों से कहने लगा कि जरूर इसी ने इस विवाह के समारोह को खराब करने के लिए पुल को कुछ किया है। यह आप लोगों का शुभचिंतक नहीं अपितु शत्रु है। ऐसा सुनकर मुकेश के कुछ साथी भी उसकी हां में हां मिलाने लगे। जिसे सुनकर वह व्यक्ति तुरन्त विवाह समारोह छोड़कर चला गया और पीछे उसके बारे में बातें होने लगी कि कैसा व्यक्ति है, जिसे इतना नहीं पता कि शुभ अवसर पर क्या बोलना चाहिए।

वहीं दूसरी ओर मुकेश चुपचाप दावत का मजा उड़ाकर मन ही मन खिसियाता हुआ, विवाह समारोह से उसकी बुराई करते हुए निकल गया।

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रचनाएँ
कही-अनकही कहानियाँ
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विज्ञान और धर्म (बुद्धि और हदय) में मात्र इतना ही अंतर है कि विज्ञान मानता है काला रंग वास्तव में कोई रंग न होकर समस्त रंगों की अनुपस्थिति मात्र है। जहां कोई रंग नहीं वहां काला अर्थात् अंधकार ही होगा । इसी प्रकार सफेद रंग वास्तव में सभी रंगों के मिश्रण से प्राप्त होता है। यही भौतिकी के सिद्वान्त कहते हैं। इसके विपरित इसी विषय में हदय का प्रयोग करने वाले कला प्रेमी लोगों का इसके विपरित ही तर्क है। उनके अनुसार वास्तव में काला रंग समस्त रंगों के मिश्रण का नाम है। आप किसी चित्रकार से पूछिए कि उसे काला रंग बनाने के लिए क्या करना होगा, उत्तर में यही मिलेगा कि समस्त रंगों को मिला दीजिए, जो रंग प्राप्त होगा वह काला और समस्त रंगों की अनुपस्थिति से सफेद रंग प्राप्त होता है। यहां दोनों ही अपने-अपने स्थानों पर बिल्कुल सही हैं। दोनों वर्ग अनेकों प्रकार के प्रयोग करने के पष्चात ही इस निर्णय तक पहुंचे हैं जिसका गलत होने की कोई संभावना नहीं। मात्र दृष्टि का अंतर है। सही दोनों हैं। यह दोनों को मानना भी होगा कि वैज्ञानिक और चित्रकार दोनों ही सही हैं। विरोध को कोई प्रष्न नहीं और कभी इस विषय को लेकर किसी ने इनके मध्य कोई लड़ाई भी न सुनी होगी। मानव चेतना भी इन्ही चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जिसमे अक्सर मनुष्य का अंतर्मन सदा आपस में काले-सफेद को लेकर लड़ता रहता है, सदा दोनों और चलने वाली इस खींच तान के बीच कभी भी यह सुनिष्चित नहीं हो पाता कि वैज्ञानिक सही या चित्रकार? मानव मस्तिष्क के भीतर चलने वाले द्वन्द को इस पुस्तक में क्रमबद्ध पिरोया गया है, जिसमे उसके अंतर जगत को प्रतिबिंबित करता है....
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