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दर्दे इश्क

10 नवम्बर 2022

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इश्क क्या है, इस पर बड़े-बड़े कवियों और शायरों ने एक से एक खूबसूरत बातें कही होगी लेकिन इस अहसास को शब्दों में बयान कर पाना बहुत ही मुष्किल है क्योंकि कुछ लोगों के इश्क करने का अंदाज औरों से अलहदा होता है। जो अक्सर इष्क को अलग ही आयाम पर ले जाता है जिसका स्वाद बहुत ही कम लोग चख पाते हैं, क्योंकि ऐसा इष्क वाकई ऐसे आग का दरिया है जिसमें बहुत सारा दर्द और थोड़े पलों का सुकून है। एक ऐसी ही है कहानी मनोहर और रिया की।

बाल्कनी में बैठा मनोहर चाय पी रहा था तभी सामने मेज पर रखा मोबाईल स्क्रिन पर रिया नाम चमका। मोबाईल रिसीव करके मनोहर - हैलो, कैसी हो रिया? आज बड़े दिनों बाद याद किया।

रिया - मनोहर, आज षाम को घर में एक छोटा सा फक्षन है, तुम्हें याद है, न। आज चिंटू का जन्मदिन है। 

मनोहर - वो मैं कैसे भूल सकता हूं। 

रिया - ठीक है, तुम अभी आ जाओ, बहुत सारी तैयारियां करनी हैं। दिनेष भी यहां नहीं है, अब हमें ही सब करना होगा।

मनोहर - ठीक है, अभी आता हूं। चिन्ता न करो, हम सब संभाल लेंगे।

तभी चाय पीते हुए मनोहर पुरानी यादों में खो जाता है कि कैसे मैं पहली बार कॉलेज में रिया से मिला था। जब मैं बीकॉम द्वितीय वर्ष में था। कॉलेज में एडमिषन के लिए नए छात्रों की लाईन लगी हुई थी। तब रिया अपनी एक सहेली के साथ उसे एडमिषन काउन्टर पर दिखी। उसका मासूम चेहरे में न जाने कौन सी कषिष थी, जिस पर हर किसी की एक बार तो नजर पड़ ही रही थी जो सोचने को मजबूर करती थी कि आखिर यह कौन है और कहां से आई है। तब मैं भी बिना किसी कारण वहीं आसपास घूमने लगा ताकि पता तो चल सके, आखिर कौन सी ब्रांच में एडमिषन लेने आई है। तब पता चला कि वह तो बी.ए. में एडमिषन ले रही है। तभी वो अचानक मेरे पस आकर पूछने लगी कि क्या आपके पास पैन होगा? मुझे फार्म भरना है, मेरा पैन काम नहीं कर रहा। मैंने तुरन्त पैन निकालकर उसे दे दिया। पूछने पर उसने बताया कि वह भी अपने ही षहर में रहती है। मिलनसार और खुषमिजाज स्वभाव होने के कारण हम जल्दी ही एक दूसरे से घुलमिल गये। मेरा घर उसके घर से थोड़ी दूर आगे पड़ता था। तो अक्सर आते-जाते एक दूसरे से सामना हो जाया करता। मन ही मन मैं रिया को पसन्द करने लगा था लेकिन उससे कहने की हिम्मत न जुटा पाया, डरता था कि कहीं वह इस बात का बुरा न मान जाये लेकिन हमेषा सोचता था, पहले उसके मन की बात जानकर सही समय में उसे अपने दिल का हाल सुना दूंगा, फिर चाहे जो भी हो। लेकिन उसे खोने का बहुत डर लगता था, षायद उसे देखने, उससे बात करने और उसका ख्याल रखना मेरी एक ऐसी आदत बन चुकी थी जिसे मेरे दोस्तों ने भी नोटिस किया। अब हाल कुछ ऐसा हो गया था कि रिया कुछ भी कहती तो मैं उसे चाहते हुए भी मना न कर पाता और अपने सारे काम छोड़कर उसे पूरा करने लगता। यूं ही समय बीतता गया लेकिन मैं तो उसे कुछ कह न सका लेकिन हमेषा मुझे यही लगता था कि रिया के दिल में भी मेरे लिए जरूर प्यार है क्योंकि अब तक हम दोनों के दूसरे के परिवार से मिल चुके थे। रिया मेरे घर में अक्सर आ जाया करती थी और मैं भी बेखटके रिया के घर आता-जाता रहता था। अनेकों बार ऐसे मौके आये, जब रिया किसी भी मुसीबत में फंसी तब उसने सबसे पहले मुझे ही याद किया और मैं भी फौरन रिया की मदद के लिए पहुंच गया। 

जिन्दगी में कई बार ऐसे मोड़ आते हैं जब सब कुछ बदल जाता है। मैंने पुलिस की नौकरी के लिए अप्लाई किया और ऊपर वाले की दया से वहां मेरा सिलेक्षन हो गया। रिया बहुत खुष थी और मैं भी बहुत खुष था। मैंने घर से एक सेलीब्रेषन पार्टी रखी जिसमें सभी को बुलाया। मैने निष्चय कर लिया था कि मैं उस दिन रिया को प्रपोज कर दूंगा, क्योंकि इतने सालों के साथ से मैं तो निष्चित रूप से अब रिया के बिना नहीं रह सकता था। 

षाम की पार्टी के बाद धीरे-धीरे लोग जाने लगे, तभी रिया को मैंने अकेले में कहा - रिया, आज तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो। तो रिया हंसते हुए बोली, क्यों यही कहने के लिए यहां बुलाया था। मैंने कहा और भी कुछ कहना है तुमसे। रिया - कहो, जो भी कहना है। मैं बोला - रिया, क्या तुम मुझसे षादी करोगी? मैं बहुत समय से तुम्हें कहना चाहता था, लेकिन सही समय नहीं मिला। आज मुझे लगा, कि यह समय बिल्कुल सही है, मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं और हमेषा तुम्हें बहुत खुष रखूंगा। यह सुनकर रिया बोली - वो सब ठीक है, मैं भी तुम्हें पसंद करती हूं लेकिन मैं चाहती हूं कि मैं अपने और तुम्हारे परिवार की रजामंदी से षादी करूं। मैं बोला - मेरे मम्मी-पापा तो मेरे दिल की बात बिना कहे ही समझते हैं और तुम्हें उन्हें माना हुआ ही समझो। तुम अपनी बताओ। रिया बोली - इतना इंतजार किया है तो थोड़ा और सब्र करो, मैं घर में बात करती हूं। फिर तुम्हें बताती हूं, तुम अभी अपनी ट्रेनिंग पूरी करके आओ। उसके बाद मैं तुम्हें खुषखबरी देती हूं। यह सुनकर मैं म नही मन खुषी से पागल हो गया।

मैं पुलिस की ट्रेनिंग करने चला गया। बीच-बीच में रिया से फोन पर बात होती रही। तभी न जाने क्या हुआ रिया ने अचानक से बात करनी बंद कर दी। दोस्तों से फोन पर पता लगा कि रिया की षादी कहीं और तय कर दी गयी है। यह सुनकर तो जैसे मुझ पर दुखों का पहाड़ सा टूट पड़ा। सोचने लगा कि ये सब कैसे हो गया और क्यों हो गया। हम दोनों के परिवार तो पहले से ही हमें पसंद करते हैं, मेरे पास अच्छी सरकारी नौकरी भी है, इकलौता बेटा, अच्छा घर सबकुछ तो है, फिर ऐसा क्यों हुआ। 

किसी तरह रिया की मम्मी को फोन किया, उनसे पूछा कि इतनी जल्दी ये सब कैसे हो गया। तब उन्होंने बताया - बेटा तुम्हें तो पता है, रिया के पापा कितने जिद्दी हैं और पहले भी उन्हें दो बार दिल का दौरा पड़ चुका है। उनके एक करीबी दोस्त का बेटा है, जो मर्चेन्ट नेवी में ऑफीसर है, उन्होंने रिया के रिष्ते के लिए कहा और उनके पिता जी ने हां कर दी। रिया ने तुम्हारे बारे में भी बताया लेकिन उन्होंने यह कहकर साफ इंकार कर दिया कि अपनी बेटी की षादी किसी कम पढ़े-लिखे आदमी से करवा सकता हूं लेकिन पुलिस वालों का मेरे आगे नाम न लेना। मनोहर अच्छा लड़का है, लेकिन अब वो पुलिस वाला भी है, इसलिए मैं नहीं चाहता कि रिष्वत की कमाई से मेरी बेटी का जीवन निर्वाह हो। 

मैं बोला - आंटी, आप कहो तो मैं नौकरी छोड़ दूंगा लेकिन रिया की षादी मुझसे ही करवा दीजिए। इस पर रिया की मां बोली - बेटा अब कुछ नहीं हो सकता। कार्ड बंट चुके हैं और षादी को कुछ ही दिन रह गये हैं और मैं तुमसे भी यही कहती हूं कि नौकरी छोड़ने की मत सोचना। ऐसी नौकरी बार-बार नहीं मिलती। तुम रिया को भूल जाओ और खुषी-खुषी अपनी जिन्दगी भी जियो और रिया को भी जीने दो। हमने षादी का कार्ड तुम्हारे घर भिजवा दिया है, हो सके तो जरूर आना। यह कहकर उन्होंने फोन काट दिया।

ऐसी परिस्थिति में लोग अक्सर षराब का सहारा लेते हैं या डिप्रेषन के षिकार होकर आत्महत्या करने की सोचने लगते हैं लेकिन षायद मैं किसी और ही मिट्टी का बना था। दिल टूटा था, षायद थोड़ा सा दिमाग खिसक गया था। छुट्टी लेकर घर पहुंचा, कार्ड देखा और उस दिन रिया की षादी में भी पहुंच गया। दुल्हन के लिबास में बेइंतहा खूबसूरत लग रही थी रिया।

मुझे देखकर थोड़ा सहम सी गई और नजरें चुराने लगी। लेकिन उसके तैयार होने वाले कमरे में मैं मौका देखकर चला गया और उससे कहने लगा। रिया तुम्हें बुरा मनाने और नजर चुराने की कोई जरूरत नहीं है। षायद मेरी किस्मत में हमारा एक होना नहीं लिखा था लेकिन कम से कम हम पहले की तरह दोस्त तो रह सकते हैं न। रिया की आंखों में आंसू थे, फिर मैं बोला, तुम पहले की तरह मुझसे बात कर सकती हो, कुछ भी काम हो, कह सकती हो। मैं सदा तुम्हारे साथ हूं। इसे छिपाने की जरूरत नहीं, किसी से भी, चाहे वो कोई भी हो, चाहे तुम्हारा पति, या तुम्हारा ससुराल। क्योंकि दोस्ती में तो कोई बुराई नहीं।

षादी की सारी रस्मों रिवाजों को मैं देखता रहा। रिसेप्षन में रिया को उसके पति के साथ बधाई दी। तब रिया ने अपने पति से मेरा इंट्रोडक्षन कराते हुए कहा, इनसे मिलो, ये मेरे कॉलेज के समय में दोस्त हैं। तब से लेकर अब तक ऐसा ही चल रहा है। आज रिया का एक बेटा चिंटू हैं जिसका जन्मदिन उनके घर पर है। जिस जगह रिया का ससुराल है, कुछ ही समय में मैंने अपना ट्रांसफर उसी षहर में करवा लिया। कम से कम रिया को देख तो सकूंगा, उससे बात तो कर सकूंगा, उसका काम तो कर सकूंगा। चाहे वो षरीर से मेरी न हो सकी लेकिन इस दिल को कोई बंदिषें नहीं बांध सकती और न ही कोई रिष्ते।

अचानक बाहर कोई आवाज हुई और ध्यान टूटा, जल्दी से तैयार होकर बाहर जाते हुए अपनी पत्नी को आवाज दी कि रिया के घर जा रहा हूं, चिंटू का जन्मदिन है, थोड़ी देर हो जायेगी। ऐसा कहकर बाहर निकल गया और सीधा रिया के घर पहुंच गया। दरवाजे की घंटी बजाई तो रिया निकली, मुझे देखकर धीमे से मुस्काई। तभी अंदर से उसकी सास की आवाज आई - कौन आया है?

रिया - मम्मी, मनोहर भाई साहब आये हैं।

मैं सीधे अंदर चला गया और जन्मदिन की तैयारियां करने लगा।

अब भी लगता है कि जैसे समय कहीं ठहर सा गया है। मैं आज भी कॉलेज के उन्हीं दिनों में अटक गया हूं, जिसका रास्ता खत्म होने को ही नहीं आता। 


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रचनाएँ
कही-अनकही कहानियाँ
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विज्ञान और धर्म (बुद्धि और हदय) में मात्र इतना ही अंतर है कि विज्ञान मानता है काला रंग वास्तव में कोई रंग न होकर समस्त रंगों की अनुपस्थिति मात्र है। जहां कोई रंग नहीं वहां काला अर्थात् अंधकार ही होगा । इसी प्रकार सफेद रंग वास्तव में सभी रंगों के मिश्रण से प्राप्त होता है। यही भौतिकी के सिद्वान्त कहते हैं। इसके विपरित इसी विषय में हदय का प्रयोग करने वाले कला प्रेमी लोगों का इसके विपरित ही तर्क है। उनके अनुसार वास्तव में काला रंग समस्त रंगों के मिश्रण का नाम है। आप किसी चित्रकार से पूछिए कि उसे काला रंग बनाने के लिए क्या करना होगा, उत्तर में यही मिलेगा कि समस्त रंगों को मिला दीजिए, जो रंग प्राप्त होगा वह काला और समस्त रंगों की अनुपस्थिति से सफेद रंग प्राप्त होता है। यहां दोनों ही अपने-अपने स्थानों पर बिल्कुल सही हैं। दोनों वर्ग अनेकों प्रकार के प्रयोग करने के पष्चात ही इस निर्णय तक पहुंचे हैं जिसका गलत होने की कोई संभावना नहीं। मात्र दृष्टि का अंतर है। सही दोनों हैं। यह दोनों को मानना भी होगा कि वैज्ञानिक और चित्रकार दोनों ही सही हैं। विरोध को कोई प्रष्न नहीं और कभी इस विषय को लेकर किसी ने इनके मध्य कोई लड़ाई भी न सुनी होगी। मानव चेतना भी इन्ही चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जिसमे अक्सर मनुष्य का अंतर्मन सदा आपस में काले-सफेद को लेकर लड़ता रहता है, सदा दोनों और चलने वाली इस खींच तान के बीच कभी भी यह सुनिष्चित नहीं हो पाता कि वैज्ञानिक सही या चित्रकार? मानव मस्तिष्क के भीतर चलने वाले द्वन्द को इस पुस्तक में क्रमबद्ध पिरोया गया है, जिसमे उसके अंतर जगत को प्रतिबिंबित करता है....
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