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सलाम.... कविता-7

8 जनवरी 2023

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दिलो में रखो श्याम  करते रहो राम-राम
कोई  बोले  सलावलेकुम  तो  सलाम...

बीते दिन भूलो सभी तुम,
गाओ   नया  गान यही है

जो राम को चाहे, अल्लाह को माने
ज्ञान वही जो इंसान को माने
भ्रम में सभी हो,भ्रम अलंकृत
कैसे  आओगे  बाहर  राम ही जाने
जिस  दिन   से तुमसे मिले हम
अल्ला ह को जाने न राम को माने
उसने किया राम - राम तो राम
उसने किया सलावलेकुम तो सलाम...


आओ  चले दोनो मधुशाला
पियेंगे बढ़िया जाम पे जाम
होश में न  आए तो भला है
मंदिर में  जायेगे ,  पियेंगे जाम
कहेंगे  भैया  राम  ही  राम
मस्जिद मे जायेगे, पियेंगे जाम
कहेंगे भैया वालेकुम सलाम....


मंदिर में खुदा है मस्जिद में भगवान
जिस रूप में चाहत, उस रूप में मिल जात
उदाहरण बड़ा है बड़ा ही अलबेला है
खानों  में  देखो  तो  देखो  रसखान
जियो और पीयो मस्त रहो मौज करो
हो सके तो कभी प्यार करो...


- रोहित कुमार "मधु"

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रचनाएँ
ओ खुदा एक कविता
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यह एक कविता संग्रह है जिसमे कवि ने खुदा से प्राथना की है ।उसके मन में जो प्रश्न चिन्ह है वह उनका उत्तर खुदा से चाहता है। इस कविता में कवि ने अपने व्यक्तिगत प्रेम को शामिल किया है जो की तार्किक व हकीकत का प्रेम है जो एक गहरा अर्थ रखता है व अन्य प्रश्नों को भी उजागर किया है जो की हकीकत के बहुत नज़दीक है। कवि के हृदय में प्रेम,करुणा का भाव है जो की कविता में साफ नजर आता है, कवि की विशेषता है की कविता का अर्थ अभिधा शब्द सकती में प्रेम व गरीबों की स्थिति देख कर करुणा से भरा हुआ है जिसका अर्थ एक तरफ और कुछ, व व्यंजना शब्द शक्ति में सियासत की सच्चाई को भी उजागर करता है। कविता में कुछ कॉमन पारिवारिक दृश्य भी उभर कर आए है, सभी कविताएं छंदबद्ध व लयतात्मक है । आप इस कविता को प्रेम व कवि के भावों के साथ पढ़े व आशीर्वाद प्रदान करे ।। धन्यवाद............
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ओ खुदा, ओ खुदा, ओ खुदा... घर की खातिर जो घर से निकल जाते है डगर पे अकेले ही चल जाते है शौंक अचानक बदल जाते है फिज़ा में जहर है घुला तितलिया हो रही गुम-सुदा...

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