सूरज मधु उषा फैलाने को है
सूरज उगने आने को है..
आसमां में सुर्ख लालिमा
मानो खरगोश की आंखों जैसा
किसी प्रिय के कोपलो का गुलाल
मानो किसी नायिका के सुर्ख अधर
चढ़ता जा रहा है गगन में
मानो मांग की सिंदूर रेखा
सभी स्वागत करने को आतुर
चिड़िया चहकती स्वागत गीत गाती
प्रकाश की किरण के साथ नया दिन
नया सवेरा प्रभु का नाम लेकर
मंदिरों की घंटी प्रभात फेरी के साथ
दिन की शुरुआत होती है
एक नया दिन, नया जीवन, नई सुबह
अब मंद मंद मुस्काने आने को है...
गगन चढ़ चुका है सूरज
शहरो में शुरू भागा दौड़
कमाने यश अपयश माया
फिर वही रोज का धक्का मुक्का
गांव में उषा बिखरी है
सूर्य अग्र देने से प्रारंभ
राम राम राधे राधे से अभिवादन
मुशलशल सिलशिला गांव का
सूरज उगने से है...
बुजुर्गो का आशीर्वाद ले
किशन पुत्र, ध्रति पुत्र
मां को प्रणाम कर
भोजन तैयार उगाने को है...
गाय प्रशन है चूल्हे की पहली रोटी उसकी है
एक बच्चा कटोरा लिए दूध की आशा में है
मां की ममता, अपने पुत्र के साथ
दूध पिलाती दुलारती है
गांव की नीव अभी ढही नही
आज भी भोजन मां सबके बाद करती है
मेरी आंखों की हदबंदी में है सब
अब न जाने कहा खो गया
गांव, गांव नही शहर हो गया
प्यार, प्यार नही लगाव हो गया
सूरज चढ़ने के साथ
प्रकाश आधुनिक हो गया
बेटा, बेटा नही बाप हो गया
ये सूरज तुझे क्या हो गया...
अब चढ़ता न उतरता है
बस आहे भरता है
आंखों में नीर, अधर मौन है
जुल्म का सिलसिला मुशलसल हो गया
बता सूरज तुझे क्या हो गया...
आंखों में जाते ही तिनका,
अंधेरा हो गया
अब सुर्खिया छपती कहा है
ये रोज का काम हो गया
बता सूरज तुझे क्या हो गया...
- Rohit Kumar 'Madhu'