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डर अब मुझको लगता है..., कविता -4

27 नवम्बर 2022

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प्रश्न एक था सबका लेकिन,
हल  सौ  हल हार गए
रिश्ते नाते सभी थे झूठे,
जो आड़े फिर आ गए

प्रश्नों  की इस उलझन को
अब ना भेदा जाता है
हर एक नए प्रश्न से डर
अब मुझको लगता है...

देख उसे उस चौराहे पर
मन हम अपना  हार गए
आंखों-आंखों में संवाद हुए
शोर दुनिया  के हार गए

मन दोनो के मिलने से पहले,
पहले  पल  में  टूट  गए
गीत सभी के एक थे लेकिन
स्वर लाखो फिर हार गए 

राह चलते - चलते अब,
कदम मन से हार गए
स्वर्ग की रेखाओं से फिर
धरती पर हम हार गए

वेदना असीम गरजती ऐसी
घाव न देखा जाता है...

हर एक नए प्रश्न से डर
अब मुझको लगता है...



            -  रोहित कुमार "मधु"




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रचनाएँ
ओ खुदा एक कविता
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यह एक कविता संग्रह है जिसमे कवि ने खुदा से प्राथना की है ।उसके मन में जो प्रश्न चिन्ह है वह उनका उत्तर खुदा से चाहता है। इस कविता में कवि ने अपने व्यक्तिगत प्रेम को शामिल किया है जो की तार्किक व हकीकत का प्रेम है जो एक गहरा अर्थ रखता है व अन्य प्रश्नों को भी उजागर किया है जो की हकीकत के बहुत नज़दीक है। कवि के हृदय में प्रेम,करुणा का भाव है जो की कविता में साफ नजर आता है, कवि की विशेषता है की कविता का अर्थ अभिधा शब्द सकती में प्रेम व गरीबों की स्थिति देख कर करुणा से भरा हुआ है जिसका अर्थ एक तरफ और कुछ, व व्यंजना शब्द शक्ति में सियासत की सच्चाई को भी उजागर करता है। कविता में कुछ कॉमन पारिवारिक दृश्य भी उभर कर आए है, सभी कविताएं छंदबद्ध व लयतात्मक है । आप इस कविता को प्रेम व कवि के भावों के साथ पढ़े व आशीर्वाद प्रदान करे ।। धन्यवाद............
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