पिय की सखी ने द्वार, खोला जाये खेलें होली,
खेलें होली सर्वप्रथम, पिय संग जाय के।
द्वार खुलत ही भई प्रगट, सखियाँ सखी की,
बोली सखियाँ होली, खेलो चलो आय के,
सखी दुविधा में पड़ी, भई पीत-वर्ण की,
पिय और सखियों में, भ्रान्ति हैं चुनाव की,
पैर डगमग काँपे अधर कछु बोलन को,
हृदय कहे सवारी करूँ, जाय किस नाव की।
सखियाँ समझ गईं, मन सखी सकुचे है,
झट दीन्ही अनुमति, शर्त लगाय के,
बात मान मन की सखी, खेलो होली पिया संग,
पिया रँग कैसो लगो, सखियन को बताय के,
पिया रंग रंगवे में, भूल नहीं जाना सखी,
सखियाँ खड़ीं हैं यहाँ, तोय रंग लगाय को।
सखियन की बात सुन, लग गया लाल रँग,
कैसे सर्वप्रथम पिया, सखी रँग अब लगाएगी।
(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"