कविता का संसार गढ़ना है,
बन प्रेरणा चले आओ,
हाँ, मुझे उड़ना है,
तुम पँख बनकर लग जाओ ।
देखना है मुझे,
उस क्षितिज के पार क्या है,
जानना है मुझे,
सपनों का सँसार क्या है ।
कल्पना के संसार में,
तैरना है मुझे,
सावन की फुहार में,
भीगना है मुझे ।
महसूस करना है तपन को,
जेठ की दुपहरी में, रेत में,
आलिंगन करना है शीत का,
पूष की ठिठुरी बर्फ में ।
हर एक ऋतु देखूँगा मैं,
तुम ऋतुएँ बदल-बदल लाओ,
हाँ, मुझे उड़ना है,
तुम पँख बनकर लग जाओ ।
(c)@ दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्”