छाले पड़े हैं पाँव में और, लब भी हुए हैं खुश्क,
आँखें बह चलीं हैं गले में, आवाज़ नहीं है ।
पैर थमे हैं बेड़ियों से, अभी आज़ाद नहीं हैं,
पर अब आपकी इनायत के मोहताज़ नहीं हैं ।
हर सड़क मेरे लिए, अब मकसद की राह है,
राह के रोड़े अब उतने कारसाज़ नहीं हैं ।
हम थामकर चलते हैं, तुम्हारी ही उँगलियाँ,
पर हम जानते हैं, आप मेरे सरताज नहीं हैं ।
(c)@ दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्”