पत्थर का सफ़ीना भी, तैरता रहेगा अगर,
तैरने के फलसफे को, दुरुस्त रखा जाये।
मुनासिब है, ऊंचाइयों पर जाकर रुके कोई,
उड़ने का हुनर अगर, बाज से सीखा जाये ।
कोई हुनर में तब तलक कैसे, माहिर हो,
पूरी सिद्दत से जब तलक ना, सीखा जाये।
(c)@ दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्”