परीक्षाओं के परिणाम आने के बाद विद्यार्थी एक विशेष अनुभव से गुजरते हैं। अगर परिणाम अनुकूल रहा तो प्रसन्नता होती है लेकिन अगर कहीं कमी रह गई तो ,उनका निराश होना स्वाभाविक है। ऐसी स्थिति में संतुलित रहते हुए एक नई आशा और आत्मविश्वास के साथ एक नई मंजिल
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इस पुस्तक का उद्देश्य केवल पाठक को Positive माइंड और किसी से ना डरे इस उद्देश्य से लिखा गया है
यह मेरा कविता "हौसला' खास कर उन लोगो के लिये है। जिन लोगो को मेहनत के वाजुद भी सफलता नही मिल रही है। वे हार मान कर बैठ गये है। और जो लोग कुछ करने की शुरुवात कर रहे है। पर कैसे शुरू ये उन्हे समझ मे नही आ रही है। उन लोगो के लिये यह मेरा कविता "हौसला''
इस पुस्तक में प्रस्तुत सभी रचनाएं मेरी कलम से कृत स्व- विचारों एवं भावनाओं का परस्पर संग्रह है। जिसका उद्देश्य ना केवल पाठक वर्ग को आनंदित करना है अपितु उन्हें चिंतनशील मनुष्य बनने हेतु प्रेरित करना भी है। इसी आशा के साथ शुरू होता है हमारा ये सुनहरा
सही उम्र क्या हैं ध्यान करने की इस लेख में आप को पता चलेगा !
यदि जिंदगी में कोई व्यक्ति असफल रह जाता है तो वह निराशा में हमेशा घिरा रह जाता है .चारों तरफ से अंधकार के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता .ऐसे में यदि वे असफल होता है तो ये साबित नहीं होता कि वह काबिल नहीं है
यहां पर आपको हर रोज तरह-तरह के सुविचार पढ़ने और देखने को मिलेंगे। यहां पर आपको हर रोज नए-नए और अनेक प्रकार के motivation qoutes - सुविचार मिलेंगे। रोजाना नए-नए और तरह-तरह के सुविचार पढ़ने के लिए हमें फॉलो जरूर करें। इसके अलावा आप हमारे वेबसाइट <a hre
इस पुस्तक में आप लोग मेरे नए नए प्रेरणादायी विचारों और सफलता शायरियों से अवगत होंगे।
एक ऐसे इंसान की कहानी जिसने अपने मेहनत के बल पर ना सिर्फ स्वयं आगे बढ़ा बल्कि अपनी पूरी बिरादरी को एक नई राह दिखाई
आत्ममंथन एक ऐसी किताब है जिसमें किसी भी विचार को पूर्णता आत्मा की कसौटी पर आत्ममंथन करके आप इसे पढ़ सकते हैं... यह कलुषित विचारों की भावनाओं से कोसों दूर.. सात्विक विचारों से ओतप्रोत विचारों के भंवर से आत्मिक विचारों से आप का साक्षात्कार करवाएगी...
क्षितिज छंद आधारित रचनाओं का संग्रह है। इसमें संग्रहित सभी रचनाएँ मानवीय मूल्यों तथा जीवन के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डालती हैं।
जीवन के वे अनुभव, जो नए होने के साथ-साथ, उपयोगी भी होते हैं, उन्हीं की दस्तावेज है यह पुस्तक।
मौत के बादल घने हैं दिल के कमरे डर रहे हैं। अब शिफाखाना में भी बस, मान रुपयों को मिले हैं। मुल्क ख़तरों से घिरा है आफिसर घर में घुसे हैं। इस महामारी में भी धन लूटने में सब लगेहैं। सड़कों पर जो लोग रहते, मास्क के दम ही बचे हैं। ( डॉ संजय दानी
बंद कमरों की सदा है, अपनों से ही ये मिला है। भीड़ से रिश्ता हुआ तो मर्ज़ बढते जा रहा है। मास्क से दूरी हुई है । आंसुओं का सिलसिला है। इश्क दीयों का मुहाफ़िज़, हुस्न इक जंगली हवा है। क़त्ल मेरा कर रही वो दिल, जिसे कहता ख़ुदा है।, ( डॉ संजय दानी