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१. शिवा का कल्पना लोक

28 अक्टूबर 2021

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शिवा अपने भाई बहनो में सबसे छोटा और सबसे समझदार था। उसे जादू की कहानियों और जादू के खेल तमाशों में बहुत आनंद आता था। उसे परियों की कहानियां बहुत रोचक लगती थी। कहानी पढते समय उसे लगता कि जैसे वो खुद ही किसी अनूठे लोक में विचरण कर रहा है। उसके सामने दृश्य ऐसे बदलते हैं जैसे कोई सिने पटल पर चलचित्र चल रहा हो। शिवा वैसे तो तो उन्नत बौद्धिक क्षमता का विद्यार्थी था और प्रत्येक विषय में उसे विशेषता प्राप्त थी केवल चित्रकारी और त्रिकोणमिति को छोड़कर। उसे रेखागणित बिल्कुल भी पसन्द नहीं था। उसे अलग अलग डिग्री के कोण बनाने बिल्कुल अच्छे नहीं लगते थे। कभी प्रकार में पेंसिल सेट कर के फुटा पर नाप कर चाप लगाना, कभी उससे त्रिकोण बनाना, कभी आयत बनाना, कभी चतुर्भुज बनाना। वो कापी पेंसिल हाथ में पकड़े हुए ही कोण बनाना छोड़कर एक अलग दुनिया में खो जाता। जब मास्टर उसे टोकते तो वापिस आता। उसकी वो दुनिया कुछ ऐसी थी...... 

जगह जगह पर तरह तरह के कोण बने हुए हैं, शिवा उनमें घूमता हुआ एक सुन्दर बगीचे में पहुँच गया। वहां बड़ी सुगंधित और शीतल हवा बह रही थी। बगीचे में रंग बिरंगे फूल और भाँति भांति के फलदार वृक्ष और कई तरह के झूले लगे हुए थे वो कभी एक झूले पर बैठता तो कभी दूसरे पर, कभी फल खाता तो कभी फ़ूलों को निहारता हुआ आगे बढ़ने लगा। आगे चलने पर उसे एक पहाड़ी दिखाई दी जहां से एक जल स्रोत गिर रहा था। उसका जल इतना स्वच्छ और निर्मल था कि कि उसे देखते ही उसकी जल पीने और उसमें स्नान करने की इच्छा हुई। बिना कुछ सोचे वो उस झरने के जल में स्नान करने के लिए उतर गया। पहले तो उसने जल पिया और फिर जी भर कर स्नान किया। जब वो स्नान करके बाहर आया तो उसने देखा कि उसका सारा शरीर सोने की तरह चमक रहा है और पानी पीने के बाद उसे ना अब भूख लग रही थी और ना प्यास, ना गर्मी का एहसास और ना सर्दी की ठिठुरन..... उसके सारे एहसास जैसे गौण हो गए। "ये कौन सी जगह है" ये सोचते हुए वो आगे बढ़ने लगा। कुछ दूर आगे चलने पर उसे एक भव्य द्वार दिखाई दिया जो स्वर्ण और रजत धातुओं से निर्मित था और उसमें बहुत से अमूल्य मणि माणिक्य जड़े हुए थे और उसके चारों ओर एक सुन्दर परकोटा था। जो विभिन्न प्रकार की धातुओं से निर्मित था और बहुत मजबूत और ऊँचा था। उसे लगा कि जैसे वो द्वार उसे पुकार रहा है, वो उसके अन्दर प्रवेश कर गया। अंदर कोई भी पहरेदार नहीं था ये बात उसे चौंका गई कि इतना सुन्दर नगर और उसमें कोई द्वारपाल और पहरेदार नहीं है। पहरेदार तो क्या वहां तो कोई पक्षी, कीट, पतंगा और तो और कोई मच्छर भी नहीं है। पर गली कूचे सब सजे धजे, सुन्दर गंध के इत्र से छिड़काव किया हुए एक दम भव्य हैं। खिली हुई धूप थी पर घाम नहीं था। जैसे जैसे वो आगे बढ़ते जा रहा था दुकानें स्वमेव ही खुलने लगी। और जहां कुछ नहीं था वहां लोगों की आवाजाही दिखने लगी। उसने ध्यान से देखा तो पाया कि वहां सोने चांदी की दुकानें थी कपड़ों की दुकानें भी थी पर खाने पीने और राशन आदि की कोई भी दुकान वहां नहीं थीं। शिवा सोचने लगा कि क्या यहाँ किसी को भूख नहीं लगती। यहां कोई खाना भी नहीं बनाता और तो और मुझे भी इतनी देर हो गई यहां भटकते हुए, मुझ पर भी भूख - प्यास और थकान का कोई चिन्ह नहीं है। 

तभी उसे एक आवाज आई - "आओ राजकुमार शिवा, हम तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रहे थे।" 

शिवा एकदम से हैरान रह गया पर उसने खुद को संयत करके पूछा -, " कौन हो तुम? और मुझसे क्या चाहते हो? और तुम्हें मेरा नाम कैसे पता चला?" 

उसे फिर से वही आवाज सुनाई दी - "घबराओ मत राजकुमार शिवा, ये तुम्हारा ही नगर है और तुम ही इसके होने वाले राजा हो। हम सब भी तुम्हारे ही बनाए हुए हैं।" 

शिवा एक पल को उस जादुई आवाज से डर गया, जिसका कोई स्रोत चारों ओर देखने पर भी पता नहीं चल रहा था - "जो भी कहना है स्पष्ट कहो। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है? मैं तो एक छोटा सा बालक हूँ। मैं कैसे किसी नगर का निर्माण कर सकता हूँ? वो भी इतना सुन्दर?"

अदृश्य आवाज - "राजकुमार शिवा, ये आपका दूसरा जन्म है। पहले जन्म में आप हमारे राजा थे। ये जादुई नगर जाम्ब भी आपके द्वारा ही बसाया गया था। पर अब नया जन्म होने के कारण आप सब कुछ भूल चुके हैं।"

शिवा - "यदि ये नगर और यहां के लोग सब मेरे हैं तो फिर मेरी मृत्यु कैसे हुई और तुम सब अब तक जीवित कैसे हो?"

अदृश्य आवाज - "आप अपने महल चलिए, वहीं आपको सब कुछ पता चल जाएगा। 

शिवा - "पर मेरा महल है कहाँ?" 

वो अदृश्य आवाज किसी को बुला कर शिवा को महल छोड़ कर आने के लिए कहता है। महल के द्वार पर पहला कदम रखते ही महल झूमने लगा और खुशी से शिवा के पैरों के नीचे कितने ही पुष्प बिखेर दिए। उन पुष्पों की सुगंध से पता चलता था कि सम्भवतः वे दिव्य पुष्प थे, पैरों के नीचे आकर भी कुम्हलाए नहीं थे। 

शिवा ने अभी कुछ कदम आगे बढ़ाए ही थे कि महल से आवाज आई - "सुस्वागतम कुमार, आज कितने वर्षों के पश्चात मेरा स्वामी अपने घर वापिस आया है। आपका सादर अभिनंदन है कुमार शिवा। आइए पधारिये। और कहिये मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ?" 

शिवा अन्दर एक सिंहासन नुमा कुर्सी पर बैठते हुए - "सबसे पहले तो मुझे ये बताओ, ये स्थान कौन सा है? पृथ्वी ही है या कोई और लोक है, जो यहाँ भूख प्यास, गर्मी, सर्दी, थकान, पसीना आदि परेशान नहीं करते?" 

महल बोला - "राजन, ये पृथ्वी ही है। ये जम्बू द्वीप पर उत्तर की ओर विशाल जम्बू वृक्ष के पास एक पहाड़ी पर आपके द्वारा बनाया गया एक जादुई नगर है। यहाँ बाहर उपवन के पास एक सुनहरी नाम का झरना है। आपने ब्रह्मा जी की तपस्या करके ये वरदान प्राप्त किया कि उस झरने में पानी पीकर स्नान करने के बाद किसी भी व्यक्ति पर मृत्यु लोक के वातावरण का कोई प्रभाव नहीं होगा। उन्हें भूख, प्यास, शौच, गर्मी, सर्दी, पसीना, ठिठुरन, निद्रा, अनिद्रा, थकान आदि भाव त्रस्त नहीं करेंगे। जिस प्रकार सुतल लोक वैभवशाली है उसी प्रकार आपका ये जाम्ब नगर भी अपार वैभवशाली है।" 

शिवा - "क्या यहाँ के सभी लोग जादू करना जानते हैं?" 

महल - "यहां के लोग ही नहीं, ये नगर स्वयं, यहां के गली कूचे, दुकान, मकान आदि सभी जादुई हैं। यदि यहां कोई गलत मानसिकता के साथ प्रवेश करने की कोशिश करता है तो उसे ये नगर दिखाई नहीं देता वरन यहां एक भयानक जंगल दिखाई देता है जिसके आपस में गुंथे हुए पेड़ पौधों को देख कर भी मनुष्य भय से थर थर काँपने लगता है।" 

शिवा - "यहां के लोग धार्मिक हैं या अपने जादू के मद और अहंकार में चूर होकर अधार्मिक हो गए हैं?"

महल - "नहीं, राजन, यहां अधर्म के लिए कोई स्थान नहीं है। आपने इस नगर को ऐसे ही बनाया है कि यहां अधर्म और अन्याय करने के बारे में भी कोई सोचता है तो उसे तुरंत चेतावनी सूचना मिल जाती है कि वो गलत सोच रहा है। इस प्रकार यहां अधर्म, अन्याय और अनीति का शासन नहीं होता।" 

शिवा - "जब ये नगर इतना महान है, इतना न्यायप्रिय और अनुशासन वाला है तो मेरी मृत्यु कैसे हुई?"

महल - "लोक कल्याण के लिए आपकी मृत्यु हुई थी महाराज।"

शिवा - "अर्थात....?"

महल - "पृथ्वी पर एक बार ज्वर नाम का राक्षस आक्रमण करके वहां की निरीह प्रजा को त्रास देने लगा। उस ज्वर का किसी भी वैद्य या चिकित्सक के पास कोई तोड़ नहीं था। फिर देव चिकित्सक अश्विनी कुमारों ने बताया कि केवल आपके रक्त से ही पृथ्वी वासियों की रक्षा की जा सकती है। आप उसके लिए बिना कुछ सोचे तैयार हो गए। आप का जीवन परोपकार के लिए समर्पित हो गया। इससे नागरिकों में कोलाहल व्याप्त हो गया, तब ब्रह्मा जी ने स्वयं आकर आपकी प्रजा को आश्वस्त किया कि यदि वे लोग धर्म, नियम और सदाचार से रहेंगे तो उनके राजा लौट कर अवश्य आएंगे। तब से आपकी प्रजा आपके आगमन की प्रतीक्षा में उन सभी नियमों का पालन पूरी निष्ठा से से कर रही है, जो आप बनाकर गए थे। जिससे कि आप वापिस लौट कर आ सकें।" 

शिवा - "क्या मैं भी जादूगर हूँ? "

महल आश्चर्य चकित होकर शिवा से पूछता है -  "महाराज क्या आपको मेरे कथन पर विश्वास नहीं है? मेरे पास सभी प्रमाण हैं, आपके जादूगर होने के। क्योंकि मैं आरम्भ से ही आपका प्रत्यक्षदर्शी रहा हूँ। तो मैं आपको आपका सारा जीवन एक चलचित्र की भांति दिखा सकता हूँ यदि आप आज्ञा दें तो।" 

शिवा - "नहीं, उसकी आवश्यकता नहीं है? वास्तव में मुझे अपना पिछला जीवन याद नहीं है। तुमने मुझे जो कुछ बताया उस पर मुझे पूर्ण रूप से विश्वास है परन्तु मैं चाहता हूँ कि मुझे मेरा सारा बीता समय याद आ जाए। जिससे मैं अपने जीवन के सटीक निर्णय ले सकूँ।" 

महल - "महाराज, उसके लिए आप प्रहरी से कह कर राज वैद्य जी को बुलवा लीजिए।" 

शिवा - "पर मुझे तो यहां कोई दिखाई नहीं दे रहा?"

महल - "आप आवाज दीजिए, वो आ जाएगा।"

शिवा - "अच्छी बात है..... प्रहरी.... (शिवा की आवाज सुनकर तुरंत एक सैनिक पोशाक पहने व्यक्ति उपस्थित हो जाता है।)... जाकर राज वैद्य जी को सूचित कीजिए कि हमने बुलाया है।"

प्रहरी - "जो आज्ञा महाराज... "

प्रहरी तुरंत चला गया और कुछ ही क्षण में वो राज वैद्य चरक के साथ उपस्थित हुआ। 

चरक - "आपका अभिनंदन है महाराज, अच्छा हुआ आप आ गए। हम सब कब से आपकी प्रतीक्षा में व्यग्र और व्याकुल थे। कहिये, मेरे लिए क्या आज्ञा है?"

शिवा - "वैध जी, हम चाहते हैं कि आप हमें कोई ऐसी बूटी दें, जिससे हमें हमारा पिछले जन्म का सारा जीवन याद आ जाए।" 

चरक - "राजन, अभी आपका शरीर उस बूटी का सेवन करने के लिए बहुत छोटा है। आप कुछ और बड़े हो जाइए, फिर मैं आपको स्वयं वो बूटी बिना कहे दे दूँगा, क्योंकि मैंने वो पहले से ही तैयार कर रखी है। अभी आप अपने स्थान को जाइए आपके माता पिता आपकी चिंता करते होंगे। जब आप बड़े हो जाएं तब हम आपको स्वयं वहां से ले आएंगे।" 




तभी शिवा को याद आता है कि वो तो अपनी आठवीं की कक्षा में रेखागणित के प्रश्नों का हल निकाल रहा था। जैसे ही वो मानसिक रूप से अपने वास्तविक जीवन में आया उसने देखा कि उसके चारों ओर उसकी कक्षा के बच्चे और मास्टर जी अपना हाथ बांधे खड़े हैं। उसके होश में आते ही सब उसे घूर घूर कर देखने लगे। 

मास्टर जी बोले - "महाराज, यदि आपका पदार्पण अपने लोक से इस धरती पर हो गया हो तो क्या हम आगे पढ लें।" 

शिवा सकुचाते हुए - "जी, मास्टर जी," 

मास्टर जी - "तो फिर दिखाओ तुमने क्या बनाया है?" 

शिवा उन्हें अपनी कापी दिखाता है, उसमें सारे कोण और उनके सभी समीकरण एकदम सटीक और प्रामाणिक लिखे हुए थे। 

मास्टर जी - "वाह बेटा! बस यही एक कारण है कि तुम्हारी गलतियों पर भी मेरा हाथ तुम पर नहीं उठता। शाबाश! सभी जवाब बहुत ही सुन्दर दिए हैं।"

शिवा गौर से मास्टर जी को देखते हुए - "वैध जी," 

मास्टर जी - "अबे चुप हो जा अब, कब से मुझे वैध जी वैध जी बुला रहा है। नहीं तो अभी तुझे अगले पिछले सारे जन्म याद करा दूँगा।"

सारी कक्षा ठहाका मार कर हँस पडी। 😀😂


🌹 इति श्री 🌹 

धन्यवाद 🌹 🙏🏻 🌹 

राधे राधे 🌹 🙏🏻 🌹 



     ✍️ ©️ राधा श्री 


कविता रावत

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बचपन और कल्पना👌👌👌

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Behtarin likha men bahut shandar 👏👏👏👏👏👏👌💐💐❣️💐

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13 नवम्बर 2021

स्नेहिल आत्मीय आभार काव्या जी 🙏🏻🌷🙏🏻

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रचनाएँ
शिवा और उसका जादुई जाम्ब नगर
5.0
ये कहानी शिवा नाम के एक बच्चे की है, जिसे सब लोग अपनी काल्पनिक दुनियाओं में खोया हुआ ही मानते हैं। किन्तु वो एक अविश्वसनीय और अद्भुत जादू के नगर का निर्माता है। ये कहानी विशेष रूप से बच्चों की है। देखते हैं कि बच्चों का मनोरंजन करने में कितना सफल होते हैं। राधे राधे 🙏🏻🌷🙏🏻
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