प्रकृति ने समय-समय पर कुछ अद्भुत जीवों का निर्माण किया है, जो वातावरण और अनुकूलता से पूरी तरह अलग हैं। इनमें कुछ ऐसे गुण भी विद्यमान होते हैं जो मानव जाति से मिलते-जुलते हैं। आज की कहानी इसी अद्वितीयता के इर्द-गिर्द बुनी गई है।
रोहन - माँ, आज मेरे कॉलेज का कैम्प है, मैं वहाँ जा रहा हूँ।
(रोहन एक 19 वर्षीय युवक है, जो नवीनता के उत्साह से भरा हुआ है और कुछ नया करने की जिज्ञासा मन में रखता है।)
माँ - जल्दी आ जाना, लेकिन यह बताओ कि तुम कैम्प में जा कहाँ रहे हो...
रोहन - श्रापखोड़ी के घने जंगलों में।
माँ - वहाँ कभी कैम्प लगता है क्या?
रोहन - मैं जा रहा हूँ, बाद में सब बताऊंगा।
माँ - ख्याल रखना और समय पर भोजन करना।
रोहन - ठीक है, बाय... बाय...
कैम्प के आयोजन स्थल पर सभी स्कूल के बच्चे पहुँचते हैं और स्कूल द्वारा निर्धारित गतिविधियों में व्यस्त हो जाते हैं। रोहन और उसके चार मित्र भी कुछ नया अनुभव करने की तलाश में जुट जाते हैं।
रोहन, रिंकी, पीहू, और निशान - ये चारों जंगल की खूबसूरती को देखकर बेहद खुश होते हैं।
रोहन - अरे निशान, देखो ये कितना विशाल जंगल है!
आओ, अंदर चलते हैं।
निशान - नहीं यार...
रोहन - चल न, रिंकी और पीहू से पूछ लो...
दोनों चलने के लिए सहमत हो जाती हैं।
चारों दोस्त जंगल में गहराई में प्रवेश करते हैं और वहाँ की रोचकता तथा भव्यता में खो जाते हैं। तभी दूर से रोहन को एक गुफा जैसी संरचना दिखाई देती है। वह निशान से कहता है:
रोहन - यार निशान, आओ गुफा में चलें।
निशान - नहीं यार...
रोहन - चल न, डर क्यों रहा है...
तभी एक अजीब से शंख की आवाज सुनाई देती है। रिंकी और पीहू डर जाती हैं और कैम्प की ओर भागने लगती हैं, साथ में कहती हैं:
रिंकी - मैं कहीं नहीं जा रही हूँ, मैं वापस लौट रही हूँ। चल, पीहू...
हालांकि, रोहन और निशान दोनों उस गुफा की ओर बढ़ जाते हैं। गुफा में पहुँचकर वे वहां की भव्यता और प्राचीन मंदिरों के पत्थरों को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। उन्हें लगता है कि उन्होंने किसी नई सभ्यता की खोज कर ली है, और वे गुफा के और अंदर जाकर उसके रहस्यमय रूपों को देखने की इच्छा रखते हैं। गुफा अंधेरी होती जाती है और वहां अजीब-अजीब आवाजें सुनाई देने लगती हैं। तभी...
शशशशसस... शहहह...
वहाँ की हवा ठंडी हो जाती है...
रोहन का पैर फिसल जाता है... निशान - निश... बचाओ... बचाओ...
निशान - कहाँ हो तुम, रोहन?
रोहन - यहाँ गड्ढे में... देख!
निशान - रुको, मैं तुम्हारी मदद करता हूँ।
काफी प्रयास करने के बावजूद, निशान रोहन को गड्ढे से नहीं निकाल पाता। अंततः थक-हार कर वह रोहन से कहता है कि तुम यहीं रुको, मैं कैम्प से सहायता लेकर आता हूँ। और रोहन वहीं गड्ढे में निकलने की कोशिश करता है, जबकि निशान कैम्प की ओर दौड़ता है...
रोहन गड्ढे से बाहर निकलने के लिए कोई न कोई उपाय सोचने में लगा हुआ है, तभी एक अजीब शंख की ध्वनि सुनाई देती है। सियार की आवाज निकालते हुए एक भयानक स्त्री, जिसके बड़े-बड़े दांत हैं, अचानक सामने खड़ी हो जाती है।
शहहहहहहहह... शहहहहहह...
(रोहन और शंखिनी की नजरें मिलती हैं। उसकी लाल-लाल पुलती वाली आँखें देखकर)
रोहन - तुम कौन हो, कौन... कौ...
यह कहते हुए उसे बेहोशी छाने लगती है।
वह स्त्री (शंखिनी) रोहन को अपने हाथों से खींचकर निकालती है और उसके शरीर को अपनी जीभ से लपेटने लगती है। इस प्रक्रिया के बाद, रोहन का शरीर लकवा ग्रस्त हो जाता है और वह स्त्री रोहन को अपने कंधे पर लादकर जंगल की ओर ले जाती है। इस समय रोहन पूरी तरह बेहोश हो जाता है।
कुछ समय बाद, रोहन खुद को एक घास के बिस्तर जैसा गद्दा पर पाता है और डरते-डरते इधर-उधर देखने लगता है...
तभी शंखिनी वहां आती है।
रोहन - तुम कौन हो...
वह रोहन को एक अजीब रंग का पेय (हरे रंग का पदार्थ) पीने के लिए देती है।
रोहन पीने से मना कर देता है...
(फिर वह जबरदस्ती रोहन का मुँह खोलकर उस घोल को पिला देती है।)
इसे पीने के बाद, रोहन अपनी चेतना खो देता है और उस स्त्री के प्रति आकर्षित महसूस करने लगता है।
फिर दोनों के बीच एक अंतरंग संबंध स्थापित होता है। दोनों प्रेम के जाल में खो जाते हैं। यह प्रक्रिया लगभग पूरी रात चलती है और फिर रोहन थका हुआ उस घास के बिस्तर पर गिर जाता है।
(इधर रोहन के सभी मित्र और स्कूल के साथी पूरी रात जंगल में रोहन को ढूंढते हैं, लेकिन उनका कोई अता-पता नहीं चलता। थक कर वे पुलिस को कॉल करते हैं। पुलिस उन्हें घर जाने के लिए कहती है और आश्वस्त करती है कि...
हम जल्द ही रोहन को ढूंढ लेंगे।)
इस बीच, शंखिनी रोहन के लिए भोजन लाती है, जिसमें कुछ कच्चा मांस, मरे हुए चूहे और कुछ फल होते हैं। रोहन झपट्टा मारकर फल छीन लेता है और खाने लगता है, जबकि शंखिनी वापस जंगल की ओर लौट जाती है।
रात होते ही, शंखिनी फिर लौटकर आती है और रोहन को फिर से कुछ पीने के लिए देती है। इसे पीने के बाद, रोहन एक बार फिर उस शंखिनी के प्रति आकर्षित होने लगता है और दोनों फिर वही क्रियाकलाप करने लगते हैं।
निशान - मैं रोहन को ढूंढने जंगल जा रहा हूँ, कौन-कौन मेरे साथ चलेगा? निशान के कुछ दोस्त तैयार हो जाते हैं और वह अपने तीन दोस्तों के साथ जंगल में रोहन को खोजने निकल जाता है। इस तरह, वे लगभग 8 दिन तक रोहन की तलाश करते हैं।
इस दौरान, रोहन रोज-रोज यौन क्रिया करते-करते कमजोर हो गया है और अब वह कुछ भी नहीं कर पाता, बस एक कोने में पड़ा रहता है। अब वह और सहवास नहीं कर पाता है।
शंखिनी रोहन की ओर देखती है और गुर्राती है, फिर जंगल में एक नए शिकार की तलाश में निकल जाती है...
ऐसे ही लगभग 7 से 8 माह बीत जाते हैं और रोहन की स्थिति एक वृद्ध व्यक्ति की तरह हो जाती है। उसके शरीर में केवल हड्डियों का ढांचा ही बचा रह जाता है और वह एक कोने में पड़ा अपनी मृत्यु की प्रतीक्षा करता है।
और इधर, शंखिनी रोज नया शिकार लाती है और अपनी यौन इच्छाओं को पूरा करने के बाद उन्हें उसी कोने में फेंक देती है। भूख लगने पर, वह उन इंसानों को भी खा जाती है।
रोहन के मित्र और साथी अभी भी रोहन को ढूंढने का संकल्प नहीं छोड़ते। वे रोज जंगल के हर कोने में उसकी तलाश करते हैं और कहते हैं कि जब तक रोहन नहीं मिल जाता, तब तक हम नहीं छोड़ेंगे। रोहन को ढूंढकर ही रहेंगे।
इस कहानी की अगली कड़ी में आप देखेंगे कि किस प्रकार निशान रोहन को खोज निकालता है और जब निशान पर शंखिनी हमला करती है, तब क्या होता है...
आपका इंतजार रहेगा भाग 2 का...
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